हो जाये यदि पृथ्वी कागज़,
और सब वृक्ष मेरी लेखनी।
सात सागर हों स्याही,
लिख नहीं पाऊँ, फिर भी,
गुरुजी, स्तुति आपकी।।
मैं गुरुजी से 1995 में जालंधर में मिली। संगरूर निवासी, सरदार सुदर्शन सिंह, ने मुझे अपना आदर प्रकट करने के लिए गुरुजी के पास भेजा था। उन्होंने कहा था कि गुरुजी इस पृथ्वी पर एकमात्र गुरु हैं जो नियति को बदल कर उसे पुनः लिख सकते हैं। मुझे उनका अर्थ समझ नहीं आया था।
जिस दिन मैं गुरुजी से मिली उन्होंने मुझे छावनी तक कार में ले जाने के लिए कहा क्योंकि वह दिल्ली में बड़े मंदिर भवन निर्माण के बारे में किसी को फोन करना चाहते थे। उस समय अँधेरा होने लगा था और वह पीछे की सीट से मुझे निर्देश दिए जा रहे थे। वह मुझे एक लेन में चलने के लिए कहते थे और थोड़ी देर बाद बदलने को। ऐसा कुछ बार होने के पश्चात् मैं सोच रही था कि वह ऐसा क्यों करवा रहे हैं। मुझे शीघ्र पता लगने वाला था।
उसी समय गुरुजी ने कहा कि कोने से एक काली गाड़ी आयेगी और मैं उसे हाथ देकर रोक लूँ । गुरुजी के कहने की देर थी कि एक काली फिएट गाड़ी दिखायी दी। उनके दो अनुयायी, कर्नल जोशी और उनका बेटा नितिन कार में थे। वह हमें अपने घर ले गये। मार्ग में नितिन ने बताया कि कुछ देर पूर्व ही उन्हें गुरुजी की उपस्थिति का आभास हुआ था, जब उनके घर में गुरुजी की तीव्र सुगन्ध आयी थी। उसी क्षण उन्होंने गुरुजी के जालंधर वाले मंदिर में जाने का मन बनाया था। वास्तव में वह एक अन्य मार्ग लेते थे, किन्तु उस दिन इस मार्ग से जा रहे थे। मुझे तुरन्त आभास हुआ कि यह प्रसंग गुरुजी ने अपना परिचय देने के लिए किया था - महापुरुष कितने सर्वज्ञाता और सर्वविद्यमान हैं।
लुधियाना जाते हुए नगर ओझल
जालंधर में गुरुजी से आज्ञा लेकर हम रात को 2:30 बजे लुधियाना के लिए निकले। कार में मेरे साथ मेरे पिता और मेरी दो बेटियाँ थीं। लुधियाना का मार्ग बिलकुल सीधा है और उसमें कोई मोड़ आदि नहीं हैं। सड़क पर और कोई गाड़ी नहीं थी और हम 90 किलोमीटर की गति से जा रहे थे। पर इस बार कुछ विशेष हुआ। रास्ते में मैंने फगवाड़ा, जो दोनों शहरों के मध्य का प्रमुख नगर है, पार नहीं किया। घर पहुँचने पर मैं सोच रही थी कि क्या हुआ होगा किन्तु समझने में असफल रही।
रहस्योद्घाटन अगले दिन हुआ जब मैं जालंधर में गुरुजी से मिली और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या गाड़ी 90 किलोमीटर की रफ्तार से जा रही थी। मैं स्तब्ध थी - उनको कैसे पता? गुरुजी ने बताया कि किसी ने मेरे ऊपर काला जादू किया हुआ था और उन्होंने उसके दुष्फल अपने ऊपर अंतरित कर लिये थे। गुरुजी ने रक्त की उल्टी भी की थी। उन्होंने अपने टखने पर एक काला चिह्न भी दिखाया जो कई मास तक बना रहा। उस समय मुझे भाग्य पुनः लिखने का अर्थ समझ में आया। गुरुजी ने बताया कि मैं अपने कष्टों के शिखर पर थी और यदि वह काला जादू हो जाता तो मैं 45 वर्ष की आयु से अधिक जीवित नहीं रहती। गुरुजी से उस भेंट के पश्चात्, मेरा मुख, जो काला हो गया था - काले जादू का मुख्य चिह्न - अपने स्वाभाविक रंग में आने लगा। मैंने कोई 14 किलो वजन खोया। आज मेरी आयु 50 वर्ष से ऊपर है और आनंदमय जीवन व्यतीत कर रही हूँ।
100 वर्ष पश्चात् मीठा जल
इन 12 वर्षों से अधिक समय में हमने अनेक दिव्य कृपा होती हुई देखी हैं। एक बार चंडीगढ़ के निकट दब्कौरी ग्राम में हमने एक भूखंड लिया था। गुरुजी ने वहाँ ट्यूबवेल लगा कर सब्ज़ियाँ उगाने के लिए कहा। पृथ्वी में जल की खोज आरम्भ हुई। खुदाई 420 फुट की गहराई तक हो गयी किन्तु जल नहीं मिला। सर्वेक्षण से पता लगा कि उस भूखंड में जल ही नहीं है। हमने दिल्ली जाकर गुरुजी को इस सर्वेक्षण से अवगत किया। गुरुजी ने उसी भूखंड पर एक अन्य स्थान पर खोदने के लिए कहा। वहाँ से इतना जल फूट कर बाहर आया कि पाइप टूटने को हो गये। आश्चर्यचनक रूप से वह मीठा था और उसमें से नीले कंकड़ निकल रहे थे। गुरुजी को धन्यवाद करने हम दिल्ली गये।
उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव ने, जहाँ वह बैठे थे, उसके निकट से जल निकाला था; उन्होंने यहाँ 250 किलोमीटर दूर दिल्ली में बैठ कर जल निकाला है और यह जल 100 वर्ष के बाद आया है। दब्कौरी गाँव में सब अचंभित थे। गुरुजी ने चेतनावनी दी कि यदि उसका जल बेचा तो वह कूप सूख जाएगा।
गुरुजी ने दिव्य विभूतियों के दर्शन करवाये
शेखों साहब, अध्यात्म ज्ञान में दक्ष, अपने बड़े भाई के साथ गुरुजी के दर्शन करने जालंधर आये। गुरुजी उन्हें अन्दर एक कमरे में ले गये। गुरुजी ने एक बिस्तर को हीरों के ज़ेवरों से भर दिया और उनमें से कोई भी उठाने के लिए कहा। गुरुजी से उन्होंने इन भौतिक वस्तुओं से दूर रखने के लिए निवेदन किया। फिर गुरुजी ने उनसे पूछा कि उन्हें क्या चाहिए। शेखों साहब ने उत्तर दिया कि वह गुरु नानक के दर्शन करना चाहते हैं। गुरुजी मुस्कुरा कर बाहर चले गये। डेढ़ मास के पश्चात्, एक दिन शेखों साहब अपनी पहली मंजिल के कक्ष में समाधि में थे जिसके दोनों द्वार अन्दर से बंद थे। गुरुजी उनके समक्ष उपस्थित हुए, उनको समाधि से चेतनावास्था में लाये और गुरु नानक देव के दर्शन दिये। पूरे 45 मिनट तक वह एक शय्या पर बैठे हुए उनके दर्शन करते रहे। वह उन्हें दसों सिख गुरुओं, मीरा और कबीर के दर्शन करवा चुके हैं। मंदिरों और गुरुद्वारों में लगे हुए उनके चित्र उनके वास्तविक रूप से भिन्न हैं, ऐसा शेखों साहब कहते हैं।
गुरुजी जीवन और मृत्यु नियंत्रित करते हैं। वह देवी-देवताओं के दर्शन करवाते हैं और स्वयं को शिवरूप में दिखाते हैं। फिर वह कौन हैं? साक्षात परमात्मा! उन्होंने हमारे दुष्कर्मों की कर्माग्नि को नष्ट करने के लिए जन्म लिया है। फिर ऐसे एक गुरु की सेवा क्यों न की जाये, जिनके बिना मन के द्वार नहीं खुल सकते हैं क्योंकि किसी और के पास उसकी चाबी नहीं है।
श्रीमती सुक्खी, चंडीगढ़
जुलाई 2007