जब भगवान की रोशनी हम पर चमकी

शताब्दी शंकर, मार्च 2008 English
जय गुरुजी महाराज! भगवान पृथ्विलोक और स्वर्गलोक की रोशनी हैं। भगवान अपनी रोशनी की ओर मार्गदर्शन करते हैं, उनका, जिनका वह चाहें। भगवान चुनते हैं कि वह किस पर अपनी दिव्य रोशनी चमकाएँगे। हम उन कुछ चुने हुए लोगों में से हैं जिनपर गुरुजी ने अपनी कृपा बरसाई, बिना हमारे माँगे, और उनसे मिलने से भी पहले। सिर्फ गुरुजी की कृपा से हमारा परिवार आज जीवित और ठीक है और मैं अपना अनुभव लिख पा रही हूँ। मैं उन कुछ भाग्यशाली लोगों में से हूँ जो बोल सकते हैं: हाँ, मैंने अपनी आँखों से भगवान को देखा है और अपने हाथों से उनके दिव्य चरण छूए हैं।

हमारी ज़िन्दगी उस दिन बदल गई जिस दिन हमने एम्पायर एस्टेट जाना शुरू किया। 30 सितम्बर 2005 को हम भगवान को अपनी नश्वर आँखों से देख पाए। हमारी सहेली, डॉ नीलम, जो गुरुजी के पास 2004 से जा रही थीं, से हम लगभग रोज़ गुरुजी के बारे में सुनते थे। 2004 में गुरुजी ने नीलम से कहा कि वह मुझे उनके पास लेकर आए, जब मैं परेशानी में थी। तब हम सिंगापुर में रहते थे और हमारी ज़िन्दगी में सब ठीक चल रहा था। इसलिए वह इसके बारे में भूल गई। परन्तु अगले साल हमारी परिस्थिति दयनीय थी और हम भारत आ गए थे। हमारे साथ विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा था; मेरे पिता को स्ट्रोक हुआ था; कोलकता में एक निजी रिश्तेदार कोमा में थे, और मेरे पति की नौकरी चली गई थी (जिसमें वह बहुत अच्छा कर रहे थे) – यह सब एक हफ्ते के अंदर हुआ था। भावात्मक रूप से, आर्थिक रूप से और हर रूप से, हम परेशानी में थे।

यकायक मेरी सहेली को याद आया जो गुरुजी ने उसे एक साल पहले कहा था। जिस दिन मैंने गुरुजी की तस्वीर को पहली बार छूआ, समाचार मिला कि मेरे पिता खतरे से बाहर थे और जल्द ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी। मैंने अपनी सहेली को फोन किया और अनुरोध किया कि वह मुझे गुरुजी के पास लेकर जाए। अगले ही पल मुझे कोलकता से फिर फोन आया कि हमारे रिश्तेदार कोमा से बाहर थे। यह एक चमत्कार था, हमें उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करने से भी पहले।

मेरे नास्तिक पति का परिवर्तन

असंख्य सालों में भी यह लिखना असंभव होगा कि गुरुजी हमारे लिए क्या मायने रखते हैं। उनके चमत्कार हर पल हो रहे हैं। एम्पायर एस्टेट एक बार जाने के बाद ही गुरुजी मेरे पति में परिवर्तन लाए। मेरे पति, शंकर नारायण, कभी भगवान में नहीं मानते थे, गुरु तो छोड़ ही दो। एम्पायर एस्टेट से निकलने के बाद उनका नया जन्म हुआ। आज, कभी-कभी वह मुझे एहसास कराते हैं कि सच्ची आस्था क्या होती है।

उन्हें एक सपना आया था जिसमें गुरुजी ने उनसे कुछ सवाल पूछे और उन्होंने उन सवालों का जवाब दिया। उस सपने के दो महीने बाद, गुरुजी ने लंगर के बाद मेरे पति को बुलाया और वही सवाल पूछे! गुरुजी ने तब से लेकर अब तक, हमारे जीवन से अशान्ति मिटा दी है।

नई शुरुआत: दो गाड़ियाँ और बेहतर स्वास्थ्य

गुरुजी के यहाँ आने के पाँच महीने बाद हमें आर्थिक परेशानियों की वजह से अपनी गाड़ी बेचनी पड़ी। परन्तु हमें पता था कि अगर यह वास्तव में गुरुजी की इच्छा है तो यह हमारे भले के लिए होगा। (उन दिनों मेरी सहेली नीलम हमें गुरुजी के यहाँ लेकर जाती थी)। आज हमारे पास दो गाड़ियाँ हैं - उसी मॉडल और रंग की जो गुरुजी ने मुझे सपनों में दिखाई थीं। (हम यह कहते हैं कि गुरुजी ने हमें अपनी गाड़ियाँ दी हैं इस्तेमाल करने के लिए)। हमने गुड़गाँव में अपना घर भी बेच दिया जब गुरुजी ने हमें कहा कि वह हमारे लिए ठीक नहीं है। हमें जो पैसे मिले वह उतने थे जो गुरुजी ने हमें सपने में दिखाए थे।

बारह साल की उम्र से मुझे हॉर्मोन सम्बन्धी परेशानी रही है। चिकित्सकों का कहना था कि इसका कोई इलाज नहीं था, और मुझे आजीवन हॉर्मोनल थेरेपी लेकर इसके साथ ही जीना पड़ेगा। जब मैंने गुरुजी के यहाँ आना शुरू किया, मेरी यह समस्या धीरे-धीरे समाप्त हो गई, बिना मेरे गुरुजी को इसके बारे में एक शब्द भी कहे या कोई दवाई लिए। आपको उन्हें अपनी परेशानी बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे भगवान हैं और जानते हैं कि आपके साथ आगे और आगे के जन्मों में क्या होने वाला है। वह हर जगह हैं। वह कोई भी भाषा बोल और समझ सकते हैं परन्तु कभी-कभी तो आपको कुछ भी बोलने की आवश्यकता नहीं पड़ती (मन में भी नहीं), आपके मन की गहराइयों की बात भी वह समझ लेते हैं। मैं उनसे प्रार्थना करती हूँ कि उनके लिए हमारा प्रेम दिन-प्रतिदिन बढ़ता रहे। वह हमेशा हमारे साथ हैं, हमारा हाथ पकड़े हुए, हमारा मार्गदर्शन करते हुए; हम हैं जो यह बात समझ नहीं पाते और छोटी-छोटी बातों को लेकर घबरा जाते हैं। भगवान हम सबसे बहुत प्यार करते हैं और हम उन्हें बहुत प्रिय हैं।

उनके संरक्षण में, उनकी उपस्थिति का एहसास करते हुए

मई 2007 में जब हम अमेरिका में थे तो हमें उनकी उपस्थिति महसूस हुई। मैं न्यू जर्सी में अपनी बहन, डॉ. मीता गोल्दर के यहाँ थी। 17 मई को, आधी रात के समय, सोने जाने से पहले मैं एक बड़ी काँच की खिड़की बंद कर रही थी जब वह पूरा काँच का ढाँचा ज़ोर की आवाज़ से मेरे सिर पर गिरकर हज़ारों टुकड़ों में चूर-चूर हो गया। हमारी सात साल की बेटी दो फीट दूर ही सो रही थी, और मेरे पति बस एक फीट दूर। मेरे पति जाग गए और उन्होंने देखा कि मैंने खिड़की का ढाँचा अपने सिर के ऊपर पकड़ा हुआ है; मैं हिल नहीं सकती थी क्योंकि मेरे और कालीन के ऊपर काँच के टुकड़े थे। मेरी बहन वैक्यूम क्लीनर लेकर आई और मेरे पति ने बड़े-बड़े नुकीले टुकड़े साफ किए। मेरा सिर और शरीर काँच के टुकड़ों और काँच के चूरे से भरा हुआ था। जिस पल काँच टूटा था, मैंने गुरुजी को याद किया और मुझे पता था कि सब ठीक होगा। और सब आश्चर्यचकित थे कि किसी को थोड़ी सी भी चोट नहीं लगी थी! कालीन पर काँच के इतने सारे टुकड़े थे, हम सब नंगे पाँव चल रहे थे, पर किसी को चोट नहीं लगी थी। हमें बचाने के लिए यह सिर्फ गुरुजी ही कर सकते थे।

जब हम समुद्र तट पर थे, मेरी बेटी को कई बार गुरुजी की सुगन्ध आई। यह गुरुजी का तरीका था हमें बताने का कि वह सदैव हम सब के साथ हैं। उन्होंने कैंसर और अन्य जानलेवा रोगों का उपचार किया है, बड़ी और छोटी परेशानियों में हमारी सहायता की है, हमारे उनको कुछ भी बोले बिना। यह कुछ ही उदाहरण हैं हमारे लिए उनके प्रेम के।

आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन सब लोगों का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने हमारा बुरा चाहा, हम आभारी हैं कि हमें कठिन समय से गुज़रना पड़ा वरना हम भगवान से नहीं मिलते, जो हमारे इतने करीब हैं। एक बार जो हम उनके संरक्षण में आ गए, हमारे साथ कुछ गलत नहीं हो सकता है क्योंकि वह अप्रिय घटनाओं को सौभाग्य में बदल देते हैं। गुरुजी ने मेरे पति को आशीर्वाद दिया, मेरी बेटी शायमा नारायण, और अमेरिका में मेरी बहनों और उनके बच्चों को भी। हम उनके बिना अपना जीवन सोच भी नहीं सकते और उनसे प्रार्थना करते हैं कि जैसे वह इस जीवन में हमें अपने करीब लाए, आगे के जन्मों में भी वह ऐसा ही करते रहें। हमारे पास जो कुछ भी है सब गुरुजी का दिया हुआ है। यहाँ तक कि जो श्रद्धा और विश्वास हमें उनमें है वह भी उनका आशीर्वाद है। हमें उनकी उपस्थिति का एहसास होता है और हर पल हम उनके आशीर्वाद का आनन्द उठाते हैं। गुरुजी अपना आशीर्वाद हम पर सदैव बरसाते रहें। सदैव जय गुरुजी महाराज! जय गुरुजी! जय गुरुजी! जय गुरुजी!

शताब्दी शंकर, एक भक्त

मार्च 2008