मैं प्रभु के चरण कमलों में नतमस्तक होती हूँ कि वह अपनी कृपा मुझ पर करें कि उनके प्रदान किए हुए कुछ दिव्य आशीर्वाद मैं सबके साथ बाँट सकूँ।
बचपन से मैंने रविवार सुबह दिखाये जाने वाले महाभारत और श्री कृष्णा धारावाहिकों के माध्यम से भगवान को समझा था। जैसे श्री कृष्णा ने पांडवों का हर कदम पर मार्गदर्शन किया और अपने भक्तों के कल्याण के लिए लीलाएँ सूनियोजित कीं, वह मुझे बहुत आकर्षक लगता। समय के साथ भगवान के दर्शन पाने अभिलाषा बढ़ती गई और अंजाने ही एक दिन मुझे गुरुजी के दरबार का बुलावा आया। मैंने बाद में समझा कि मेरी प्रार्थना स्वीकार की गई थी।
गुरुजी के दरबार जाना एक ऐसी यात्रा थी जिसने मुझे एक बिलकुल ही अलग पर आकर्षक दुनिया में पहुँचा दिया था: संतोष से परिपूर्ण, क्षणभंगुर वस्तुओं से दूर ले जाते हुए और चिंताओं को कहीं लुप्त करते हुए पूरी तरह से हितकारी। मुझे गुरुजी को सुनने का या बात करने का सुअवसर नहीं प्राप्त हुआ था परंतु अनजाने में उनका अनुसरण कर रही थी। जल्द ही मुझे ज्ञात हुआ कि मैं उनकी अनुयायी हो गई थी।
तब से जीवन गुरुजी के साथ संजो के रखने वाला एक आशीर्वाद बन गया है जिसमें तन, मन और अंतरात्मा उनके संरक्षण में हर पल उत्साह में हैं। हमारे सबसे अच्छे मित्र या रक्षक की तरह, गुरुजी हमारी छोटी से छोटी इच्छा का भी ध्यान रखते हैं। आवश्यकता केवल इतनी है कि हम इसे समझें और मानें कि हमारे जीवन में एक दिव्य शक्ति है और उन्हें निष्ठापूर्वक समर्पण करें।
भगवान शिव के साथ सुबह एक बजे होली मनाई
13 फरवरी 2006 को हमें बड़े मंदिर जाने का मौका मिला। उस दिन मेन हॉल में रखी हुई शिवजी की मूर्ति में हमने प्रत्यक्ष बदलाव देखे। दाहिनी आँख और निचला होंठ आगाड़ी में बढ़ गए थे और शिवजी बड़े मनमोहक ढंग से मुस्कुरा रहे थे। क्योंकि उस दिन मेरे पास मेरा मोबाइल था, मैंने कुछ तस्वीरें ले लीं। वह तस्वीरें मेरे फोन में ही रहीं – और एक अद्भुत रात को मैंने वह दोबारा देखीं।
एक महीने बाद, 20 मार्च को, सोमवार के दिन हम बड़े मंदिर सेवा और दर्शन के लिए गए। वह बहुत ही अच्छा दिन था और आशीर्वाद के रूप में हमें बहुत सारा प्रसाद और सत्संग मिले। रात को करीब आठ बजे हमें घर जाने के लिए कहा गया। मैं बाहर शिवजी की मूर्ति के पास खड़ी थी, जब हमारा ध्यान उस मूर्ति के होठों के बीच एक महीन दाँतों की लकीर पर गया जो वैसे नहीं नज़र आती थी। हम भौंचक्के रह गए। जब हम जाने लगे, किसी ने हमें बताया कि बाद में रात को गुरुजी आने वाले थे। हम बहुत खुश हुए परन्तु हमें जाना पड़ा।
यद्यपि हम चले गए, हमारा मन बड़े मंदिर में ही था। रात का समय था पर मैं अभी भी सोच रही थी कि वहाँ क्या हो रहा होगा। रात के एक बज गए और मैं जागी हुई थी। बिना कुछ सोचे मैंने अपना मोबाइल निकाला और फरवरी में ली गई शिवजी की मूर्ति की तस्वीर खोली और उनके चेहरे पर अपना ध्यान केंद्रित किया। अचानक मुझे गुरुजी की आवाज़ सुनाई दी, "चल देख क्या होता है।" मैं शिवजी के केश देख रही थी जिनमें गंगा नदी का बसेरा है। पाँच मिनट व्यतीत गए लेकिन कुछ नहीं हुआ। जैसे मैंने उनके चेहरे की ओर देखा, मैं यह देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि आधा चेहरा लाल हो गया था और कंठ के पास तांबे के रंग का-सा धब्बा बन गया था।
मैं बहुत डर गई! मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई और मैं अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गई: गुरुजी ने मुझे आश्वासन दिया कि कुछ नहीं होगा और मैं तस्वीर देखती रहूँ। उनकी आज्ञानुसार मैं उस अँधेरे कमरे में उसी मुद्रा में रही, यहाँ तक कि मैंने अपना चश्मा भी नहीं पहना। फिर मैंने देखा कि शिवजी की तस्वीर में रंग प्रदर्शित हो रहे थे। दाहिने ओर गाल गुलाबी हो गये थे और भौहें हरी और गुलाबी हो गयी थीं। शिवजी के कंठ के आस-पास सर्प पर एक नीली रेखा आँखों सी प्रतीक हो रही थी। धीरे-धीरे ऐसा लग रहा था मानो रंग सारी मूर्ति पर छिड़क दिए गये हों – जैसे कि होली मना रहे हों। मैंने उस समय गुरुजी की अपरिमित कम्पन प्राप्त की। तीन बजे तक मुझे उनके दर्शन प्राप्त होते रहे, और यद्यपि मैं अपना मोबाइल दो घंटे लगातार देखती रही फिर भी मुझे आँखों में कोई थकान महसूस नहीं हुई। बाद में जब मैंने मोबाइल में गुरुजी की तस्वीरें देखीं तो पृष्ठभूमि में भी गुलाबी रंग का गुलाल देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई।
सुबह को मैंने जाकर अपने परिवार के सारे सदस्यों को वह तस्वीर दिखाई। उसी हफ्ते मैं अपना मोबाइल खास तौर पर एम्पायर एस्टेट ले गई ताकि संगत भी दर्शन कर सके। परंतु जैसे गुरुजी की इच्छा हुई, केवल तीन लोग ही दर्शन कर पाये और मेरे मोबाइल में कोई गड़बड़ हो गई और सब कुछ मिट गया।
यद्यपि हमने उस साल होली नहीं मनाई, गुरुजी ने उसे मेरे लिए सबसे यादगार बना दिया। ऐसे चमत्कारी दर्शन के लिए मैं गुरुजी का धन्यवाद करती हूँ।
गुरुजी के प्रसाद से कॉलेज में सर्वोच्च अंक
2006 में लोहरी के दिन गुरुजी ने अपने हाथों से अनुयायियों को प्रसाद बाँटा – मूँगफली, मिश्री और इलायची। कुछ प्रसाद का हमने वहीं आनंद उठाया और कुछ हम घर ले गए। कुछ प्रसाद मैंने अपने दूसरे साल की फाइनल परीक्षाओं के लिए रख दिया, पर फिर मैंने वो खा ही लिया।
मेरी परीक्षा का पहला दिन था और मैं सुबह गुरुजी से प्रार्थना कर रही थी कि अचानक मुझे उनकी आवाज़ सुनाई दी यह कहते हुए, "जा, प्रसाद ले ले"। विस्मित लेकिन खुशी-खुशी मैंने एक छोटी थैली निकाली जिसमें गुरुजी द्वारा पहले दी गई मूँगफलियों के छिलके रखे थे, यह सोचकर कि उनमें शायद अभी कुछ होगा। पर वह खाली थी। क्योंकि गुरुजी का निर्देश तो मानना ही था, मैंने मूँगफली के छिलके का छोटा सा टुकड़ा लिया और खा लिया। बाद में जब मैं नीचे गई तो अचानक मेरे पिताजी ने पूछा, "क्या तुमने प्रसाद ले लिया?" मैंने जवाब दिया कि वह तो मैं पहले ही खा चुकी थी। वह अपने कमरे में गए और कुछ लेकर आये जो उन्होंने पहले से बचाकर रखा था। मैं आश्चर्यचकित थी। यह वही प्रसाद था जिसके बारे में गुरुजी ने कहा था। मैं अपनी सारी परीक्षाओं के दौरान वह प्रसाद खाती और उनके आशीर्वाद से मैं अपने कॉलेज में प्रथम स्थान पर आई। सचमुच, गुरुजी के कहे गए शब्द हम अपनी बुद्धि से समझ और उनका विश्लेषण नहीं कर सकते।
गाड़ी दुर्घटना से बचाव
एक बार मैं नॉएडा में पास के एक मॉल गई। उस दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। काम खत्म करके मैं गाड़ी में चली। बाहर निकलकर मैंने दोनो ओर देखा और सुनिश्चित किया कि कोई गाड़ी नहीं आ रही। जैसे ही मैं दायीं ओर मुड़ने लगी, मेरी गाड़ी एक ज़ोर के झटके के साथ रुक गई। ऐसा तभी हो सकता था जब किसी ने ज़ोर से ब्रेक दबाई हो, लेकिन मेरा पैर ब्रेक पर नहीं था। हक्की-बक्की हो मैंने यहाँ-वहाँ देखा तो पाया कि दायीं ओर से एक सफेद गाड़ी निकल कर गई। पाँच मिनट तक मैं वहीं भौंचक्की हुई उसी हालत में स्तंभित बैठी रही। अगर गुरुजी ने मेरी गाड़ी नहीं रोकी होती, वह गाड़ी बुरी तरह से मेरी गाड़ी को टक्कर मारती। उस दिन मुझे बचाने के लिए मैं गुरुजी का धन्यवाद करती हूँ।
पोस्ट-ग्रेजुएट में दाखिला
ग्रेजुएशन के तीसरे साल में मुझे अपने करियर के बारे में निर्णय लेना था। यद्यपि मुझे इकोनॉमिक्स पढ़ना पसंद था, नृत्य में हमेशा से मेरी रूचि रही है और मैं नृत्य में अपना करियर बनाने का सोच रही थी। 2007 में, एक रात मुझे गुरुजी के दर्शन हुए जिसमें मैंने उनसे पूछा, "गुरुजी, क्या मुझे नृत्य में अपना करियर बनाना चाहिए या इकोनॉमिक्स में एम. ए. करना चाहिए?" गुरुजी ने जवाब दिया, "एम. ए. कर ले।" उस साल मैंने एम. ए. के लिए बहुत प्रवेश परीक्षाएँ दीं किन्तु कहीं भी दाखिला लेने में सफल नहीं हुई। क्योंकि गुरुजी का निर्देश मानना था, मैंने एक साल कुछ नहीं करने का सोचा। मैं दूसरी बार कोशिश कर रही थी पर मुझे लग नहीं रहा था कि मैं कामयाब होऊँगी।
एक दिन मैं एम्पायर एस्टेट में अपनी आँखें बंद करके बैठी थी जब मुझे लगा जैसे गुरुजी ने मुझसे कहा, "आइ जी आइ डी आर बॉम्बे।" मैं आश्चर्यचकित रह गई! यह उन कॉलेजों में से एक था जो मेरे ध्यान में थे पर मैंने इसके बारे में ज़्यादा गंभीरता से नहीं सोचा था। उसके बाद, लगभग हर रात को मैं देखती कि गुरुजी मुझे बॉम्बे के दौरे पर ले जा रहे हैं, मरीन ड्राइव से समुद्र तट पर चौपाटी तक और वहाँ से लेकर बांद्रा की मार्किट तक। मैंने उस कॉलेज के बारे में खोज की और उसमें दाखिला लेने के लिए मेरी रुचि बढ़ गई। जब मुझे प्रवेश परीक्षा के लिए प्रवेश पत्र मिला तो मैं देखकर आश्चर्यचकित हो गई कि मेरा रोल नंबर 13 था (यह नंबर मेरे लिए बहुत शुभ है), मेरी परीक्षा का केंद्र शिव मॉडर्न स्कूल था और मेरी परीक्षा 27 अप्रैल को थी – जिस दिन डुगरी धाम में गुरुजी के भोग का आयोजन किया गया था।
परीक्षा के दिन, सफल होने और अपेक्षाओं पर खरे उतरने के दबाव के कारण मैं घबरा गई। जब मैं परीक्षा में बैठी तो मैंने गुरुजी की तस्वीर निकाली और अपने सामने रख दी। परीक्षा शुरू होने से बिलकुल पहले, मुझे गुरुजी के माथे पर 'ॐ' के दर्शन हुए। इससे मैं चिंतामुक्त हो गई। मैं अपने साथ एक पेन भी लाई थी जिस पर गुरुजी की तस्वीर थी जो मैंने सामने ही रखा हुआ था। अचानक निरीक्षक आई और उसने मुझ से पूछा कि क्या वो पेन वह इस्तेमाल कर सकती है क्योंकि उसके पास पेन नहीं था। मैंने उन्हें दे दिया यद्यपि मुझे हैरानी हुई कि निरीक्षक बिना पेन के आई थी। उसने मेरे सहित सभी के उत्तर-पत्र पर उसी पेन से हस्ताक्षर किए, और मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो गुरुजी मुझे अपनी उपस्थिति का आश्वासन दे रहे हों।
परीक्षा में 130 सवाल थे और हर अनुभाग हमें व्यक्तिगत रूप से उतीर्ण करना था। दो अनुभाग मैं उतीर्ण कर लूँगी इसका तो मुझे पूरा विश्वास था, किन्तु अंग्रेज़ी का भाग बहुत कठिन था। मैंने अपना पेन नीचे रख दिया और खुद को कहा कि इसमें दाखिला के बारे में तो मैं भूल ही जाऊँ। अचानक गुरुजी ने मेरे हृदय में एक सोच डाली: मैं महीनों तक इसमें दाखिला पाने और बॉम्बे आने के लिए इतने जोश से भरी हुई थी, ऐसे आखिरी पल में मैं कैसे हिम्मत हार सकती थी? मैंने खुद को संभाला और 110 सवाल हल किये, यद्यपि उसी साल से नकारात्मक अंकन होने वाला था।
जब परिणाम आया, साक्षात्कार के लिए पूरे देश से 110 विद्यार्थी चुने गए। मेरा नाम सातवें स्थान पर था। और तो और, मेरा साक्षात्कार 7 जुलाई को होना था, जो गुरुजी का जन्मदिवस है। गुरुजी के आशीर्वाद से, मेरा साक्षात्कार जो ले रहे थे, वह विनम्र थे और मैं हर सवाल का सही जवाब दे सकी। बहुत विद्यार्थी थे जो मुझसे ज़्यादा होशियार थे, परंतु उनके साक्षात्कार लेने वाले बहुत कठोर थे और वे विद्यार्थी हताश हुए। गुरुजी के आशीर्वाद से मेरा नाम 20 विद्यार्थियों की सूची में से एक था।
दाखिला मिलने से पहले ही मुझे दर्शन हुए थे जिसमें मैंने अपने आप को एम्पायर एस्टेट में गुरुजी का ग्रन्थ पढ़ते हुए देखा। उसमें एक लड़की का सत्संग था जिसमें वर्णन था कि कैसे गुरुजी ने उसे बॉम्बे में एक पोस्ट ग्रेजुएट कार्यप्रणाली में दाखिला दिलाया और जो दो साल वह वहाँ पर थी, उसका ख्याल रखा। अब मुझे समझ आता है कि गुरुजी ने मुझे मेरा ही सत्संग सालों पहले पढ़वाया था। और आज मैं यह दोहराती हूँ: जब मैं बॉम्बे में अपने घर से दूर थी तो गुरुजी ने मेरा बहुत ख्याल रखा। यद्यपि मेरी बहुत परीक्षाएँ ली गईं और मुझसे बहुत गलतियाँ हुईं, मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला और वह सीख हमेशा मेरे साथ रहेंगी। इस दिव्य अनुभव के लिए धन्यवाद गुरुजी!
गुरुजी की मेहर से नौकरी बदली
दिसम्बर 2011 से मैं दिल्ली में एक सरकारी संस्था में काम कर रही थी पर मैं खुश नहीं थी। मेरे वेतन बहुत कम था और काम भी मेरी क्षमता से बहुत कम था। मैं नौकरी बदलने के लिए बहुत उग्र थी पर कई महीनों की खोज के बाद भी मुझे कहीं से भी बुलावा नहीं आया। इसी बीच हमारी टीम में बहुत समस्याएँ उत्पन हुईं और इसके कारण मैं नौकरी छोड़ने के बारे में भी सोच रही थी। मैं बहुत कठिन समय से गुज़र रही थी जब एक दिन गुरुजी ने मुझे दर्शन दिए: मैंने देखा कि मैं गुरुजी के सिंहासन तक चल कर जा रही हूँ, उनके हाथों से प्रसाद लेती हूँ और व्याकुल होकर पूछती हूँ: "गुरुजी, मैं नौकरी छोड़ दूँ?" गुरुजी जवाब देते हैं, "मुझे एक बात बताओ, समझ बड़ी या समय बड़ा?" मैंने कहा, "गुरुजी समझ...नहीं गुरुजी समय!" गुरुजी चुप रहे। संदेश स्पष्ट था। कोई आवश्यकता नहीं थी कि मैं अपना दिमाग लगाऊँ और व्यर्थ ही कोई मानसिक दबाव लूँ। हम जितना समझ सकते हैं, समय का चक्र उससे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली होता है और समय के साथ सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा।
जल्द ही, एक दूसरी सरकारी संस्था में नौकरी के लिए मैंने एक विज्ञापन देखा। मैंने उस नौकरी के लिए आवेदन भेजा और मुझे साक्षात्कार के लिए बुलावा आया। उस नौकरी के लिए 15 लोग आए थे लेकिन गुरुजी की कृपा से मुझे नौकरी मिली और वो भी अच्छे वेतन के साथ।
यद्यपि इस नौकरी को पाने की कोशिश में मैंने बहुत उतराव और चढ़ाव देखे, गुरुजी का आश्रय और आशीर्वाद सदा मेरे साथ रहा है। यद्यपि मैंने बहुत मेहनत की, मैं विश्वस्त नहीं थी कि मेरा एक साल का कॉन्ट्रैक्ट आगे बढ़ेगा कि नहीं। परन्तु चूँकि गुरुजी मेरे साथ थे, मेरे खिलाफ कोई खड़ा नहीं हो सका और मेरा कॉन्ट्रैक्ट आगे बढ़ा दिया गया।
एक बार गुरुजी ने मुझे दर्शन दिए जब उन्होंने कहा: "खुश रहना है तो दान करो, न्याय चाहिए तो भगवान को याद करो।" हकीकत में, इस कलयुग में खुशी और न्याय पाना बहुत कठिन है और गुरुजी ने हमारा मार्ग दर्शन किया है।
सदैव आशीर्वाद
हम सब कितने भाग्यवान हैं! इस कलयुग में हम स्वयं भगवान शिव के दिव्य संरक्षण में हैं जो हमें सांसारिक भौतिकवाद और झूठे भ्रमों के दलदल से उभारते हैं। हम भाग्यवान हैं कि हमें इतने लाड़-प्यार से भरा जीवन मिला है। हमें भगवान शिव के चरण कमलों में बैठने को मिलता है, दिव्य और पवित्र लंगर खाने को मिलता है, मंदिर में सेवा करके अपने पाप धोने का मौका मिलता है और हर पल हमें गुरुजी का संरक्षण और मार्ग दर्शन उपलब्ध है और वह बिना कुछ कहे हमारे आने वाले कष्ट दूर कर देते हैं। इस कलयुग में कहाँ इतना निर्मल प्रेम और आनंद कोई प्रदान करता है? मेरा यह मानना है की अब हम साधारण मानव नहीं हैं, हम गुरुजी की संगत हैं। जैसे भगवान शिव ने शिव पुराण में बड़े सुंदर ढंग से आख्यान किया है, "जैसे सूरज प्रकृति में सब पौधों को समान रूप से बढ़ने के लिए अपनी किरणों के द्वारा प्रोत्साहित करता है, परन्तु कुछ फूल खिलते हैं और कुछ नहीं। यह केवल उनके भिन्न-भिन्न स्वभाव के वजह से है।" उसी तरह, गुरुजी ने मानव रूप में अवतार लिया हमें सांसारिक अर्जनशीलता से ऊपर उठाने के लिए और हमारी अंतरात्मा को शुद्ध करने के लिए; हम यह कितना कर पाते हैं वह पूरी तरह से हम पर निर्भर करता है।
हमें गुरुजी की दिव्य चरण पादुका (जूतियों) से प्रेरणा लेनी चाहिए, क्योंकि इतनी सरलता से किसी ने गुरुजी का कहा नहीं माना जितना उनकी पादुका ने। वह गुरुजी के दिव्य चरण सुशोभित करतीं और जहाँ गुरुजी चाहते वहाँ उनके साथ जातीं, बिना कोई सवाल किए। क्या हम गुरुजी के दिव्य प्रेम का प्रतिफल सम्पूर्ण समर्पण करके नहीं दे सकते?
सबसे महत्त्वपूर्ण सीख जो मुझे मिली है? सब कुछ झूठ है, गुरुजी ही परम सत्य हैं!
जय गुरुजी!
सुगन्धा गुप्ता, एक अनुयायी
फरवरी 2014