वर्ष 2001 में मैंने पहली बार कर्नल चटर्जी से गुरुजी के बारे में सुना था। उन्होंने मुझे गुरुजी का चित्र दिखाया और उनके कुछ चमत्कारों का वर्णन किया था।
उस समय एक नए शहर में, एक नई नौकरी के साथ मेरे जीवन में अत्याधिक उथल पुथल थी। इस नए कार्यालय में आने के पश्चात् एक माह में मुझे इंग्लैंड जाना था। किन्तु नौ मास बीत जाने के बाद भी इस योजना का कुछ अता-पता नहीं था और दिल्ली जैसे महंगे शहर में मुझे घर आदि ढूँढ कर जीवन को सुनियोजित करने में अत्याधिक व्यय करना पड़ा था। आर्थिक समस्याओं के होते हुए मेरी पत्नी का गर्भपात भी हो गया था। इसके कारण कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ आ गयीं थीं और स्त्री रोग विशेषज्ञ ने, यदि यह स्वयं ठीक नहीं हों तो, शल्य क्रिया करवाने का परामर्श दिया था।
जुलाई 2001 में हम एम्पायर एस्टेट में गुरुजी के पास पहुँचे, परन्तु उनके जालंधर चले जाने का सुन कर अत्यंत निराश हो कर लौटे। बाद में, उसी मास में हमें गुरुजी के प्रथम दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने हमसे थोड़ा सा वार्तालाप किया और लंगर ग्रहण करने को कहा (उन दिनों गुरुजी के चयन अनुसार ही कुछ भक्तों को लंगर दिया जाता था)।
घर लौटने पर हमें अभूतपूर्व कृपा का आभास हुआ और एक लम्बे अंतराल के बाद हम शांति से सो पाए। उस दिन से हमारे जीवन में परिवर्तन आने लगा। सर्वप्रथम मेरी पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। कुछ मास में ही मुझे पहली बार विदेश भेजा गया और अपने कार्य में भव्य सफलता मिलने के थोड़े समय के बाद ही मुझे लम्बी अवधि के लिए पुनः विदेश में नियुक्ति मिली। यह अभी भी चल रही है। कुछ वर्षों में हमें पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई।
रक्त चाप
मेरी पत्नी दीर्घकाल से उच्च रक्त चाप की रोगी रही थी। गर्भकाल एवं प्रसव और अन्य संभव दुष्परिणामों से बचने के लिए उसे औषधियाँ लेना आवश्यक था। क्योंकि जीवन भर ऐसी औषधियों का सेवन अनुचित लगता था, बीच-बीच में वह इनको रोक देती थी किन्तु रक्त चाप पुनः बढ़ने के कारण उसे फिर औषधियाँ लेनी आरम्भ करनी पड़ती थीं।
वर्ष 2003 के आरम्भ में, एम्पायर एस्टेट में एक संगत में, जब हम दोनों गुरुजी से प्रसाद ग्रहण करने पहुँचे, तो उन्होंने हमारे एक रंग के हरे परिधान देख कर व्यंग्य कसा। फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि मुझे विवाह के लिए चंडीगढ़ की यह 'कुड़ी' कैसे मिल गयी। मुझे अत्यंत आश्चर्य और प्रसन्नता हुई कि मैं उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। इस वार्ता का प्रभाव अगले दिन प्रातः मेरी पत्नी के रक्त चाप में दृष्टिगोचर हुआ - उसके जीवन में पहली बार, बिना औषधि के, निम्न रक्त चाप का परिणाम मात्र 80 था। उस दिन से उसको जीवन में कभी रक्त चाप की समस्या नहीं हुई। केवल गर्भ काल के अंतिम दिनों में कुछ समय तक यह रहा, किन्तु न तो इससे भ्रूण वृद्धि में कोई रुकावट हुई और न ही निर्धारित समय से पूर्व प्रसव करवाना पड़ा। इस अंतराल में उसने इन औषधियों का सेवन किया और उसके उपरान्त बंद कर दीं।
विदेश नियुक्ति
सितम्बर 2000 में दिल्ली स्थित सीमेंस में नवीन कार्य पद संभालने का प्रमुख आकर्षण विदेश में नियुक्ति प्राप्त होने का था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। फिर भी,गुरुजी की दया से मुझे बीच-बीच में अल्प काल के लिए इंग्लेंड जाने के कुछ अवसर प्राप्त हुए। वर्ष 2002 में, 9 सितम्बर 2001 को अमरीका में न्यू यॉर्क पर हुए हमलों के फलस्वरूप, विश्व भर में सूचना प्रोद्योगिकी क्षेत्र में प्रसार के कार्यक्रम रुक गये थे। इससे लम्बी अवधि के लिए विदेश जाने की आशाएँ भी चूर-चूर हो गईं । तद्यपि, मैं संगत में और घर पर गुरुजी से प्रार्थना करते रहता था और, अंततः अप्रैल 2003 में इंग्लेंड जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ का कार्यकाल केवल छः माह का था, किन्तु यह ऐसे समय पर आया था जब अन्य संस्थान अपने कर्मचारियों की छँटनी कर रहे थे। ऐसे प्रतिकूल वातावरण में इस प्रकार का कार्य प्राप्त कर मैं आनंदित था।
जब मैं अपने कार्य आज्ञा पत्र की प्रतीक्षा और जाने के प्रबन्ध कर रहा था, मुझे गुरुजी के एक भक्त के यहाँ विवाह समारोह में जाने का निमंत्रण मिला। इस पर गुरुजी ने अपने हाथों से 'इंग्लेंड' लिखा हुआ था। जब हम जाने से पूर्व गुरुजी की आज्ञा लेने पहुंचे, मेरी पत्नी ने उनसे अपने पिता और बहन (डाउन सिंड्रोम की रोगी) के लिए आशीर्वाद माँगने का विचार बनाया था। उसके कुछ बोलने से पूर्व ही गुरुजी बोल पड़े, "साड्डे तो वड्डा पेरेंट कौन है?" हमें तुरन्त आभास हो गया कि उनका आशीर्वाद सदा उनके साथ रहेगा।
कार्य स्थल (मेनचेस्टर के निकट ब्लेकपूल) पहुँचने पर मुझे बताया गया कि अवधि घट कर चार मास भी हो सकती है। लेकिन गुरुजी की दया से मेरा कार्यकाल नहीं घटा और, उसकी समाप्ति पर, मुझे वहीं पर एक अन्य परियोजना का कार्य सौंपा गया। यह कार्य दस माह से अधिक चला और उसकी समाप्ति पर, अगस्त 2004 में, जब मैं स्वदेश लौटने को तत्पर था, मुझे बरमिंघम के निकट टेलफोर्ड, एक नवीन परियोजना पर भेज दिया गया, जहाँ मैं एक वर्ष से अधिक रहा। कार्य की मध्यावधि में मुझे नॉटिंघम स्थानांतरित कर दिया गया जहाँ कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही हमारे पुत्र का जन्म हुआ। सितम्बर 2005 में, जब हम वापस भारत आने के प्रबन्ध कर रहे थे, मुझे लन्दन स्थित प्रसिद्ध बी बी सी कंपनी में कार्य करने के लिए स्थानांतरित कर दिया गया। इंग्लैंड में प्रारम्भिक अवधि कुछ मास की होते हुए भी यहाँ पर मैं दो से अधिक वर्ष तक कार्यरत रहा हूँ।
नॉटिंघम स्थानातरण
जब मेरी पत्नी ने गर्भाधारण किया, मैं इंग्लेंड के श्रौपशायर क्षेत्र में टेलफोर्ड नाम के एक छोटे शहर में नियुक्त था। रहने के लिए अच्छा, शांत स्थान होते हुए यहाँ पर चिकित्सा, विशेषकर गर्भ सम्बंधित सेवाओं का प्रायः अभाव था। स्थानीय चिकित्सालय में प्रासविक केंद्र दाईयाँ चलाती थीं और कोई विशेषज्ञ सेवाएँ उपलब्ध नहीं थीं। गंभीर रोगियों को 16 मील दूर श्रीयुस्बरी स्थित बड़े चिकित्सालय में भेजा जाता था जहाँ पहुँचने में आधे घंटे का समय लगता था; टैक्सी का व्यय भी कोई कम नहीं था।
मेरी पत्नी के उच्च रक्त चाप के कारण यह निश्चित था कि अंततः उसे श्रीयुस्बरी चिकित्सालय भेजा जाएगा। यद्यपि इंग्लेंड की नेशनल हेल्थ सर्विस की सेवाएँ उच्च स्तर की हैं, किसी आकस्मिक परिस्थिति में या गर्भावस्था या फिर, प्रसव काल की अवधि में इतनी यात्रा करने के विचार से हम चिंतित हो गए थे। चिकित्सालय के नियमों के अनुसार, पत्नी के प्रसव की अवधि में, पति रात भर चिकित्सालय में नहीं रह सकते थे। और उस अंतराल में मेरी चिकित्सालय के पास रहने की हार्दिक अभिलाषा थी जो यहाँ रहते हुए संभव नहीं लग रहा था - यदि उसे वहाँ पर छोड़ कर मुझे घर वापस आना पड़े तो....
सदा की भांति हमने इन प्रश्नों का समाधान गुरुजी पर छोड़ दिया। एक रात को मेरी पत्नी को गुरुजी ने स्वप्न में बताया कि सब ठीक हो जाएगा। कुछ ही दिनों में सूचना आयी कि टेलफोर्ड स्थित इकाई को बंद कर समस्त कर्मचारियों को नॉटिंघम स्थानांतरित किया जा रहा है। नॉटिंघम एक बड़ा नगर है जहाँ उच्च स्तर की प्रायः सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अंततः हमारे पुत्र का जन्म, प्रसव सेवाओं के लिए इंग्लेंड के एक सर्वोत्तम संस्थान, क्वीन मेडिकल चिकित्सालय में हुआ।
नॉटिंघम में घर
चिकित्सा सुविधाओं के दृष्टिकोण से नॉटिंघम आना शुभ समाचार होते हुए कार्य अधिक था और हम नॉटिंघम (रेल द्वारा 2-3 घंटे) घर ढूँढने नहीं जा सकते थे। अतः जिस संस्थान के लिए हम कार्यरत थे उसी को घर खोजने का कार्य सुपुर्द किया गया। मैंने अपने प्रबन्धक से अपनी पत्नी की स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्या और उसकी गर्भावस्था का उल्लेख किया था; उसके साथ उसे किसी दूरस्थ स्थान पर अकेले रहने की संभावना थी किन्तु इन सब को अपवाद नहीं माना गया। अगले कुछ दिनों में कुछ घर देखे गये और मुझे उनसे सम्बन्धित विवरण/ इंटरनेट के पते भेजे गये। किन्तु वह सब स्थान अनुचित होने के कारण मैंने उन सबको ठुकरा दिया।
यह सब आरम्भ होने से पूर्व मैंने इंटरनेट पर, क्वीन मेडिकल चिकित्सालय, जहाँ मेरी पत्नी को गर्भावस्था में भेजे जाने की संभावना थी, के निकट एक अच्छा सा लगता हुआ मकान देखा था। मुझे उस क्षेत्र की थोड़ी सी भी जानकारी नहीं थी; तथापि उसके चित्र और अन्य सूचनाएँ अच्छी लग रहीं थीं। उनके आधार पर वहाँ पर जा कर रहना जुआ खेलने के समान होगा। कोई अन्य विकल्प न होते हुए एकमात्र यही उचित उपाय लग रहा था। अतः मैंने इस संस्थान को बताए बिना और कोई आर्थिक मूल्यांकन करवाये बिना उस घर को लेने का निश्चय कर लिया। यह मेरे परियोजना प्रबन्धक के निर्णय की अवज्ञा करने के समान था किन्तु गुरुजी का आश्रय लेकर हम अपने अंतर्ज्ञान पर निर्भर रहे।
इंग्लेंड में रहते हुए यह घर सबसे अच्छा रहा है। उसमें सब संसाधन सुचारू और अत्यंत अच्छी अवस्था में थे। क्वीन मेडिकल चिकित्सालय से यह केवल 10 मिनट पैदल और कार से 3 मिनट की दूरी पर था। 10 कर्मचारियों के हमारे दल में अन्य सब सदस्यों को, उन सब घरों में, जो उनके लिए देखे गये थे, गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा।
भ्रूण हृदय गति
गर्भावस्था में नियमानुसार परीक्षण करवाने के एक अवसर पर, क्वीन मेडिकल चिकित्सालय के गर्भ आंकलन केंद्र में भ्रूण की हृदय गति नापने के यंत्र पर मेरी पत्नी को लिटाया गया था। सामान्यतः यह गति 140-170 रहती थी किन्तु उस दिन वह 200 निकली और फिर अचानक भ्रूण ने कुछ हरकत की और वह 220 तक पहुँच गई और उसी स्तर पर रही। उस समय तक उपस्थित परिचारिका 200 की गति देख कर कह रही थी कि उच्च होते हुए असामान्य नहीं है। इतनी अधिक गति देख कर वह तुरन्त अपनी वरिष्ठ चिकित्सक के पास भागी। इस भय से कि भ्रूण पर कोई दबाव पड़ रहा होगा मैंने गुरुजी द्वारा दिया हुआ उनका चित्र अपनी पत्नी के पेट पर रख दिया और मन ही मन मृत्युंजय मन्त्र का पाठ किया। कुछ ही देर में हृदय गति नीचे चली गई और फिर उसी स्तर पर रही। परिचारिका को अपने वरिष्ठ चिकित्सक के साथ आने तक स्थिति सामान्य हो चुकी थी।
प्रसव और अन्य गंभीर समस्याएँ
वर्ष 2005 में गुरुजी की कृपा से हमें पुत्र प्राप्ति हुई। मेरी पत्नी का प्रसव काल अत्यंत लम्बा और अथक वेदना से पूर्ण रहा था - औषधियाँ लेते हुए भी एक अवसर पर उसके रक्त चाप का निम्न स्तर 132 तक चला गया था और वह अर्ध चेतनावस्था में चली गई थी। चिकित्सक उस पर आकस्मिक शल्य क्रिया करने का विचार कर रहे थे - फिर गुरुजी से प्रार्थना करने पर उसकी स्थिति और प्रसव सामान्य हुए और कोई अन्य बाधा नहीं आई।
स्वस्थ शिशु के जन्म का आनंद अल्पकालीन रहा क्योंकि उसके रक्त परीक्षण में कुछ अनियमितता पायी गयी और उसे मूत्र नहीं हो पा रहा था। चिकित्सक उसके रोग के स्त्रोत या स्वभाव से अपरिचित थे अतः वह उसका निदान नहीं कर पा रहे थे। परीक्षण करते हुए उन्होंने दो दिन के शिशु के मेरुदंड (स्पाइन) से तरल निकालने का भी प्रयास किया किन्तु असफल रहे। अतः उन्होंने उसे प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) औषधियाँ देनी आरम्भ कर दीं जिससे उसे इस रोग से छुटकारा मिल सके।
चिकित्सक उसे आवश्यकता से अधिक खाद्य पदार्थ देने के बाद (ड्रिप भी दिया गया) भी उसके प्रथम चार दिनों में मूत्र न कर पाने से अधिक चिंतित थे और उन्हें उसके शरीर में संभव जल की कमी का अधिक संशय था। कुछ चिकित्सकों ने उसके गुर्दों के निरीक्षण का सुझाव भी दिया। अन्य उसे अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थ देकर निर्जलन की संभव शंका को समाप्त करने के पश्चात् ही उसके गुर्दों के परीक्षण करने पर विचार कर रहे थे।
जैसे यह समस्या कम नहीं थी, मेरी पत्नी को भी गंभीर मूत्र रोग हो गया और उसका तापमान 105 डिग्री तक पहुँच गया। माँ और शिशु की गंभीरता देखते हुए उन दोनों को गहन सेवा केंद्र में भेज दिया गया। विदेश में मैं बिलकुल अकेला था - परिवार, किसी सम्बन्धी या मित्र का साथ नहीं था। मेरे दल के सदस्य स्वदेश लौट चुके थे क्योंकि परियोजना की अवधि समाप्त हो चुकी थी। गुरुजी द्वारा दिए गये उनके चित्र हमने शिशु के शरीर पर और उसकी शय्या पर बार-बार रखे और उनसे सहायता की अत्याधिक विनती की। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में हम और क्या कर सकते थे?
शीघ्र ही सब आशानुकूल होना आरम्भ हो गया - शिशु ने पहली बार मूत्र किया और उसके पश्चात् हमने कभी उसके संक्रमण के बारे में और नहीं सुना। चिकित्सकों के अनुसार शिशु के रक्त में वह संक्रमण संभवतः उसकी माँ का रहा होगा। मेरी पत्नी को तीव्र प्रतिजैविक औषधियाँ दी गयीं और उसके स्वास्थ्य में भी सुधार आया। दोनों को जन्म के कुछ दिनों पश्चात् घर भेज दिया गया।
लन्दन स्थानान्तरण
नॉटिंघम में परियोजना की सफल समाप्ति पर मेरे दल के सब सदस्य जा चुके थे। हमें रुकना पड़ा क्योंकि उस समय मेरी पत्नी के गर्भाकाल का नौवाँ मास चल रहा था और प्रसव कभी भी हो सकता था। शिशु के जन्म के पश्चात् हमने भारत लौटने से पूर्व एक माह और रुकने का निर्णय लिया। हमें शिशु के 3-4 मास होने के उपरान्त ही लौटने को कहा गया क्योंकि वायुयान में उसके कानों को अपरवर्तनीय क्षति पहुँच सकती थी। भारत में मेरे प्रबन्धक ने इंग्लेंड के प्रबन्धक से मेरे लायक किसी अन्य कार्य के बारे में बात करने का आश्वासन तो दिया किन्तु मेरी योग्यता के अनुसार, अच्छे स्थान पर, कोई और कार्य मिलने की संभावना बहुत कम थी। हम गुरुजी से उपाय के लिए निवेदन करते रहे और शिशु के जन्म के एक सप्ताह में ही मुझे यहाँ स्थित एक प्रबन्धक से फोन आया। उसने पूछा कि क्या मैं बी बी सी में कार्य करने को तत्पर होने के साथ दो सप्ताह में लन्दन पहुँच सकता हूँ।
प्रसव, उसके बाद की घटनाएँ और मेरी पत्नी का क्षीण स्वास्थ्य होते हुए, गुरुजी के आशीर्वाद से हम अपना सामान बंद कर तीन सप्ताह के शिशु के साथ लन्दन जा सके। यद्यपि नॉटिंघम से लन्दन तक सामान्यतः तीन घंटे लगते हैं, किन्तु व्यस्त यातायात के कारण हमें छः लग गये। मार्ग में मेरी पत्नी को वेदना तो अवश्य हुई पर लन्दन पहुँच कर वह शीघ्र स्वस्थ हो गयी और अब हम यहीं पर हैं।
सुदेशना एवं पुष्पल दास, लन्दन
मई 2011