चंडीगढ़ में, 1991 में, अपने एक सहकर्मी के कक्ष में गुरुजी से मिलने के पश्चात मैं सदा उनका अनुयायी रहा हूँ। उस समय मैं आयकर पुनर्विचार अधिकरण का अध्यक्ष था। उस समय से, भले ही, मैं संगत में आऊँ या नहीं, वह सदा मेरे मन में बसते हैं। मेरे लिए यही उनका आशीर्वाद रहा है।
कुछ वर्ष पूर्व मैंने अपने आप को गुरुजी पर एक कविता लिखते हुए पाया। यद्यपि मैं लिख लेता हूँ, मैं अंग्रेज़ी भाषा का कवि नहीं हूँ। किन्तु उस दिन एक अज्ञात शक्ति मुझसे लिखवा रही थी। उनके जन्म दिवस के उपलक्ष्य पर उसकी सैंकड़ों प्रतिलिपियाँ बनीं और उसे गुरुजी के भक्तों में बाँटा गया।
जनवरी 2006 में मैं अकस्मात रुग्ण हो गया। मुझे ज्वर था और अपने कमरे में अचेतनावस्था में पाये जाने से पूर्व दो बार उल्टी कर चुका था। स्ट्रेचर पर मुझे सीधे अपोलो चिकित्सालय के गहन सेवा केंद्र में ले जाया गया था। चिकित्सकों के एक दल ने परीक्षण करने के पश्चात पाया कि गुर्दे के संक्रमण ने मेरे पूरे शरीर को ग्रस्त कर लिया था - मेरे गुर्दे और यकृत ने काम करना बंद कर दिया था। मेरे हृदय का आकार बढ़ गया था और मेरी आँतों से रक्त स्त्राव हो रहा था। मस्तिष्क प्रभावित हो गया था और मुझे श्वसनक ज्वर था। इस आधार पर चिकित्सकों ने मेरे जीवन की आशा छोड़ दी थी और यह मेरे परिवार को भी बतला दिया था। तथापि उन्होंने कहा था कि यदि मैं अगले 24 घंटे जीवित रह पाया तो कुछ आशा की जा सकती थी।
गहन सेवा केंद्र में चिकित्सक मेरे साथ लगे रहे। एक दिन प्रातः 4 बजे, जब मैं अर्ध चेतना में था और नर्स कोई विशेष शिरा ढूँढ़ रही थी, तो मैंने एक चिकित्सक को कहते हुए सुना, "मैंने सब संभव कर लिया है, पर कुछ नहीं हो रहा है।" मैं भयभीत हो गया।
वहाँ लेटे हुए, अपने अस्थिर मन से, मैं गुरुजी से संपर्क स्थापित करने का प्रयत्न करता रहा था। उस दिन मैंने उनके उस चित्र पर ध्यान केन्द्रित किया जिसमें वह अपने दोनों हाथ अपने मुख पर रखे हुए हैं, जैसे गूढ़ सोच में हैं - दिव्यता और शांति का प्रतीक। यह चित्र मेरे घर में है। जैसे ही यह चित्र मेरे मन में आया, मैंने तुरन्त अपने शरीर और मन में अद्भुत राहत का अनुभव किया और मेरा स्वास्थ्य लाभ आरम्भ हो गया। मेरा वज़न 25 किलो घट गया था और मेरे शरीर का ढाँचा बिल्कुल ढीला हो गया था। कई महीनों तक मैं चल या बात नहीं कर पाया। मेरा उपचार कर रहे चिकित्सक ने पूछा, "आप कैसे बच गये? आपसे आधी आयु के व्यक्ति का भी ऐसे लक्षणों के साथ बचना कठिन था।" चिकित्सक को पता नहीं था कि मेरे रक्षक, गुरुजी महाराज, एम्पायर एस्टेट से सब नियंत्रित कर रहे थे। जय गुरुजी!
एस के चंदर
जुलाई 2007