काश गुरुजी और मैं कभी अलग ना हों। गुरुजी मानव रूप में भगवान हैं। और मुझे भगवान और जादू, दोनों की आवश्यकता थी।
"यहाँ जादू हो सकता है।" यह श्री रघु राय के शब्द थे जब वह मुझे सितम्बर 2006 में पहली बार गुरुजी के पास लेकर गए।
वास्तव में, भयानक हालातों से जूझने के लिए मेरे परिवार को जादू की ही आवश्यकता थी। मेरे भाई को फिर कैंसर हो गया था और चिकित्सकों ने उसे अधिक से अधिक दो से तीन महीने तक का समय दिया था। 2003 में अस्पताल ने उसका नॉन-होडग्किन्स लिम्फोमा का परिक्षण किया था। एक साल बाद उसे फिर कैंसर हो गया और स्टेम-सेल ट्रान्सप्लान्ट के लिए उसे लंडन जाना पड़ा। अब सितम्बर 2006 में उसे फिर कैंसर हो गया था और इसका कोई उपचार नहीं बचा था। चिकित्सक अब कुछ नहीं कर सकते थे।
मैं अपने भाई और माता-पिता को लेकर बहुत परेशान थी। मुझे पता था कि मेरे माता-पिता इतना बड़ा सदमा सह नहीं पाएँगे। मेरे पिता की उम्र अस्सी वर्ष से अधिक थी और माँ बिस्तर से उठने में असमर्थ थीं क्योंकि 2005 में सेरिब्रल स्ट्रोक के कारण से उन्हें लकवा हो गया था।
मैं पागल-सी हो गई थी और मुझे जिसने जो कुछ भी करने को कहा मैंने वह किया — रेकी, बुद्धिस्ट हीलिंग, चैंटिंग, हर तरह की पूजा-पाठ और प्रार्थना, मंदिरों में जाना, इत्यादि। और अब मैं गुरुजी के दरबार पहुँची थी।
मुझे अनुभूति हुई कि पहली बार ही जब मैंने उनके चरण कमलों में प्रणाम किया तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया। मुझे एक अद्भुत पर भौतिक अनुभूति हुई, एक आनन्दमय अल्पकालिक सा एहसास . . . . . मेरा मन कर रहा था कि मैं वहीं उनके चरण कमलों में हमेशा के लिए अपना माथा टेके रहूँ!
क्योंकि मेरा भाई नास्तिक था, वो ताम्बे के लोटे द्वारा आशीर्वाद के लिए कभी नहीं मानता (वह कोलकता में रहता है और उसने गुरुजी या उनका मंदिर नहीं देखा है)। इसलिए श्री राय ने मुझे सलाह दी कि मैं हर सप्ताह गुरुजी के पास आऊँ और उनसे 'कनेक्शन' बनाने का प्रयास करूँ। मैंने ऐसा पूरी श्रद्धा के साथ किया। मैं गुरुजी की ओर चुम्बक की तरह खिँचती हुई चली गई, क्योंकि उनके चरण कमलों में मेरे व्याकुल मन को शान्ति और उम्मीद मिलती थी। और कई बार गुरुजी ने मुझे अपनी गुलाबों की सुगंध से आशीर्वाद दिया, जैसे कि वह मुझे आश्वासन दे रहे हों कि वे हमारा ख्याल रख रहे थे।
उसी समय श्री राय और कर्नल (सेवानिवृत्त) चटर्जी के सत्संगों के माध्यम से मुझे उम्मीद और हिम्मत मिलती रही कि गुरुजी असाध्य समस्याओं को भी ठीक कर देते थे।
धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा कि मैं एक बहुत ही विशिष्ट जगह आ गई थी, जैसी पूरी दुनिया में और कोई नहीं थी।
आज जब मैं यह लिख रही हूँ, 3.5 साल से अधिक हो चुके हैं और मेरा भाई बिलकुल ठीक है जबकि चिकित्सकों ने उसके लिए सिर्फ तीन महीनों का समय बताया था। और मैं यह जानती हूँ कि अब उसे कुछ छू भी नहीं सकता है क्योंकि भगवान उसकी रक्षा कर रहे हैं, यानि स्वयं गुरुजी।
गुरुजी के आशीर्वाद से मेरी माँ भी ठीक हो गईं। 2.5 साल बिस्तर तक सीमित रहने के बाद वह चलने लगीं और थोड़ी सहायता के साथ सीढ़ियाँ भी उतरने चढ़ने लगी हैं।
मार्च 2010 में गुरुजी ने यह सुनिश्चित किया कि जिस समय मेरी माँ को दोबारा सेरिब्रल थ्रोम्बोसिस हुआ, उस समय मैं सत्संग में थी। ( इस बात पर ध्यान दिया जाए कि जब मैं गुरुजी के सत्संग में जाने की तैयारी कर रही थी उस समय मुझे बिलकुल पता नहीं था कि मेरी माँ कोलकता में बीमार थीं। अब वह बिलकुल ठीक-ठाक घर वापस आ गई हैं और मेरा पूरा विश्वास है कि वह दोबारा चलने फिरने लगेंगी। मेरी माँ को इतने बड़े संकट से बचाने के लिए गुरुजी ने मुझे अपने पास बुलाया। चिकित्सकों का यह भी कहना था कि मेरी माँ सही समय पर बच गईं वरना उनके साथ कुछ बहुत बुरा हो सकता था।
गुरुजी ने जो असंख्य आशीर्वाद और संरक्षण की कृपा मुझ पर और मेरे परिवार पर बरसायी है उसकी मैं गणना नहीं कर सकती हूँ। उनके चरण कमलों में मैं ह्रदय से प्रणाम करती हूँ। मैं और मेरा परिवार सदा उनके चरणों की शरण में रहे, और हम समय के अंत तक भी जुदा ना हों।
सुदखिना दत्ता, एक भक्त
जून 2010