एक स्कूटर से श्रद्धा की शुरुआत

वैभव अनेजा, मार्च 2008 English
जय गुरुजी!

जब मई 2006 में पहली बार मुझे गुरुजी के दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ, मेरे मन में यह माँगें थीं - एक स्कूटर, सेवा और मन की शान्ति। मेरे पिता मुझे स्कूटर दिलाने के लिए मान नहीं रहे थे और उसके बदले वह चाहते थे कि मैं मोटरसाइकिल लूँ। परन्तु, मोटरसाइकिल के साथ मेरा एक बुरा अनुभव रह चुका था और मेरा मानना था कि मोटरसाइकिल चलाने में जोखिम होता है। परन्तु गुरुजी के यहाँ आने के एक हफ्ते बाद मेरे पिता मान गए और मुझे स्कूटर मिल गया।

इसके अतिरिक्त, कुछ ही दिनों में, मुझे छोटे मंदिर में सेवा करने का अवसर भी प्राप्त हुआ - वह एक बहुत अच्छा अनुभव था।

मेरी तीसरी माँग भी पूरी हुई। मैं अपनी दसवीं कक्षा के परिणाम को लेकर चिंतित था, जो जल्द ही आने वाला था। जब परिणाम आया तो बोर्ड की परीक्षा मैंने पास कर ली है, यह देखकर मुझे राहत मिली। इस तरह गुरुजी ने हर चीज़ का ध्यान रख कर मुझे मन की शान्ति प्रदान की।

हम जो चाहते हैं, जैसे-जैसे वह हमें मिलता जाता है, हमारी इच्छा सूची बढ़ती जाती है। अब, मैं गुरुजी से बात करने के लिए बेताब था। परन्तु, गुरुजी तभी बात करते थे जब वह चाहते थे, मैं बस उस मौके का इंतज़ार कर सकता था। जब मैं देखता कि गुरुजी औरों से बातें कर रहे हैं, मेरा ध्यान इस ओर जाता कि शायद गुरुजी सिर्फ अमीरों से ही बात करते हैं। पर मेरी यह गलतफ़हमी जल्द ही दूर हुई।

मेरे पहले दर्शन के दो महीने बाद, गुरुजी ने मुझे बुलाया और कुछ सफाई करने के लिए मुझे बड़े मंदिर जाने का निर्देश दिया। यह पहली बार था जब गुरुजी ने मुझसे बात की थी और मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। अगला दिन सोमवार था और मैं पहली बार किसी सामान्य दिन बड़े मंदिर गया। मैंने वहाँ खूब आनंद उठाया।

मैं स्कूटर दुर्घटना से बचा

गुरुजी ने जब यह सब अद्भुत चीज़ें मेरे साथ कीं, मेरा ज़िन्दगी और अन्य चीज़ों को देखने का नज़रिया बदल गया। परन्तु गुरुजी का आशीर्वाद सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं था।

एक दिन मैं कहीं से वापस आ रहा था, दिल्ली में नारायना चौराहे पर, जहाँ यातायात बहुत होता है, मेरे स्कूटर का हैंडल एक व्यक्ति के जैकेट में फँस गया। मेरा स्कूटर बुरी तरह फिसला। ठीक मेरे पीछे एक बहुत बड़ा ट्रक था और एक पल के लिए तो मुझे लगा कि मैं नहीं बचूँगा। पर, किसी तरह, वह ट्रक सही समय पर रुका।

मैं उठा और मैंने देखा कि मुझे एक खरोंच तक नहीं आई थी। घर पहुँचकर मैंने अपने स्कूटर का मुआयना किया और पाया कि स्कूटर को भी कुछ खास नुक्सान नहीं पहुँचा था।

माँ को उनका दिव्य सरंक्षण प्राप्त हुआ

एक शाम, गुरुजी छोटे मंदिर में किचन के पास साइड-बोर्ड पर बैठे हुए थे। हम अंदर गए, मैंने गुरुजी के आगे माथा टेका और अंदर देखने गया कि क्या कोई सेवा थी। मेरी माँ ने माथा टेका तो गुरुजी ने उन्हें पहली मंज़िल पर जाकर बैठने को कहा। माँ को साँस लेने की बहुत तकलीफ रहती थी और उस दिन उनकी तबियत खराब थी। वो पहली तीन सीढ़ियाँ ही बहुत मुश्किल से चढ़ पाईं। एक संगत ने उन्हें वहीं बैठकर थोड़ा दम भरने को कहा। पर माँ ने जब पीछे मुड़कर गुरुजी की तरफ देखा तो पाया कि वह उन्हें देख रहे थे। उन्होंने सीधे ऊपर जाने का निश्चय किया।

जब वह पहली मंज़िल पर पहुँचीं तो वह हांफ रही थीं। मेरे पास उनकी दवाइयाँ थीं पर उस समय मैं वहाँ नहीं था। उन्हें पानी के गिलास की बहुत सख्त ज़रूरत थी पर इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया। थोड़ी देर में चाय प्रसाद दिया गया, उन्होंने एक गिलास लिया और बहुत मुश्किल से वो पी पाईं। पर जैसे ही उन्होंने चाय प्रसाद खत्म किया, उनमें शक्ति आ गई और उनकी हालत में सुधार आने लगा।

कुछ देर बाद वह लंगर के लिए नीचे आईं। गुरुजी ने उन्हें बुलाया और उनसे उनके नाम और हमारे घर के पते के बारे में पूछा। मेरी माँ ने उन्हें बताया, लंगर किया और उस दिन से उनका स्वास्थ बिलकुल ठीक रहा है।

गुरुजी ने मुझे और मेरे परिवार को अपनी दिव्य कृपा और संरक्षण में रखा हुआ है। मेरी हाथ जोड़कर उनसे दोबारा विनती है कि वे इसी तरह सदा हमें अपनी शरण में रखें।

वैभव अनेजा, एक भक्त

मार्च 2008