श्रद्धा के साथ चलना

विनोद बगई, नवम्बर 2008 English
2006 की शुरुआत में मैं नाभा, पंजाब में अपने होमटाउन गया और वहाँ से गुरूजी के पिंड ( जन्म-स्थान ) डुगरी के लिए निकला। मैंने गुरूजी के आगे माथा टेका, थोड़ी देर बैठा, संगत के साथ सत्संग किया और फिर शाम को वापस नाभा पहुँचा। रात को मुझे पता चला कि मेरी मौसी, जो मोरक्को में रहती हैं, मुझे वहाँ से फोन करने की कोशिश कर रही थीं उन्होंने मुझे मोरक्को आकर बस जाने का निमंत्रण पत्र डाक से भेजा।

अगला दिन बृहस्पतिवार था, संगत का दिन, और मैं पंजाब से दिल्ली पहुँचकर सीधे गुरूजी के यहाँ एम्पायर एस्टेट चला गया। एम्पायर एस्टेट में गुरूजी के मंदिर में मुझे चाय प्रसाद मिला। वहाँ गुरबानी चल रही थी और मैं वो सुन रहा था और गुरूजी ने बस सिर हिलाकर इशारा किया कि उन्होंने देखा कि मैं आया हूँ। लंगर करके जब मैं गुरूजी से आज्ञा लेने गया तो मैंने उनको मोरक्को जाने के निमंत्रण के बारे में बताया। गुरूजी ने मुझे बाहर जाने से मना किया और बोले, "बाहर नहीं जाना, बच्चे बाहर जाकर बिगड़ जाते हैं।" मैं चुपचाप घर चला आया।

अगले दिन मैं वीसा के लिए एम्बसी गया, पर मेरी अर्ज़ी अस्वीकृत हो गई क्योंकि उन लोगों को लगा कि मैं अभी कम उम्र का था और उन अधिकारियों को डर था कि वीसा की समाप्ति के बाद मैं वापस नहीं आऊँगा। हमने बहुत कोशिश की पर हमारा काम नहीं बना। 20-25 दिन बाद मैं फिर गुरूजी के पिंड और नाभा गया। मुझे पता चला कि मेरे लिए एक और निमंत्रण पत्र आया था।

अगले दिन मैं गुरूजी के पास गया और उन्हें यह बात बताई तो गुरूजी बोले, "जा, जा।" मैंने गुरूजी का शुक्रिया किया और वीसा के लिए फिर से एम्बसी गया। वह अफसर, जिसने पिछली बार मेरी अर्ज़ी अस्वीकृत कर दी थी, मुझे देखकर मुस्कुराया। मेरा हँसमुख बर्ताव देखकर वह विस्मित था। एक बार अर्ज़ी स्वीकारी ना जाने पर किसी को भी एक तनावपूर्ण व्यवहार की अपेक्षा होती है। लेकिन गुरुजी की मंज़ूरी मिलने के बाद मैं आश्वस्त था कि परिणाम अच्छा होगा।

गुरुजी के आशीर्वाद से मेरे पासपोर्ट पर दो महीने के वीसा की स्टैम्प लग गई। उसके बाद मैं दो देशों की यात्रा पर गया और ठीक दो महीने बाद लौटा। यह महज़ एक इत्तिफ़ाक़ नहीं था कि दोनों बार नंबर 'दो' था – मेरी यात्रा की अवधि और देशों की संख्या जहाँ मैं गया। आखिरकार गुरुजी ने मुझे जाने के लिए दो बार कहा था ( "जा, जा")।

एक अंकल, जो मुझसे पहले देश के बाहर गए थे, को एयरपोर्ट पर नौ घंटे इंतज़ार करवाया गया था और उन्होंने फोन करके मुझे आगाह किया था कि एयरपोर्ट पर बहुत कड़ी जाँच हो रही थी और मुझे सावधानी बरतनी चाहिए। मैंने उनसे कहा कि मैं गुरुजी के आशीर्वाद से जा रहा था और मुझे चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसके बाद की घटना मेरी श्रद्धा के अनुकूल हुई: मुझे एयरपोर्ट पर नौ मिनट भी इंतज़ार नहीं करवाया गया और मैं अपनी मंज़िल सकुशल और आराम से पहुँचा। यह सब गुरुजी के आशीर्वाद से ही हुआ।

गुरुजी के ' विशेष आयोजन '

नवम्बर 2006 में मैं अपने दोस्त के साथ वैष्णो देवी गया। गुरुजी के आशीर्वाद से हमारी यात्रा आरामदायक और सुरक्षित रही। आम तौर पर वहाँ दर्शन के लिए बहुत भीड़ होती है और दर्शन के लिए एक दिन से ज़्यादा भी लग जाता है, परन्तु सौभाग्यवश वहाँ से हमारी रवानगी के दो दिन पहले ही हमें दर्शन हो गए। पर क्योंकि ट्रेन में आरक्षण मिलना बहुत कठिन होता है, हमने अपनी वापसी की टिकट पहले ही करा दी थीं। अब क्योंकि हम दर्शन कर चुके थे, हमने अपनी वापसी के सफर की तिथि आगे कराने का निश्चय किया।

अपनी पहले की बुकिंग रद्द कराने और नई टिकट लेने के लिए हम टिकट काउंटर पर गए। हमें जो नई टिकट मिलीं उनका नंबर 89 था, जिसका मतलब हमें सिर्फ आधी सीट मिलनी थी। सारे रास्ते हमें बैठकर वापस जाना था। क्योंकि मैं दिल्ली में रेलवे में कांट्रेक्टर हूँ, मैंने रेलवे में अपने एक जानकार को फोन किया। लेकिन मुझे कहा गया कि लोगों की बहुत भीड़ होने के कारण टिकट कन्फर्म होना मुमकिन नहीं था। मैंने अपने जानकार को कहा कि अब सीट के लिए मैं उच्चतम अधिकारी, गुरुजी, से निवेदन करूँगा। मेरा साथी अचम्भे में था कि इस संकट से हम कैसे निकलेंगे। मैंने उससे कहा कि चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी और गुरुजी के आशीर्वाद से सब ठीक हो जाएगा।

मैंने ऊपर आकाश की ओर देखकर गुरुजी से प्रार्थना की। मैं बोला कि यहाँ आते समय तो हमें पूरी सीट मिली थी परन्तु वापस जाते समय हमारे पास सिर्फ आधी ही सीट है। कृपा करके गुरुजी अपना आशीर्वाद हम पर बरसाते रहिये! मुझे अंदर की आवाज़ ने कहा कि मैं स्टेशन जाऊँ। जब हम स्टेशन पहुँचे तो हमें पता चला कि सारी 89 सीट कन्फर्म हो गई थीं – यह बहुत अनोखी बात थी। विस्मित, हम स्टेशन मास्टर के पास गए। एकदम सही अंदरूनी खबर पाने के लिए, मैंने उन्हें अपना आइडेंटिटी कार्ड दिखाया, बताया कि मैं रेलवे हेडक्वार्टर्स से हूँ और जानना चाहता हूँ कि कैसे इतनी सारी सीटें कन्फर्म हो गई थीं। स्टेशन मास्टर बोले कि कोई खास इंतज़ाम नहीं किये गए थे। रेलवे ने नहीं किये थे, पर मेरे भगवान, गुरुजी, ने अपने भक्त के लिए अवश्य किये थे! अब हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि हमारी रिज़र्वेशन कन्फर्म हो गई थी।

ट्रेन में चढ़ने के बाद, जल्द ही मुझे नींद आ गई और गुरुजी ने मुझे दर्शन दिए। वह बोले, "हाँ, मिल गया पूरा फट्टा, चलो ऐश करो।" मैंने आँखें खोलीं और विस्मित हुआ जब मुझे गुरुजी की दिव्य खुशबू आई। जब मैं गुरुजी के दर्शन के लिए एम्पायर एस्टेट गया तो गुरुजी ने आँखों से इशारा किया कि सब ठीक था।

वास्तव में हम धन्य हैं कि हमें गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त है और मेरी उनसे यही प्रार्थना है कि वह सदा हम पर अपनी कृपा बरसाते रहें। जय गुरुजी!

विनोद बगई, एक भक्त

नवम्बर 2008