मेरी भगवान से मुलाकात

सुनीता अतुल सिंह, नवम्बर 2008 English
हमें शब्द नहीं मिलते हैं जब हम गुरुजी के बारे में कुछ लिखने की कोशिश करते हैं। मैं छोटी उम्र से ही धार्मिक प्रवृत्ति की रही हूँ और भगवान शिव और माँ पार्वती की विनम्र भक्त रही हूँ। मैं हर सोमवार व्रत रखती और जब तक मैं दिल्ली में छत्तरपुर में सुन्दर शिव-पार्वती की मूर्ती के दर्शन नहीं कर लेती, अपना व्रत नहीं तोड़ती। यद्यपि मेरे पति की प्रवृत्ति वैसी नहीं थी, वह मेरा समर्थन करते और हर सोमवार मुझे मंदिर ले जाकर मेरी इच्छा पूरी करते। वहाँ, शिवजी और माँ पार्वती की मूर्ती के आगे खड़े होकर मैं हमेशा उनके दर्शन माँगती। यह मेरा पूरी तरह से मानना था कि मैंने और जो मेरे प्रिय थे, उन्होंने हर जन्म में रूप बदले थे। और बस एक ही सम्बन्ध था जो सच्चा था – शिवजी मेरे पिता थे और हमेशा रहेंगे और माँ पार्वती मेरी माँ। मैं मानती हूँ कि यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, पर यह भावना मेरे हृदय की गहराइयों में से थी, जिसके बारे में कोई नहीं जानता था।

पर भगवान जानते हैं और मेरा बुलावा मेरी बहन के रूप में आया जब उसने मुझे गुरुजी के दर्शन के लिए आने को कहा। हम बहुत बुरे समय से गुजर रहे थे और मुझे लगता है कि मेरी बहन ने गुरुजी से हमारे बारे में पूछा, और उन्होंने मेरी बहन को हमें एम्पायर एस्टेट लाने को कहा। पहले तो हमें थोड़ा संदेह हुआ, पर अजीब बात है कि मेरे पति जाने के लिए बहुत उत्सुक थे। मुझे अच्छी तरह से याद है कि वह 27 दिसम्बर 1999 की तारिख थी। जैसे ही मेरी बहन ने हमारा परिचय दिया, गुरुजी मुस्कुराये और बोले, "लव मैरिज।" वह बार-बार मेरा नाम दोहराते रहे और मुझे 'आंटी' बुलाते रहे। मेरी बहन ने हमें यह नहीं बताया था कि संगत में सब 'अंकल' और 'आंटी' होते हैं और हमें यह थोड़ा अजीब लगा।

हम थोड़े शंकित हो रहे थे क्योंकि हमने सोचा था कि गुरुजी कोई बूढ़े आदमी होंगे और फिर हमने देखा कि महिलाएँ उनके चरण दबा रही थीं। वहाँ हर कोई एक खास दर्जे का लग रहा था, और मैंने मन में सोचा कि हम किसी गलत जगह आ गए हैं। पर मेरे पति बोले कि क्योंकि गुरुजी ने हम से कुछ नहीं लिया था और हमारे पास खोने के लिए कुछ नहीं था इसलिए हमें वहाँ फिर से जाना चाहिए। हम अगले दिन फिर गए और गुरुजी के साथ देर रात तक थे। हम चिंतित थे क्योंकि हम अपने दो साल के बेटे को घर पर छोड़कर आए थे। पर मेरी बहन वहाँ से हिलने को तैयार नहीं थी, यह कहते हुए कि हम गुरुजी से आज्ञा लेकर ही जा सकते थे। अचानक गुरुजी ने कुछ लोगों को उनके साथ बड़े मंदिर चलने को कहा; यहाँ तक कि उन्होंने खुद हमें मंदिर दिखाया। मेरी बहन और जीजाजी बोले कि हम खुशकिस्मत थे कि दूसरी ही मुलाकात में हमें यह आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उस समय हमें यह बात कुछ खास नहीं लगी। सबसे आश्चर्यजनक अनुभव यह था कि जब भी हम मंदिर आते और लोगों को उनके अनुभव और परेशानियाँ बताते हुए सुनते, तो हमें अपनी परेशानी इतनी बड़ी नहीं लगती। श्री गुरुजी महाराज के चरण कमलों में हमें शान्ति और सुरक्षा की अनुभूति भी होती।

मेरे रवैये में बहुत बदलाव आए: पहले मैं बहुत रीति-रिवाज़ मानती थी, बहुत अंधविश्वासी थी और मेरा मानना था कि भगवान हमेशा हमें सज़ा देते हैं। गुरुजी से मिलने के बाद, बिना उनके यह कहे हुए, मैं यह मानने लगी कि भगवान गुरुजी थे - प्रेम, दया और कृपा से परिपूर्ण। हम जिन भी परेशानियों से गुजर रहे थे वो हमारे कर्मों के वजह से थीं – फिर चाहे वो सचेत होकर किये गए हों या फिर अनजाने में। हमारी प्रवृत्ति में जो बदलाव आए उससे हमारी ज़िन्दगी में भी बदलाव आए। धीरे-धीरे सब कुछ बेहतर होने लगा। मैं यह स्वीकारती हूँ कि एक समय था जब हमारा विश्वास डगमगा गया, पर गुरुजी ने हमेशा हमें वापस खींच लिया।

मेरे पिता और भांजी पर गुरुजी की कृपा

मेरी दो बहनें हैं, और मेरी बड़ी बहन जो सिंगापुर में रहती है, गुरुजी की भक्त है। पर मेरी दूसरी बहन जो जयपुर में रहती है, वो अभी तक गुरुजी के पास नहीं गई थी। एक बार वो हमारे पास दिल्ली आई, इस बात से बहुत परेशान कि उसकी सबसे बड़ी बेटी पूजा को टखने में मोच आई थी। उसके एक्स-रे में कुछ गड़बड़ लग रही थी जो किसी उत्पत्ति की ओर इशारा कर रही थी। चिकित्सकों को लग रहा था कि यह कैंसर हो सकता था इसलिए इसकी पूरी तरह से जाँच होनी ज़रूरी थी। मेरी बहन का दिल्ली आने के पीछे यही कारण था। हमने तुरन्त उसे गुरुजी के पास चलने के लिए कहा। वह मान गई पर उसने हमें गुरुजी को कुछ भी बताने से मना किया क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि पूजा को इस बात का पता चले। अवश्य, वो गुरुजी को परखना भी चाहती थी कि उनको इस बात का पता चलता है या नहीं। मंदिर जाने से पहले, मेरे पति, जो पूजा को अपनी बेटी मानते थे, ने गुरुजी की तस्वीर के आगे ज्योत जलाई और उन्हें पूजा को ठीक करने के लिए कहा।

शाम को जब हम गुरुजी के मंदिर गए और मैं पूजा का नाम लेने ही वाली थी, गुरुजी बोले, "इसका कल्याण हो चुका है।" फिर मेरी बहन की ओर देखकर गुरुजी बोले, "तू तो लेट्स ट्राय करने आई है ना (तू तो मुझे परखने आई है ना?)" इस तरह गुरुजी ने हमें यह प्रकट कर दिया कि उन्होंने पूजा के लिए मेरे पति की प्रार्थना पहले ही सुन ली थी और वह जानते थे कि शुरू में मेरी बहन की भावना उनके लिए क्या थी। निस्संदेह, अगले दिन चिकित्सकों ने मेरी बहन से कहा कि वह टखना ठीक हो जाएगा और एक्स-रे पर छाया पड़ जाने से चिकित्सकों को भ्रम हो गया था! बेशक, हम यह जानते थे कि गुरुजी ने ही यह सब कुछ किया था।

इसी तरह, मेरे पिता का भी गुरुजी के आशीर्वाद से उपचार हुआ। हम सरिता विहार में रहते हैं और मेरे माता-पिता नॉएडा में। एक सुबह छः बजे हमें नॉएडा से संदेश आया कि मेरे पिता ठीक नहीं थे। मेरे पति फटाफट नॉएडा गए; मैं घर पर ही रही क्योंकि बच्चे सो रहे थे। वहाँ पहुँचने पर पता चला कि मेरे पिता को मल के साथ रक्त आ रहा था और उन्हें उल्टियाँ भी हो रही थीं। हमने हस्पताल फोन किया तो चिकित्सकों ने उन्हें तुरन्त ही लेकर आने को कहा। हमारे यहाँ कोई भी फोन काम नहीं कर रहा था इस कारण मेरे पति मुझसे संपर्क नहीं कर पाए और वह मुझे लेने के लिए घर आए। मैं समझ गई कि कुछ तो गड़बड़ थी क्योंकि उन्होंने मुझे बस जल्दी से चलने को कहा। मेरे ससुरजी की मृत्यु पेप्टिक अल्सर के फट जाने की वजह से हुई थी और मेरे पिता के सभी लक्षण भी उसी ओर इशारा कर रहे थे।

हमने फिर गुरुजी की तस्वीर के आगे ज्योत जलाई और उनसे प्रार्थना की। जैसे ही हमने ज्योत जलाई, उसी क्षण मेरे पिता की हालत में सुधार आने लगा। मेरे पति उन्हें हस्पताल ले गए और यद्यपि उनके लिए स्ट्रेचर का बंदोबस्त किया गया, मेरे पिता चलना चाहते थे। मेरे पिता का पेट धोया गया और यद्यपि उसमें रक्त के कुछ अवशेष मिले, चिकित्सकों को फूटन कहीं नहीं मिली। चिकित्सक विस्मित थे और बहुत सारे परीक्षण कराने के बाद भी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके कि मेरे पिता के पेट और अंतड़ियों में रक्त आया कहाँ से। जब मेरे पिता बीमार हुए थे तो गुरुजी जलंधर में थे। जब करीब एक महीने बाद बैसाखी के दिन गुरुजी दिल्ली आए, वह मुस्कुराये और बोले, "बच गए, चीफ जस्टिस को न्यू लाइफ दे दी।" मेरी आँखों में आसूँ थे और मैं बस उनको धन्यवाद ही कह सकी।

गुरुजी के चरण कमल

मेरा मौसेरा भाई ग्रेफाइट ड्रॉइंग्स में निपुण है और उसने कई प्रदर्शनियाँ भी की हैं। जब वह मुझसे मिलने आया मैंने बस ऐसे ही उसे गुरुजी का रेखाचित्र बनाने को कहा। क्योंकि उसने कभी गुरुजी के दर्शन नहीं किए थे, मैंने उसे एक कैलेंडर दिया जिससे वह गुरुजी की तस्वीर देख सके। मैंने उससे विनती की कि वो रेखाचित्र अत्याधिक ध्यान से बनाये। मुझे आश्वासन देकर कि वो ऐसा ही करेगा, वह चला गया। बहुत महीने निकल गए और मैंने उससे संपर्क करने की कोशिश की, पर क्योंकि वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था और पेइंग गेस्ट था, मेरी उससे बात नहीं हो पाई।

एक साल निकल गया। गुरुजी का जन्मदिन था। मैंने फिर उससे संपर्क करने की कोशिश की पर नहीं कर पाई। एक हफ्ते बाद मेरा जन्मदिन था और मैं अपनी बहन के साथ बाहर गई हुई थी जो उन दिनों हमारे यहाँ आई हुई थी। जब मैं घर पहुँची तो मेरे पति ने मुझे ऊपर बुलाया यह कहते हुए कि मेरे लिए एक सरप्राइज था। मैं उत्सुकतापूर्वक ऊपर गई यह सोचकर कि मेरे लिए कोई उपहार होगा। मैं निःशब्द रह गई जब मैंने गुरुजी का एक बड़ा सा रेखाचित्र फ्रेम किया हुआ देखा। क्योंकि हम उस शाम को मंदिर जा रहे थे, मैंने अपनी बहन को अनुरोध किया कि वह गुरुजी से पूछे कि क्या वह उस पर हस्ताक्षर करेंगे। मेरी बहन बोली कि हमें रेखाचित्र मंदिर ले जाकर बाहर रखना चाहिए और फिर गुरुजी से आज्ञा लेनी चाहिए।

मैं सोच में पड़ गई क्योंकि रेखाचित्र का फ्रेम काँच का था। अगर गुरुजी उस पर हस्ताक्षर करने के लिए हाँ कर देते तो उनका हस्ताक्षर कुछ समय बाद मिट जाता। मैं बहुत दुकानों पर गई और दुकानदार के अनेकों बार आश्वासन देने के बाद कि पेन की स्याही काँच के फ्रेम पर से नहीं मिटेगी, मैंने पेन खरीदा। मैंने अपने मौसेरे भाई से भी अनुरोध किया कि वह हमारे साथ मंदिर चले। मंदिर पहुँचकर हमने रेखाचित्र बाहर एक सुरक्षित जगह पर रख दिया और सबको बता दिया कि वह क्या था। लंगर के बाद जब हमारे जाने का समय हुआ, मेरी बहन ने जाकर गुरुजी से आज्ञा ली। मैं विस्मित हुई जब गुरुजी ने हाँ कर दी और रेखाचित्र लेकर आने के लिए कहा।

जब मेरे पति और मौसेरे भाई रेखाचित्र लाने के लिए बाहर गए तो उन्होंने देखा कि उसका काँच ऐसे टूट गया था कि रेखाचित्र से पूरा काँच ही उतर गया था और वो भी बिना कोई निशान छोड़े। गुरुजी ने बहुत प्यार से उस पर अपने हस्ताक्षर किए और अपना आशीर्वाद भी लिखा। सच में यह जन्मदिन का सबसे बड़ा उपहार था जो मुझे मिला था या कभी मिल सकता था। गुरुजी ने मेरी यह इच्छा भी पूरी की कि उनके हस्ताक्षर रेखाचित्र पर हों, न कि उसके काँच के फ्रेम पर! इस अभिमंत्रित फ्रेम पर आज एक बड़ा सा 'ॐ' है। जब मैंने गुरुजी को यह बताया, वह बस मुस्कुराये और बोले, "देख ले।" हाल ही में उस पर त्रिशूल का आकार भी बन गया है। गुरुजी की कृपा पाकर हम बहुत विनम्र महसूस करते हैं।

गुरुजी के चरण कमल

एक बार संगत के दिन हम ऊपर बैठे हुए थे और हमारे एक रिश्तेदार ने हमें बताया कि कैसे गुरुजी की जूतियों से, जिनसे हमेशा उनकी सुगन्ध आती है, उस पर कृपा हुई थी। (भारत में गुरु की जूतियों का भी उतना ही मान होता है जितना कि माया का विनाश करने वाले उनके चरण कमलों और दिव्य रूप का।) हम विस्मित थे और बड़े ध्यान से सुन रहे थे। जल्द ही लंगर का समय हो गया और फिर उनके चरण छूने का। मेरे पति मेरे आगे थे। जैसे ही मैं गुरुजी के आगे माथा टेक कर उठी, उन्होंने मुझे अपनी जूतियाँ दीं। मैं निःशब्द हो बस गुरुजी को देखती रही। मेरे पति को करीब-करीब मुझे वहाँ से खींच कर ले जाना पड़ा। फिर मेरे पति ने मुझे बताया कि मेरे जाने बगैर वो गुरुजी से प्रार्थना कर रहे थे कि गुरुजी उन्हें अपनी जूतियाँ देकर आशीर्वाद दें और वो यह भी चाहते थे कि यह आशीर्वाद मुझे मिले! अपने भक्तों की इच्छा हमेशा पूर्ण करने के लिए सदा ही आतुर, गुरुजी ने मेरे पति की इच्छा पूरी की।

मुझे अभी तक याद है कि वो बुद्ध पूर्णिमा का दिन था। लोग सड़कों पर ढोल बजा कर उत्सव मना रहे थे। हमारा घर गुरुजी की सुगन्ध से भरा हुआ था। मेरे दोनों बेटे घर पर थे और बहुत खुश थे।

अगले संगत के दिन पर हमारे बच्चे भी हमारे साथ चले। जब आज्ञा लेने का समय आया, गुरुजी अपने कमरे में चले गए। मेरा छोटा बेटा बहस कर रहा था कि गुरुजी ने उसे अपने हाथों से प्रसाद नहीं दिया। उसका ऐसा कहना उस बात से सम्बंधित था जब गुरुजी अपने हाथों से प्रसाद दिया करते थे पर बाद में उन्होंने ऐसा करना बंद कर दिया था। जैसे ही गुरुजी कमरे से बाहर आए और इससे पहले कि मैं अपने बेटे को रोक पाती, मेरा बेटा गुरुजी के पास गया, जूतियों के लिए उनका धन्यवाद किया और फिर उनसे प्रसाद माँगा। गुरुजी उससे बोले कि अब वह प्रसाद घर पर ही ले सकता था। उस दिन से, मेरे पति गुरुजी की जूतियों के आगे प्रार्थना करते हैं और फिर सारे परिवार में प्रसाद के तौर पर मिश्री दी जाती है। वह अलमारी जिसमें हम गुरुजी की चरण पादुकाएँ रखते हैं, उनकी सुगन्ध से महकती है।

अदालत में उनकी कृपा

एक आर्थिक संस्था के साथ हम कुछ परेशानियों का सामना कर रहे थे और मैंने गुरुजी से इसके बारे में बात करने की कोशिश की, परन्तु वह बस इतना ही कहकर कि सब ठीक हो जाएगा मुझे दूर कर देते। मैं यह स्वीकारती हूँ कि मुझे समझ ही नहीं आता कि यह कैसे होगा और मैं उनसे पूछने की कोशिश करती रहती। गुरुजी मुझे डाँटते, परन्तु जब तीसरी बार मैंने यही मूर्खता दिखाई तो वह बड़े प्यार से मुझे बोले कि मुझे उनसे कुछ नहीं माँगना चाहिए। उस दिन से, मैंने उनसे अपने लिए और अपने पति या बेटों के लिए कभी कुछ नहीं माँगा।

इसी दौरान, उस आर्थिक संस्था ने हमारी कम्पनी के खिलाफ केस दर्ज कर दिया। मैं परेशान हो गई पर मेरे पति नहीं। वह मुझे कहते कि यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी पूरी कोशिश करें और अच्छी नीयत से करें और बाकी सब गुरुजी पर छोड़ दें। यह कहना आसान था लेकिन करना बहुत मुश्किल क्योंकि हमारा वकील जो मेरे पति का दोस्त था, ने हमें कहा था कि स्थिति गंभीर थी। उस संस्था ने हम पर ब्याज की बहुत बड़ी रकम ठोक दी थी। इस समय यह समस्या भले ही इतनी गंभीर ना प्रतीत हो रही हो, पर उस समय थी। मेरे पति वकील को कहते रहते कि कुछ गलत नहीं होगा और कुछ ना कुछ ऐसा हो जाएगा कि हमें अदालत से राहत मिलेगी। हमारा वकील हमारी ऐसी बातों से विस्मित था।

एक बार जब ऐसा लग रहा था कि हम हार जाएँगे, जज को कुछ ओरिजिनल कागज़ात नहीं मिल रहे थे और उन्होंने विरोधी पक्ष के वकील को डाँट लगाई। वो कागज़ात फाइल में ही थे और मेरे पति और हमारे वकील को पन्ने पलटते समय वो नज़र आ रहे थे पर जज और विरोधी वकील को नहीं। बहुत बार फाइल के पन्ने पलटकर देखा गया पर उन्हें वो कागज़ात नहीं मिले। हमारे वकील के आँखों के सामने यह चमत्कार हो रहा था। उसने स्वीकारा कि अपने पूरे करियर में उसने कभी ऐसा केस नहीं देखा था। अन्त में गुरुजी के आशीर्वाद से वो केस खारिज हो गया। हमारा वकील दोस्त इतना प्रभावित हुआ कि गुरुजी का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास आया।

सुनीता अतुल सिंह, एक भक्त

नवम्बर 2008