नानक चिंता मत करो... जल में जन्त उपायन, तिन्ना वि रोज़ी देहे
मैं गुड़गाँव के सेक्टर 56 में 2003 में रहने के लिए आया। मुझे पता लगा कि यहाँ पर कोई भी मंदिर नहीं है। प्रभु कृपा से मेरी पहल पर, मंदिर निर्माण के लिए, स्थानीय नागरिकों का एक संगठन बनाया गया। थोड़े समय पश्चात्, फरवरी 2004 में, हरियाणा नगर विकास निगम ने धार्मिक स्थान बनाने के लिए 1000 वर्ग गज भूमि खंड देने का निर्णय लिया। हमारे संगठन ने सेक्टर 56 में ऐसे एक भूमिखंड के लिए आवेदन दिया।
हमारे क्षेत्र में हो रहे योग और प्राणायाम सत्रों के माध्यम से मैं कमांडर शर्मा के संपर्क में आया। उन्होंने मुझे गुरुजी महाराज के बारे में बताया और कैसे उनके परिवार को उनका आशीर्वाद मिला था। कमांडर ने यह सुझाव भी दिया कि यदि संगठन के सदस्य गुरुजी के पास जाकर उनसे अनुग्रह करें तो मंदिर निश्चित बन जाएगा।
उसके पश्चात्, 25 जुलाई 2004 को, कमांडर शर्मा के साथ, मैं पहली बार बड़े मंदिर गया। उसी दिन शाम को मैं, अपनी पत्नी प्रीति के साथ, गुड़गाँव में, श्री मदन के घर पर आयोजित एक सत्संग में गया। वहाँ पर कई अनुयायियों ने गुरुजी से सम्बंधित अपने संस्मरण सुनाये। संगत के सदस्य गुरुजी के चित्र के समक्ष अत्यंत प्रेम और श्रद्धा से नतमस्तक हो रहे थे। मुझे लग रहा था कि क्या यह गुरुजी का प्रचार करने का अपना ढंग है? परन्तु मैंने अपने विचार अपने तक ही सीमित रखे।
चार दिन पश्चात् संगठन के प्रमुख कार्यकर्ता, कमांडर शर्मा के साथ, गुरुजी के दर्शन हेतु एम्पायर एस्टेट गये। मुझे वहाँ का वातावरण अत्यंत सौम्य लगा। लंगर करने के पश्चात्, चलने से पूर्व, हमने गुरुजी को अपना उद्देश्य बताया तो उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया और कहा कि मंदिर बन जाएगा। कमांडर शर्मा अति प्रसन्न हुए। उन्हें पता था कि गुरुजी के आशीर्वाद के पश्चात् हरियाणा नगर विकास निगम से भूमि मिल जाएगी और मंदिर का निर्माण भी पूरा हो जाएगा।
भूमि आबंटन में अत्याधिक प्रतिस्पर्धा थी किन्तु गुरुकृपा से हमारे संगठन - सनातन धर्म और समाज कल्याण संगठन - को दिसंबर 2004 में भूमि मिली। फलस्वरूप संगठन में 60 आजीवन सदस्य सम्मिलित हो गये। 14 फरवरी 2006 को गुरुजी की कृपा और सेक्टर 56 के निवासियों के सहयोग से मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ।
चूँकि मुझे गुरुजी के यहाँ अच्छा लगा था, मैंने प्रीति से पूछा कि वह वहाँ पर चलना चाहेगी तो उसने मान लिया। हम एम्पायर एस्टेट, रविवार, 01 अगस्त 2004 को गये। वहाँ से लौटते हुए एक भक्त ने गुरुजी का एक चित्र दिया।
मेरी पत्नी की शल्य क्रिया टली
दर्शन के पश्चात् प्रीति अति प्रसन्न थी और उसने कहा कि वह बहुत समय से गुरुजी जैसे स्थान, जहाँ शांति प्राप्त हो, की कल्पना करती रही थी। 1998 से प्रीति को अनेक स्वास्थ्य समस्याएँ थीं। उसे गर्भकला अस्थानता थी, ओवेरियन सिस्ट्स और फ़िब्रोइद्स थे। हम होम्योपैथी, आयुर्वेद और एलोपैथी के चिकित्सकों के चक्कर काटते रहे थे किन्तु उपचार नहीं हो सका था। अगस्त 2003 में हुई उसकी शल्य क्रिया में उसके अंडाशय और गर्भाशय निकाल दिये गये थे। यद्यपि उसे दो माह कोई समस्या नहीं हुई थी लेकिन उसके बाद उसकी वेदना फिर आरम्भ हो गयी थी। चिकित्सक उसका निदान नहीं कर पा रहे थे। कुछ ने कहा कि उसे मांसपेशियों में दर्द था, अन्य कह रहे थे कि उसके गुर्दे में पथरी या पेट का दर्द था। सारांश में चिकित्सक अपने निर्णय में एकमत नहीं थे।
गुरुजी के दर्शनों के तीन दिन बाद, 4 अगस्त 2005, को रात्रि में प्रीति को गुर्दे के क्षेत्र में अत्याधिक पीड़ा हुई। दर्द निवारक औषधियों से लाभ नहीं हुआ। प्रातः उसकी पीड़ा कम थी पर रात को फिर वही स्थिति हो गयी। प्रीति ने प्रश्न किया कि गुरुजी का चित्र घर में होने के बाद भी उसकी स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ। 6 अगस्त को हम अपने चिकित्सक के पास गये। उन्होंने दस परीक्षण करवाने के लिए कहा। उसी दिन संध्या को उसने बताया कि पहले हुई शल्य क्रिया में केवल एक अंडाशय निकाला गया था, दूसरा अभी भी अन्दर ही था और गर्भकला अस्थानता के कारण उस अंडाशय पर एक विशाल पुटक बन गया था। यह पुटक गुर्दे पर दबाव डालता रहा था। जिससे वह अपने सामान्य आकार से दुगना हो गया था। इस प्रकार, गुरुजी महाराज के प्रथम दर्शन के पाँच दिन बाद ही, प्रीति की स्वास्थ्य समस्या का निदान हो गया था। चिकित्सकों ने तुरन्त शल्य क्रिया का परामर्श दिया।
अगले दिन रात्रि को 11:30 बजे हम प्रीति को गंभीर अवस्था में चिकित्सालय ले जा रहे थे। हम मार्ग में थोड़ी देर के लिए एम्पायर एस्टेट में गुरुजी का आशीर्वाद लेने के लिए रुके। गुरुजी ने प्रीति को आशीष देकर आश्वस्त किया कि सब ठीक हो जाएगा। हम चिकित्सालय पहुँचे। मैंने अपनी जेब में गुरुजी का चित्र रख लिया थ। 7 अगस्त को प्रीति के अनेक परीक्षण हुए और औषधियाँ दी गयीं। तीन दिन के उपरान्त उसे वहाँ से निवृत करते हुए अपोलो चिकित्सालय में एक महत्त्वपूर्ण शल्य क्रिया करवाने के लिए कहा गया।
12 अगस्त को बृहस्पतिवार था और उस दिन गुरुजी के पास जा सकते थे। जब मैंने प्रीति से पूछा कि वह चल पायेगी तो उसने हाँ कहा और हम गुरुजी के पास गये। वहाँ से निकलने पर प्रीति ने मुझे बताया कि उसने मन ही मन गुरुजी से इस प्रकार प्रार्थना की थी, "पिछले वर्ष मेरी शल्य क्रिया हो चुकी है और वह अत्यंत पीड़ादायक होती है। अगले सप्ताह मुझे फिर ऐसी ही बड़ी शल्य क्रिया करवानी है। मैं विनती करती हूँ कि शल्य क्रिया से बचा कर मुझे औषधियों से स्वस्थ कर दें।" मैंने भी गुरुजी से निवेदन किया था किन्तु माध्यम उन पर छोड़ दिये थे।
अगले दिन हम अपोलो चिकित्सालय गये। हमारे चिकित्सक ने कहा कि शल्य क्रिया अति आवश्यक है और उससे सम्बंधित तैयारियाँ आरम्भ कर दीं। प्रीति व्यथित थी। वह बोली कि उसने गुरुजी से प्रार्थना की थी पर उसके भाग्य में यह नहीं था कि वह उसकी सहायता करें।
15 अगस्त को गुरुजी के सत्संग का आयोजन श्री भाटिया के घर में था। जब मैंने प्रीति से पूछा कि क्या वह चलेगी तो उसने मना कर दिया। उसने कहा कि उसे गुरुजी में विश्वास था परन्तु उसका भाग्य इतना अच्छा नहीं था। उसने कहा कि वहाँ पर भक्त जब गुरुजी की कृपा प्राप्त करने की बात करेंगे तो उसे बुरा लगेगा। अतः मैं अकेला गया। पहले सत्संग का वर्णन प्रीति के रोग के समान था। अंडाशय के पुटकों से पीड़ित एक महिला जिसकी शल्य क्रिया होनी थी, गुरुकृपा से उन कष्टों से बच गयी थी। मुझे विश्वास हो गया कि गुरुजी मुझे भविष्य का पूर्वाभास करा रहे थे।
उसके बाद क्रम से चमत्कार होने लगे। चिकित्सक, जो प्रीति की शल्यक्रिया करने को तत्पर थे, प्रीति का सुधार देख कर दंग थे। कुछ ही दिनों में चिकित्सकों ने कहा कि उसके पुटक का आकार घट कर 30 प्रतिशत शेष रह गया था, जिसका उपचार औषधियों से संभव था। तबसे प्रीति के स्वास्थ्य में लगातार प्रगति होती रही है वह कम से कम औषधियाँ ले रही है और उसे शल्यक्रिया की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। प्रीति को वही मिला जिसके लिए उसने विनती की थी - शल्य क्रिया करवाये बिना औषधियों से उपचार - गुरुकृपा के लिए हम उनके अत्यंत आभारी हैं।
गुरुजी के पास जाकर उनको कुछ कहना नहीं पड़ता है। उनके चरणों में जो भी आता है वह उसका ध्यान रखते हैं।
आर्थिक विपदा से मुक्ति
गुरुजी महाराज के पास आने के पश्चात् हमारे जीवन में नाटकीय परिवर्तन आया है। पहले मुझे जीवन के सब पहलुओं की चिंता लगी रहती थी। यह प्रवृत्ति अब समाप्त हो चकी है। अब मुझे ज्ञात है कि गुरुजी हर समस्या का ध्यान रखते हैं। कोई भी स्थिति गुरुजी द्वारा रचित है। गुरुजी अपने भक्तों से बहुत कम बात करते हैं किन्तु ध्यान सबका करते हैं। उन्होंने 8 अक्टूबर को मुझे कहा, "जा, तेरा कल्याण कर दित्ता"।
उस दिन से मेरे जीवन में परिवर्तन आने लगा। मेरा व्यवसायिक जीवन बदल गया। मैं एक व्यवसाय कर रहा था किन्तु उसमें मुझे संतोष नहीं था और उसे बदलना चाह रहा था; किन्तु जीवन के पाँचवे दशक के मध्य में ऐसा सरल नहीं होता और मुझमें ऐसा करने का साहस नहीं था। लेकिन गुरुजी मुझे अनेक नाजुक परिस्थितियों से बाहर निकाल कर लाये - "बाहँ पकड़ गुरु काड्या, सो ही उतरैया पार"।
मैंने अपना पिछला व्यवसाय 16 अगस्त 2005 को बंद कर दिया। गुरुकृपा से अब मुझे अपने नए व्यवसाय में अधिक पारितोषिक मिलता है। अब मैं एक राष्ट्रीय उपक्रम की योजनाएँ बना रहा हूँ जिससे मुझे व्यवसायिक संतोष भी मिलता है। इस परिवर्तन की अवधि में गुरुजी की दया से मैं संभला रहा। एक शबद के शब्द हैं:
'नानक चिंता मत करो, चिंता तिस ही है,
जल में जंत उपाईन, तिना वी रोज़ी दे।'
इस समय मेरा मकान भी बन रहा था। जब भी किश्त देने का समय आता तो मेरे सामने आर्थिक कठिनाईयाँ आती थीं। मैंने गुरुजी को कुछ नहीं बताया लेकिन उनको पता था। अब जब भी धन की आवश्यकता होती थी, वह आ जाता था। जिन्होंने मेरी सहायता की, उन्होंने उसकी वापसी के लिए कभी शीघ्रता नहीं की।
एक वर्ष के उपरान्त, 16 मई 2006 को मुझे अपने घर की चाबियाँ मिल गयीं और 19 मई को मैंने उन्हें गुरुजी के कमल चरणों में रख दिया। आर्थिक संकट की अवधि में उन्होंने ही मेरी सहायता की थी।
मेरे लिए गुरुजी ईश्वर हैं। प्रतिदिन मैं एक मंदिर में जाया करता था। मैं अनेक देवी-देवताओं की पूजा करता था। अब मुझे गुरुजी में प्रत्येक देवी-देवता दिख जाते हैं - "एको नाम धिये मन मेरे"। मुझे अब मात्र एक मन्त्र पता है: ॐ नमः शिवाय, गुरुजी सदा सहाय। मैंने अपने सम्मुख ईश्वर को देखा है। मुझे अब कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरी खोज गुरुजी के कमल चरणों में आकर समाप्त है।
सुरक्षा कर्मी को जीवन दान
फरवरी 2005 में एक दिन मैं अपने कार्यालय जा रहा था कि मैंने एक 20 वर्षीय सुरक्षा कर्मी को सड़क पर पड़े हुए देखा। कुछ लोग उसे घेर कर खड़े हुए देख रहे थे। मैंने उसका मुँह खोला तो वह साँस ले रहा था किन्तु उसके साथ उसके मुख से रक्त और झाग निकल रहे थे। उसकी यह अवस्था देख कर स्पष्ट था कि उसके जीवन का कुछ ही समय शेष है। मैंने अपनी आँखें बंद कर गुरुजी से उसे बचाने के लिए प्रार्थना की। आँखें खोलने पर मैं चकित रह गया। आधे मिनट में वह उठ कर खड़ा हो गया था। मैंने गुरुजी को धन्यवाद दिया और उससे उसका नाम और पता पूछा। उसके सही उत्तर से प्रतीत हुआ कि वह ठीक था। मैं अपने कार्यालय आ गया। मुझे आभास हो गया था कि गुरुजी सदा हमारे साथ हैं; जब भी हम उनको याद करते हैं, वह उत्तर देते हैं।
जब मुझे गुरुजी के मंदिर में आते रहने से पूर्ण शांति मिल गयी थी मैंने सतगुरु को अपने परिवार के सब सदस्यों को अपने कमल चरणों में स्थान देने का अनुरोध किया। गुरुकृपा से मेरे माता-पिता, मेरे दोनों भाई और उनके परिवार, मेरी सास, मेरी पत्नी के भाई और उनका परिवार, सबको उनकी शरण मिली है और उनको भी अनेक अनुभव हुए हैं। गुरुजी ने हर एक को शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान किये हैं। सबकी प्रवृत्ति में परिवर्तन हुआ है। अब परिवार में अत्यंत प्रेम और सुख शांति है।
शिव नृत्य
मेरा छोटा भाई रमेश अपने परिवार के साथ मई 2005 में गुरुजी के दर्शन के लिए आया। लुधियाना लौटने के पश्चात् उसकी पत्नी सोनल गंभीर रूप से बीमार हो गयी। चार पाँच दिन से उसका तापमान 104° रहा था और उसे मियादी ज्वर (टाइफाइड) हो गया था। पाँचवें दिन गुरुजी उसके स्वप्न में आये और विशु (उसके पुत्र) के बारे में प्रश्न करके बोले कि वह उसे आशीर्वाद देने आये हैं। सोनल ने उत्तर दिया कि वह बाहर गया हुआ है किन्तु वह स्वयं बहुत अस्वस्थ है और मरना नहीं चाहती। गुरुजी ने उसे चिंता करने के लिए मना किया और अपना हाथ आशीर्वाद के लिए उठाया। उनके हाथ से कुछ किरणें निकल कर सोनल के शरीर में प्रवेश कर गयीं।
उस रात उसे बहुत पसीना आया - ज्वर घटने के निश्चित चिह्न। अगले दिन सुबह उठ कर उसने फोन पर मुझे स्वप्न के बारे में बताया। उस दिन से उसका ज्वर कम होना आरम्भ हो गया और कुछ ही दिनों में वह पुनः स्वस्थ हो गयी। एक ही दर्शन से गुरुजी ने उस पर अपनी दया वृष्टि कर दी थी। वह सब दर्शनार्थियों को देखते और परखते हैं और उनका ध्यान रखते हैं। गुरुजी महाराज की जय हो।
नवम्बर 2005 में एक दिन रमेश रामायण का पाठ करते हुए उस अंश पर पहुँचा जहाँ पर गुरु महिमा का वर्णन आता है। उसने गुरुजी के बारे में सोचा और एकदम अपने विचारों में उनके पास एम्पायर एस्टेट पहुँच गया। उसने गुरुजी को अपने कक्ष से बाहर निकलते हुए देखा। उसने गुरुजी को आलिंगन में लिया तो वह दो आकृतियों में विभाजित हो गये। एक अपने आसन पर जाकर बैठ गयी और दूसरी शिव स्वरूप धारण कर 15 मिनट तक रमेश के साथ नृत्य करती रही। नृत्य करते हुए उसने गुरुजी से प्रश्न किया कि क्या अन्य लोग उन्हें देख सकते हैं तो उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया और बोले कि उसे केवल आनंदित होना चाहिए।
नृत्य के उपरान्त शिव गुरुजी के शरीर में प्रवेश कर गये। इसी अवस्था में रमेश ने लंगर ग्रहण किया और वापस अपने घर आ गया। कुछ दिन बाद जब रमेश गुरुजी के दर्शन के लिए दिल्ली आया तो उसने यह अनुभव मुझे बताया। गुरुजी ने रमेश को अपने घर बनाने के लिए आशीष दिया। यद्यपि रमेश अत्यंत परिश्रमी था, पिछले दस वर्षों में वह अपना घर नहीं बना पाया था। 29 मई 2006 को वह अपने घर में प्रवेश कर सका।
उसकी बेटी देवयानी अत्यंत बुद्धिमती थी। परिश्रमी होते हुए भी वह सदा अपनी कक्षा में द्वितीय स्थान पर ही आती थी - कुछ ही अंकों से प्रथम स्थान पाने में असफल रह जाती थी। गुरुजी के दर्शन के बाद देवयानी, वर्ष 2006 में, न केवल अपने अनुभाग में, अपितु पूरी छठी कक्षा के चारों अनुभागों में प्रथम आयी। गुरुजी की कृपा इस प्रकार भक्तों पर प्रवाहित होती है। उसका भाई विशु, भी इसी प्रकार के अंक लेकर आठवीं कक्षा में उत्तीर्ण हुआ, यद्यपि उसकी ऐसा करने की आशा नहीं थी।
गुरुजी शिव दुर्गा हैं
मेरे बड़े भ्राता, शिव कुमार पुष्कर्ण ने, अक्टूबर 2004 में मात्र औपचारिकता के कारण मेरे घर में आयोजित गुरुजी के सत्संग में भाग लिया। अंतत: वह वर्ष 2004 के मध्य में गुरुजी की शरण में पहुँच पाये। उन्हें वहाँ पर अदभुत शांति मिली। उसके बाद उनका स्वभाव अत्यंत शांत और सौम्य हो गया है।
एक दिन मेरी भाभी अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या के अंतर्गत दुर्गा स्तुति नहीं कर पायीं थीं। वह व्यथित थीं। अचानक गुरुजी उनके सामने प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि उन्हें इन बातों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए। वह बोले कि वह सर्वत्र हैं और वह केवल उनको याद कर लें तो पर्याप्त होगा। फिर भाभीजी को दिखाने के लिए कि वह दुर्गा भी हैं, उस रूप में परिवर्तित हो कर उनको गले लगाया और अंतर्ध्यान हो गये।
भाभीजी को घुटने में शूल रहता था। चिकित्सकों ने अनेक परीक्षण और औषधियों का दीर्घकालीन उपचार बताया था। शिवरात्रि 2006 को वह बड़े मंदिर गयीं और गुरुकृपा से उनकी वह वेदना उसी दिन से समाप्त हो गयी है।
15 मई 2006 को हम शिव मंदिर गये। हॉल में शिव की प्रतिमा और गुरुजी का आसन है। मेरे बड़े भाई ने पहले शिव प्रतिमा को और फिर गुरुजी के आसन को नतमस्तक होकर आदर दिया। उन्होंने देखा कि संगत पहले गुरुजी को और फिर शिव प्रतिमा को आदर दे रही है। वह सोचने लगे कि क्या उचित है। हम मंदिर में कोई डेढ़ घन्टा रहे और सत्संग का आनंद लेते रहे। जाते हुए मेरे बड़े भाई ने जब शिव प्रतिमा के सामने नतमस्तक होकर अपना सर उठाया तो उन्होंने शिव के स्थान पर गुरुजी का मुख देखा। उन्हें अपना उत्तर मिल गया था - इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि पहले गुरुजी या शिव को प्रणाम करें, वह तो एक ही हैं।
इस प्रसंग से पूर्व श्रीमती सब्बरवाल संगत को बताती थीं कि उन्होंने गुरुजी को शिव स्वरूप में देखा है। परन्तु मेरे मन में संशय बना हुआ था। मेरे भाई के इस अनुभव के पश्चात् वह दूर हो गया। शिव की शरण में, यहाँ पर गुरुजी के रूप में उपस्थिति, मैं अपने आप को अत्यंत भाग्यशाली मानता हूँ।
मेरे मित्रों को भी आशीष
मैंने अपने अनुभव अपने मित्रों को बताये तो उनमें से अनेक गुरुजी के पास आये और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री विनोद गुप्ता की बेटी का जीवन परिवर्तित हुआ जब उसे एक अति सुन्दर स्वभाव के पति और ससुराल वाले मिले। मेरे एक अन्य मित्र, श्री योगेश गुप्ता का स्थानान्तरण लुधियाना से गोरखपुर हो गया था। वह जीवन के एक कठिन दौर से गुजर रहे थे। गोरखपुर जाने से पूर्व उन्होंने गुरुजी के दर्शन किये। यद्यपि उन्होंने गुरुजी को अपनी समस्या से अवगत नहीं किया था, 11 माह में उनका स्थानान्तरण गाज़ियाबाद हो गया। पटपड़गंज में उनका मकान है और गुरुकृपा से वह घर वापस आ गये।
इसी प्रकार श्री राजेश शर्मा की कंपनी उन पर झुठे अभियोग लगा रही थी। वह गुरुजी की शरण में आये और उन्हें शांति का आभास हुआ। उनकी कंपनी ने उन्हें मुकदमे के लिए अंतर्राष्ट्रीय वकील करने को कहा। उन्होंने मुझे बताया कि अब उनके पास 'ब्रह्माण्ड के वकील' हैं तो उन्हें कोई चिंता नहीं है। गुरुजी के पास आने के पश्चात् कंपनी उन अभियोगों को भूल गयी और वह अपने उसी पद पर सुख पूर्वक कार्यरत हैं। राजेश जालंधर में रहते हैं और वहाँ पर गुरुजी के मंदिर जाते रहते हैं।
वैवाहिक समस्या का अंत
मेरी सास अपने परिवार सहित 1 जनवरी 2005 को गुरुजी के दर्शन के लिए आई। पिछले दस वर्षों से मेरी पत्नी के भाई, आशीष, का दाम्पत्य जीवन अत्यंत व्यथित रहा था। जून 2005 में स्थिति अति गंभीर हो गयी और ऐसा लगा कि शीघ्र ही तलाक हो जाएगा। मेरी सास गुड़गाँव आयीं और उन्होंने गुरुजी के पास जाकर दम्पति के सुखी जीवन के लिए प्रार्थना की। एक सप्ताह में ही दम्पति के मध्य आई समस्या स्वतः ही समाप्त हो गयी। उसके बाद वह दोनों गुरुजी के दर्शन के लिए आए। उनकी कृपा से आशीष और उसकी पत्नी अब सुखपूर्वक रहते हैं और अपने पुत्र की एक साथ देखभाल करते हैं।
विजय कुमार पुष्कर्ण, गुड़गाँव
जुलाई 2007