जब से मैंने होश सम्भाला मेरे अंतःकरण में अपने एक गुरु के लिए चाहत रही है। यद्यपि मुझे गुरु की उपस्थिति का आभास था, मैं उन्हें देख नहीं पाती थी। कोई विपदा आने पर मैं उनको याद करती थी और मेरे बचपन से कोई दिव्य शक्ति सदा मेरी सहायता करती आयी थी।
गुरुजी के प्रथम दर्शन
मेरे पति और मैं चंडीमंदिर में रहते थे। संयोग से ऐसा हुआ कि एक सैन्य अधिकारी की बेटी अस्वस्थ थी। मैंने उसे घर भेजने को कहा जिससे मैं उसको देख सकूँ। परीक्षण करने पर मैंने पाया कि उसे वायरल हेपेटाइटिस था। मैंने उसे औषधियाँ देकर घर भेज दिया। उसी दिन जब उसके पिता मुझे मिले और मैंने उनकी बेटी की अवस्था के बारे में प्रश्न किया तो उन्होंने उत्तर दिया कि घर पर गुरुजी के आने के पश्चात् से वह बिलकुल स्वस्थ है। मैंने उनसे शिकायती लहजे में कहा कि उन्होंने कभी गुरुजी के बारे में नहीं बताया और उनसे विनती करी कि अगली बार जब भी गुरुजी घर आयें तो मुझे अवश्य सूचना दें।
उन्होंने ऐसा ही किया। मैं जल्दी से उनके घर गयी तो गुरुजी उनके कक्ष में बैठे हुए थे। उन्होंने मुझे तुरन्त पहचान लिया और 'डॉक्टर साहिबा, डॉ- भगवान दास और लीलावती दी कुड़ी' कहकर संबोधित किया। उन्होंने मेरे माता पिता के नाम बता दिये थे; मुझे ज्ञात हो गया कि वह ही मेरे गुरु हैं। मुझे अत्याधिक प्रसन्नता थी। अगले दिन उनके मंदिर में मुझे दीक्षा प्राप्त हुई। उसके बाद उनकी कृपा प्रवाहित होने लगी।
मुक्तिदाता
हम कई बार मृत्यु का ग्रास बनते-बनते बचें हैं। गुरुजी से मिलने से पूर्व, जैसा मैं कह चुकी हूँ, मुझे गुरु की उपस्थिति का आभास था। एक बार श्रीनगर में जब मैं गाड़ी चला रही थी, सेना के एक अधिकारी की गाड़ी बिलकुल सामने आ गयी। मेरी गाड़ी जब रुकी तो उसका एक चौथाई भाग सड़क पर था किन्तु शेष तीन चौथाई सड़क से बाहर हवा में लटक रहा था। वह अधिकारी, जिनको मैं जानती थीं, अपनी गाड़ी से बाहर निकले और उन्होंने कहा कि मेरी गाड़ी के ब्रेक काम नहीं कर रहे थे। मैं केवल ईश्वर का धन्यवाद कर सकती थी।
बाद में, जब वह बार-बार बचाने वाली दिव्य शक्ति गुरुजी के रूप में सामने आयी तो भी सदा हमारी रक्षा होती रही। एक बार जालंधर में, गुरुजी के मंदिर के निकट, एक छोटी बस ने मेरी गाड़ी क्षतिग्रस्त कर दी। मंदिर पहुँचने पर गुरुजी द्वार पर खड़े हुए मिले और बोले कि बच गयी।
दिसंबर 2005 में, मैं अपने पुत्र की गाड़ी लेकर एक उद्यान में टहलने गयी थी। एक चौराहे पर एक ट्रक सामने आया पर अंतिम क्षण पर चालक ने उसे मोड़ लिया - एक अनहोनी घटना क्योंकि ट्रक के सामने छोटी गाड़ी को ही स्वयं को बचाना पड़ता है। ट्रक चालक ने मुझे क्रोध भरी निगाह से देखा तो मैंने उससे कहा कि मेरे भगवान ने ही मेरी रक्षा करी है। यह सुनकर वह मुस्कुराया और चला गया।
सेना में पदोन्नति की अनूठी घटना
गुरुजी की मेरे मेजर जनरल पति की पदोन्नति में भी कृपा रही है। मेरे पति को पदोन्नति समिति ने स्वीकृति दे दी थी - किन्तु उस समय केवल पाँच रिक्त स्थान थे और वह आठवें स्थान पर थे। उनकी पदोन्नति असंभव लग रही थी। गुरुजी जालंधर में थे। मेरे पति के वहाँ पर लंगर ग्रहण करने के पश्चात् गुरुजी बोले कि चलिए लेफ्टिनेंट जनरल साहब आपको "डाइन आउट" कराते हैं। कुछ मिठाई बाँटने के पश्चात् गुरुजी ने उनको पहनने के लिए एक पोशाक और दूध पीने के लिए एक चांदी का ग्लास दिया। मैंने वह कपड़े और ग्लास - गुरुजी की दया के प्रमाण - अलमारी में रख दिये। पर गुरुजी ने उनका उपयोग करने को कहा। मेरे पति ने उनका उपयोग किया और गुरुजी की कृपा प्रवाहित होती रही। पदोन्नति से पूर्व तीन बार उनकी अवधि बढ़ायी गयी - सेना में संभवतः ऐसा पहली बार ही हुआ हो। उनकी संचिका (फाइल) अटकने के कारण विलम्ब हो रहा था। गुरुजी ने विलम्ब के कारणों को दूर करने मुझे दिल्ली भेजा। वहाँ पर मुझे एक जनरल साहब मिले जो स्वयं गुरुजी के अनुयायी थे। उनको स्थिति से अवगत करने के उपरान्त, उनके कहने पर उस संचिका पर कार्यवाही हुई। कुछ ही दिनों में मेरे पति का लखनऊ स्थित सेना चिकित्सा कोर केंद्र में, स्वयं में एक उत्तम स्थान, स्थानान्तरण हो गया।
विद्युत ऊर्जा के अभाव में स्टीरियो चला
लखनऊ में गुरुजी कुछ दिन हमारे साथ रहे थे। एक बार प्रातः तीन बजे फ्यूज जल गया। किसी कारणवश जेनरेटर भी शुरू नहीं हुआ। सत्संग का समय हो रहा था और गुरुजी - हमारे जीवन की दिव्य ज्योति - हमारे बीच में बैठे थे। उन्होंने मेरी बेटी को स्टीरियो चलाने को कहा। उसने उनके कथन की अवहेलना करी क्योंकि विद्युत नहीं थी। गुरुजी के पुनारोक्ति करने पर उसने चलाया और वह अगले साढ़े चार घंटे बिना विद्युत के चलता रहा!
भक्त का घर बनवाया
गुरुजी ने पंचकूला में हमारा घर भी बनवाया। जब उन्होंने मुझे ऐसा करने को कहा तो धन का अभाव था। मेरे पति ने भी इसमें अरुचि प्रकट की। उन्होंने शंका प्रकट की कि इसके लिए पैसे कहाँ से आयेंगे और क्या गुरुजी धन की वर्षा करेंगे? किन्तु ऐसा ही हुआ। बीज राशि के रूप में मेरे पति ने पुत्र के विवाह के उपरान्त बचे हुए चालीस हज़ार रूपये दिये। फिर गुरुजी के संकेत पर मैंने सावधि योजना में डाले हुए धन का उपयोग किया। पुनः गुरुजी के तीसरी बार कहने पर मैंने अपने पास रखे हुए शेयर बहुत अच्छे दामों पर बेचे। अचानक पैसे का अभाव दूर हो गया था। गुरुजी ने पंचकूला में एक दूकानदार को सस्ते में सामान भी देने को कहा। शीघ्र ही घर बन कर तैयार हो गया था। मेरे पति को अपने प्रश्नों का उत्तर भी मिल गया था। गुरुजी ने हमारे लिए घर बना दिया था। यह तो उनका मंदिर है हम तो केवल उसके रखवाले हैं।
भेंट में रेशमी कमीज़
गुरुजी की कृपा से मेरे बच्चों के विवाह हुए। 1991 में, चंडीमंदिर में, मेरे ज्येष्ठ पुत्र मनोज के विवाह में गुरुजी पधारे थे। उनके कथन के अनुसार उसके दो पुत्र हुए। जब चिकित्सकों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग बताने से मना कर दिया तो गुरुजी का कहा याद कर मैंने उनको वह बता दिया। इसी प्रकार गुरुजी ने अगले पुत्र अरविन्द को एक पुत्र और एक पुत्री का आशीर्वाद दिया। उनके विवाह पर भी 1995 में गुरुजी ने नव दम्पत्ति को आशीर्वाद दिया। उनकी कृपा से ही मेरी बहू की गर्भवती होने की रुकावटें समाप्त हो गयीं।
मेरे सबसे छोटे बेटे राहुल के विवाह में भी गुरुजी की अहम् भूमिका रही है। वह छात्रवृत्ति लेकर अमरीका में पढ़ रहा था। एक दिन उसने फोन किया कि उसे एक अमरीकी लड़की पसंद है। यह मुझे अप्रिय लगा पर हमने निर्णय गुरुजी पर छोड़ दिया। निश्चय हुआ कि यदि गुरुजी ने हामी भर दी तो विवाह होगा अन्यथा नहीं। राहुल भी इस बात से सहमत था। गुरुजी से चर्चा करने पर वह मान गये। उन्होंने विवाह की तिथि भी दी।
विवाह दिसंबर मास में दिन में होना तय हुआ। मेरे पति को पहनने के लिए गुरुजी ने एक सूती पेंट और एक रेशमी कमीज़ दिये थे। शीत ऋतु होने के कारण मेरे पति वह न पहन कर सूट पहनना चाह रहे थे। अचम्भे की बात है कि उस दिन बहुत गर्मी रही और सूट में आये हुए अतिथियों के लिए वह सहन करना कठिन हो रहा था। मेरे पति ने सिलवा कर गुरुजी वाले कपड़े पहने और उन्हें कोई बेचैनी नहीं हुई।
गुरुजी समय निर्धारित करते हैं
हमें जालंधर से लखनऊ शताब्दी से जाना था। हम गुरुजी के दर्शन के लिए गये थे। वहाँ उन्होंने हमें ट्रेन चलने के समय से आधा घंटा अधिक बिठा कर रखा। जब हम स्टेशन पहुँचे तो पता चला कि ट्रेन भी आधा घंटा देरी से चल रही है।
इसी प्रकार एक बार हमें नोएडा से पंचकूला जाना था। हमें देर हो गयी थी और घर से निकलते-निकलते स्टेशन से शताब्दी के चलने का समय हो चला था। मेरे पति मार्ग में कहते रहे कि शताब्दी निकल गयी होगी पर कोई शक्ति खींचती हुई हमें स्टेशन तक ले गयी। वहाँ पहुँचने पर, हमारे शंतिपूर्वक ट्रेन में चढ़ने के बाद, ही वह चली। मैंने इतनी तुच्छ बात के लिए गुरुजी को याद नहीं किया था, किन्तु वह स्वयं सबका ध्यान रखते हैं।
चंडीमंदिर में एक बार अचानक मैं गुरुजी के पास प्रातःकाल चली गयी। मैंने सोचा था कि उनके दर्शन करने के बाद मैं सीधे अपने कार्य पर चली जाऊँगी। यद्यपि मुझे चिकित्सालय में 10:30 बजे तक होना चाहिए था, गुरुजी ने मुझे 11:00 बजे तक बैठा कर रखा। मैं भी संयम से प्रतीक्षा करती रही। जब मैं चिकित्सालय पहुँची तो मुझे बताया गया कि कोई रोगी नहीं आया था क्योंकि सेना की सब महिलाएँ चंडीमंदिर गयी हुई थीं, जहाँ एक जनरल निरीक्षण हेतु आये हुए थे।
दिव्य हस्तक्षेप
मेरे पति को गोल्फ खेलने में अत्याधिक रुचि है। उनके दाहिने घुटने में दर्द बना हुआ था। एक सहकर्मी ने एक्सरे करने के बाद देखा कि वहाँ की हड्डी पर एक अति बारीक दरार है। अतः उस पर प्लस्तर लगाने का सुझाव दिया। गुरुजी को बताये बिना मैंने उस प्रक्रिया के लिए मना कर दिया। गुरुजी ने अपना हाथ उनके घुटने पर फेरा और उनकी वेदना समाप्त हो गयी।
हम उनकी उपस्थिति से अति सौभाग्यशाली हैं। समस्त कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए उस पूर्ण गुरु की एक निगाह पर्याप्त है।
एक बार गुरुजी ने मुझे अपनी नाड़ी देखने को कहा तो उसका स्पंदन 40 प्रति मिनट आया। मैंने कहा कि यदि उनकी नाड़ी शून्य भी हुई तो मुझे कोई चिंता नहीं है क्योंकि मुझे ज्ञान है कि वह दिव्यरूप हैं और इस पृथ्वी की भौतिक परिभाषाएँ उनके लिए अर्थ विहीन हैं।
मेजर (डॉ-) सावित्री आहूजा, पंचकूला
जुलाई 2007