गुरुजी सदा हमारे साथ

कप्तान सुरेश कुमार ठाकुर, जुलाई 2011 English
मेरा परिवार और मैं गुरुजी के चरण कमलों में मई 2005 के दूसरे हफ्ते में आए और हमें एम्पायर एस्टेट में उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कमांडर विमल नागपाल, मेरे मित्र और शुभचिन्तक, हमें गुरुजी के पास लेकर गए। पहली बार जब हमने गुरुजी के दर्शन किये तो उन्होंने पैंट और कमीज़ पहनी हुई थी और बहुत सादे ढंग से बैठे हुए थे।

दुर्घटना जो दुर्घटना जैसी लगी नहीं

उनके पहले दर्शन के कुछ समय बाद, मई 2005 जब खत्म होने वाला था, मैं अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ नैना देवी तीर्थस्थान, भाखड़ा नंगल डैम और गुरुद्वारा आनंदपुर देखकर रोपड़ वापस जा रहा था। हम एक तंग सड़क पर थे जब हमारी गाड़ी की टक्कर एक छोटे ट्रक के साथ हुई। उस ट्रक में लोहे की सलाखें थीं जो हमारी गाड़ी को भेदते हुए और दोनों दरवाज़ों को चीरते हुए निकलीं। टक्कर बहुत ज़ोरदार हुई थी। मैं गाड़ी से उतरा तो पाया कि दोनों दरवाज़े खुल नहीं रहे थे। गाड़ी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई थी और बाद में हमें दोनों दरवाज़े बदलवाने पड़े। पर गुरुजी की कृपा से किसी को भी एक खरोंच तक नहीं आई थी। गुरुजी ने हमें एक बड़ी दुर्घटना से बचाया।

गुरुजी ने गाड़ी का संचालन किया जब गाड़ी चलाते समय मेरी आँख लग गई

एक और अवसर पर, करीब तीन या चार साल पहले, गुरुजी ने फिर हस्तक्षेप किया। मेरे साले के बेटे की शादी के समारोह में भाग लेकर हम कैथल से वापिस लौट रहे थे। दुल्हन कैथल से थी और और उन दिनों बहुत धुंध थी। सुबह-सुबह जब हम रोपड़ के लिए निकले तब भी बहुत धुंध थी। गाड़ी में मेरे साथ दूल्हा, दुल्हन और मेरी पत्नी कविता थे। धुंध की वजह से ना के बराबर नज़र आ रहा था इसलिए मैंने अपनी गाड़ी ड्राइवर को चलाने के लिए कहा। हम में से कोई भी रात को थोड़ी देर के लिए भी नहीं सोया था इसलिए गाड़ी में सब को नींद आ रही थी। पर मेरी साली के बेटे, संजीव ने हमें आश्वस्त किया कि रोपड़ तक गाड़ी चलाने में उसे कोई दिक्कत नहीं होगी। आगे की सीट पर मैं उसके बगल में बैठ गया और उसे जगाये और चौकस रखने के लिए मैं उससे बातें करता रहा और गाने चलाता रहा। मैंने उससे पूछा कि क्या वह गाड़ी आराम से चला पा रहा था (मुझे खुद बहुत नींद आ रही थी)। उसने हाँ कहा पर जैसे ही हम पटियाला पहुँचने वाले थे उसने गाड़ी रोक कर मुझे गाड़ी चलाने को कहा। मुझे थोड़ी बेचैनी हुई .... पर इसके अलावा कोई और चारा भी नहीं था। मैंने संजीव को कहा कि वह सोये नहीं और मुझसे बातें करता रहे जिसके लिए वह मान गया। पर जैसे ही वह मेरे बगल में आकर बैठा उसे नींद आ गई और वह गहरी नींद सो गया ।

मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि वह हमारा नेतृत्व करें और हमें सुरक्षित रूप से मंज़िल तक पहुँचायें। गाड़ी चलाते समय मैंने बहुत कोशिश की कि मैं चौकन्ना रहूँ। हमने अभी सरहिंद पार ही किया था कि मुझे महसूस हुआ कि गाड़ी ढलान पर थी .... अचानक मुझे नींद से जागने का एहसास हुआ। मैं सो गया था और यह नहीं जानता था कि कितनी देर के लिए। फिर भी, गाड़ी अच्छी खासी गति पर आगे बढ़ती जा रही थी और ठीक हमारे आगे सामान से भरा हुआ ट्रक था। मैं जानता हूँ कि गुरुजी के आशीर्वाद और कृपा से उस दिन हम घर सही-सलामत पहुँचे, इसके बावजूद कि मुझे गाड़ी चलाते हुए नींद आ गई थी। सरहिंद में इस घटना के बाद मेरी नींद उड़ गई और सारे रास्ते मैं जागा हुआ था। गुरुजी की कृपा से हम सब सुरक्षित और बिना किसी कठिनाई के रोपड़ पहुँचे।

मेरी बेटी शिल्पा को आशीर्वाद

गुरुजी से मिलने से छः साल पहले, 6 मई 1999 को, मेरी बेटी अर्जन विहार इमारत में रहती थी और वहाँ लगी आग में वह बुरी तरह जल गई थी (वह करीब 45 प्रतिशत जल गयी थी)। उसे रिसर्च एंड रेफरल आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ उसका निरंतर विशेषीकृत इलाज हुआ। उसकी काफी सारी स्किन ग्राफ्टिंगस और प्लास्टिक सर्जरी भी हुईं थीं। फिर हमें एम्पायर एस्टेट में गुरुजी के चरण कमलों के स्पर्श का अवसर प्राप्त हुआ। मई 2005 में जब हमें गुरुजी के पहले दर्शन हुए तब तक मेरी बेटी नियमित रूप से जांच और इलाज के लिए अस्पताल जा रही थी। डॉक्टर ने उसे कई बार ठोड़ी और बायीं बाज़ू पर और सर्जरी करवाने के लिए कहा था पर अगली ही बार जब हम उस डॉक्टर के पास गए तो उसने ऐसा करवाने से मना किया। ऐसा गुरुजी के आशीर्वाद से हुआ। हम समझ गए कि गुरुजी अपने भक्तों की परेशानियों से भलि - भांति अवगत होते हैं और अपनी दिव्य शक्ति से उन्हें ठीक कर देते हैं। वैसे भी, उन्हें कोई भी समस्या बताने की ज़रूरत नहीं है। इसलिए अपनी बेटी के बारे में उनसे बात करने में हम हमेशा हिचकिचाते थे। फिर भी मैं चाहता था कि मेरी बेटी को विशेष तौर से उनका आशीर्वाद मिले, क्योंकि तांबे के लोटे के जल द्वारा गुरुजी के आशीर्वाद से मैंने बहुतों को ठीक होते देखा था। शायद यह दैवी मर्ज़ी भी थी। कमांडर नागपाल फिर गुरुजी की ओर हमारा माध्यम बने। जनवरी 2006 में जब गुड़गाँव में पहला बड़ा सत्संग हुआ तो उन्होंने जनरल कपूर से बात की। और गुरुजी ने बृहस्पतिवार के दिन मेरी बेटी को तांबे के लोटे के साथ एम्पायर एस्टेट आने को कहा।

परन्तु उस बृहस्पतिवार गुरुजी शारीरिक रूप में वहाँ उपस्थित नहीं थे। वह दिल्ली किसी की शादी में आशीर्वाद देने गए हुए थे। हम लंगर करके वापस गए और अगले हफ्ते बृहस्पतिवार के दिन ही एम्पायर एस्टेट दोबारा गए। लंगर ग्रहण करके जब हम आज्ञा लेने गए तो तांबे का लोटा मेरी बेटी के हाथ में था। हमें समझ नहीं आ रहा था कि इसके बारे में गुरुजी से कैसे बात करें इसलिए बाकी संगत के साथ बैठ गए। हमें देखकर, करीब एक-दो मिनट के बाद गुरुजी ने मेरी बेटी और मुझे इशारा करके बुलाया। उन्होंने मुझसे पूछा, "किथों आया हैं? किन्ने भेज्या है तैनू"? (कहाँ से आया है और किसने तुम्हें भेजा है?) मैं इतना घबरा गया कि कुछ बोल ही नहीं पाया और गुरुजी ने मेरी बेटी से कहा : "यह तुम्हारे लिए है। अपने जन्म की तारीख बताओ"। शिल्पा ने बतायी और गुरुजी ने तांबे के लोटे को अभिमंत्रित किया। फिर उन्होंने मुझे एक भक्त, श्री सिंगला से निर्देश लेने को कहा कि तांबे के लोटे का इस्तेमाल कैसे करना था। तब से, मेरी बेटी तेज़ी से और लगातार ठीक होती जा रही है।

इस दौरान मेरी बेटी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अपनी ग्रेजुएशन खत्म की। वह एम बी ए करना चाहती थी पर टेस्ट और इंटरव्यू में अच्छा करने के बावजूद उसका किसी अच्छे कॉलेज में दाखिलानहीं हो रहा था। एक बार फिर, गुरुजी के आशीर्वाद से उसे आइ आइ पी एम, नई दिल्ली में दाखिला मिला। और उसके बाद कैंपस इंटरव्यू में चेन्नई में एक बी पी ओ में नौकरी मिली। उसने अपनी बाकी की पढ़ाई और थीसिस चेन्नई से ही पूरा किया क्योंकि कम्पनी को उसकी वहाँ ज़रूरत थी। मैं नियमित रूप से उसके पास चेन्नई जाता रहता जहाँ वो एक पी जी हॉस्टल में रह रही थी। हम चाहते थे कि वो दिल्ली वापस आ जाए क्योंकि हम उसके लिए एक अच्छा रिश्ता देखना चाहते थे पर उसकी कम्पनी उसे चेन्नई में ही रखना चाहती थी। उसके साथ के कुछ लोग या तो दिल्ली वापस आ गए थे और कुछ का ट्रांसफर हो गया था। मेरी बेटी वापस आने के लिए उत्सुक थी। मैंने उससे कहा कि चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी: अगर गुरुजी चाहेंगे कि वह दिल्ली आए और उसमें उसकी भलाई होगी तो वह ज़रूर वापस आएगी। घर में इस बात पर चर्चा हुई और 1 अक्टूबर 2010 को उसने इस्तीफा दे दिया। कम्पनी में दो महीने का नोटिस देना था इसलिए उसने 30 नवम्बर 2010 की दिल्ली की अपनी टिकट बुक करा दी। परन्तु नवम्बर के आखरी दो दिनों में, कम्पनी के संचालकों ने उसे अपना इस्तीफा वापस लेने को कहा। हालाँकि उन्होंने मूल तत्व में उसका इस्तीफा स्वीकार कर लिया था, वह उसको दिल्ली ट्रांसफर करने के बारे में सोच रहे थे। गुरुजी के आशीर्वाद से, 10 दिसम्बर को उसे दिल्ली में ओखला ऑफिस में काम शुरू करने के लिए कहा गया।

दुबई जाते समय हवाई जहाज़ में गुरुजी का आशीर्वाद

24 फरवरी 2010 को मैं अपनी पत्नी कविता और एक और दम्पति जो हमारे मित्र हैं, के साथ एयर इंडिया की फ्लाइट से दुबई घूमने जा रहा था। उड़ान 3 घंटे 30 मिनट की थी। रात का खाना खाने के बाद मुझे बेचैनी होने लगी पर मैंने अपने आप को संभालने की कोशिश की। मुझे पता था कि मेरा रक्त चाप निरंतर नीचे गिरता जा रहा था पर मैं अपनी पत्नी को व्यर्थ ही चिन्तित नहीं करना चाहता था। लेकिन मेरा चेहरा देखकर वो समझ गई कि कुछ गड़बड़ थी और उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं ठीक था। मैंने उससे कहा कि मैं ठीक था और मैंने सोने और आराम करने की कोशिश की। पर मैं बहुत बीमार महसूस कर रहा था और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दिल डूबा जा रहा था। मैंने गुरुजी से प्रार्थना की कि वह मेरा ख्याल रखें और अपने आशीर्वाद से जो करना हो वो करें।

कुछ पलों या मिनटों बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरे आस - पास बैठे हुए लोग, मेरा दोस्त और एयर होस्टेस मुझे ज़ोर से झंझोर कर उठा रहे थे। मैं बेहोश हो गया था। हवाई जहाज़ को लैंड करने में करीब आधा घंटा अभी बाकी था और हवाई जहाज़ में कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। पर मैं जानता था कि मुझे किसी डॉक्टर की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि मेरे डॉक्टर मेरे साथ ही थे!

मुझे नींबू पानी पिलाया गया और हवाई जहाज़ के कर्मचारी मुझे आराम पहुँचाने के लिए जो कर सकते थे, उन्होंने किया। मेरी पत्नी अभी भी चिन्तित थी और मैं जानता था कि वह गुरुजी से मेरे लिए प्रार्थना कर रही थी।

इस दौरान दुबई एयरपोर्ट पर भी संदेश भिजवाया गया। दुबई लैंड करने पर हम हवाई जहाज़ में ही बैठे रहे और डॉक्टर आया जिसने मेरी रक्त शर्करा और रक्त चाप की जाँच की। सब कुछ सामान्य था। जय गुरुजी! तब तक मैं अच्छा और 100 प्रतिशत ठीक महसूस करने लगा था। फिर भी मुझे व्हील चेयर पर एयरपोर्ट डिस्पेन्सरी ले जाया गया जहाँ मेरी दोबारा जाँच हुई और मुझे कुछ दवाइयाँ दी गईं जो मुझे अगले दिन भी लेने को कहा गया। अगली सुबह, होटल में मैं 1000 प्रतिशत तन्दुरुस्त महसूस कर रहा था।

गुरुजी ने मुझे नया जीवन प्रदान किया वो भी तब जब हम किसी और देश जा रहे थे जहाँ बात और बिगड़ सकती थी। मेरे नये जीवन के लिए, शुक्रिया, गुरुजी। मेरी पत्नी और मैं 1 मार्च 2010 को खुशी - खुशी दिल्ली वापस लौटे।

स्थानान्तरणीय नौकरी होते हुए भी गुरुजी ने मुझे दिल्ली में रखा

जनवरी 1997 में मैं कोच्चि से नई दिल्ली ट्रांसफर पर आया था और मैंने अपने अधिकारियों से निवेदन किया था कि मुझे कहीं और ट्रांसफर नहीं किया जाए। मेरी बड़ी बेटी का आर एंड आर आर्मी अस्पताल में उसकी बर्न इंजरीज़ का इलाज चल रहा था जिसके कारण मैं दिल्ली में ही रहना चाहता था। सितम्बर 2003 में मैंने डी आर डी ओ हेडक्वार्टर्स में पदभार ग्रहण किया और मार्च 2010 में मुझे विशाखापट्नम या हैदराबाद ट्रांसफर करने पर विचार - विमर्श शुरू हुए।

मेरी छोटी बेटी ऐमिटी यूनिवर्सिटी नॉएडा से बी. टेक की पढ़ाई कर रही थी और मेरी बड़ी बेटी चेन्नई से वापस आने वाली थी और हम उसके लिए एक अच्छा रिश्ता ढूँढ़ना शुरू करना चाहते थे इसलिए मैं दिल्ली से जाना नहीं चाहता था। अगर हम दिल्ली से ट्रांसफर हो जाते तो मैं अपनी बड़ी बेटी के लिए यहाँ रिश्ता नहीं तलाश कर पाता और मेरी छोटी बेटी की भी दिल्ली में अभी दो साल की पढ़ाई बाकी थी। मैंने फिर से अपने अधिकारियों से निवेदन किया कि वे कुछ सालों के लिए मुझे दिल्ली में ही रखें। मैं बहुत चिन्तित था क्योंकि यह नामुमकिन सा था कि वे मेरी बात मान लेते। मैं निरंतर गुरुजी से प्रार्थना करता रहा। और देखो, हालाँकि मेरा तबादला हुआ, पर दिल्ली में ही एक नये यूनिट में! ऐसी है सदगुरु की कृपा।

कप्तान सुरेश कुमार ठाकुर, जल सेना

जुलाई 2011