यमलोक के मार्ग में सुविधा प्रदान करनेवाले विविध दानों का वर्णन

व्यासजी बोले – प्रभो! पापी मनुष्य बड़े दुःख से यमलोक के मार्ग में जाते हैं। अब आप मुझे उन धर्मों का परिचय दीजिये, जिनसे जीव सुखपूर्वक यममार्ग पर यात्रा करते हैं।

सनत्कुमारजी ने कहा – मुने! अपना किया हुआ शुभाशुभ कर्म बिना विचारे विवश होकर भोगना पड़ता है। अब मैं उन धर्मों का वर्णन करता हूँ, जो सुख देने वाले हैं। इस लोक में जो श्रेष्ठ कर्म करनेवाले, कोमलचित्त और दयालु पुरुष हैं, वे भयंकर यममार्ग पर सुख से यात्रा करते हैं। जो श्रेष्ठ ब्राह्मणों को जूता और खड़ाऊँ दान करता है, वह मनुष्य विशाल घोड़े पर सवार हो बड़े सुख से यमलोक को जाता है। छत्र दान करने से मनुष्य उस मार्ग पर उसी तरह छाता लगाकर चलते हैं, जैसे यहाँ छातेवाले लोग चलते हैं। शिाविका का दान करने से मनुष्य रथ के द्वारा सुख से यात्रा करते हैं। शय्या और आसन का दान करने से दाता यमलोक के मार्ग में विश्राम करते हुए सुखपूर्वक जाता है। जो बगीचे लगाते और छायादार वृक्ष का आरोपण करते हैं अथवा सड़क के किनारे वृक्षारोपण करते हैं, वे धूप में भी बिना कष्ट उठाये यमलोक को जाते हैं। जो मनुष्य फुलवाड़ी लगाते हैं, वे पुष्पक विमान से यात्रा करते हैं। देवमन्दिर बनानेवाले उस मार्ग पर घर के भीतर क्रीड़ा करते हैं। जो यतियों के आश्रम का निर्माण कराते हैं और अनाथों के लिये घर बनवाते हैं, वे भी घर के भीतर क्रीड़ा करते हैं। जो देवता, अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, माता और पिता की पूजा करते हैं, वे मनुष्य स्वयं ही पूजित हो अपनी इच्छा के अनुकूल मार्ग द्वारा सुख से यात्रा करते हैं। दीपदान करनेवाले मनुष्य सम्पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित करते हुए जाते हैं। गृहदान करने से दाता रोग-शोक से रहित हो सुखपूर्वक यात्रा करते हैं। गुरुजनों की सेवा करनेवाले मानव विश्राम करते हुए जाते हैं। बाजा देने वाले उसी तरह सुख से यात्रा करते हैं, मानो अपने घर जा रहे हों। गोदान करनेवाले लोग सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तुओं से भरे-पूरे मार्ग द्वारा जाते हैं। मनुष्य उस मार्ग पर इस लोक में दिये हुए अन्न-पान को ही पाता है। जो किसी को पैर धोने के लिये जल देता है, वह ऐसे मार्ग से जाता है, जहाँ जल की सुविधा हो। जो आदरणीय पुरुषों के पैरों में उबटन लगाता है, वह घोड़े की पीठ पर बैठकर यात्रा करता है।

व्यासजी! जो पाद्य, अभ्यंग (अंगराग) दीपक, अन्न और घर दान करता है, उसके पास यमराज कभी नहीं जाते। सुवर्ण और रत्न का दान करने से मनुष्य दुर्गम संकटों और स्थानों को लाँघता हुआ जाता है। चाँदी, गाड़ी ढोनेवाले बैल और फूलों की माला दान करने से दाता सुखपूर्वक यमलोक में जाता है। इस तरह के दानों से मनुष्य सुखपूर्वक यमलोक की यात्रा करते हैं और स्वर्ग में सदा भाँति-भाँति के भोग पाते हैं। सब दानों में अन्नदान को ही उत्तम बताया गया है; क्योंकि यह तत्काल तृप्ति प्रदान करनेवाला, मन को प्रिय लगनेवाला तथा बल और बुद्धि को बढ़ानेवाला है। मुनिश्रेष्ठ! अन्नदान के समान दूसरा कोई दान नहीं है; क्योंकि अन्न से ही प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न के अभाव में मर जाते हैं। अतएव अन्नदान से महान् पुण्य बताया गया है; क्योंकि अन्न के बिना भूख की आग से तप्त हुए समस्त प्राणी मर जाते हैं। अतः अन्न की ही सब लोग प्रशंसा करते हैं; क्योंकि अन्न में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है। अन्न के समान दान न तो हुआ है और न होगा। मुने! यह सम्पूर्ण जगत् अन्न से ही धारण किया जाता है। लोक में अन्न को बलकारक बताया गया है; क्योंकि अन्न में ही प्राण प्रतिष्ठित हैं।

प्राप्त हुए अन्न की कभी निन्दा न करे और न किसी तरह उसे फेंके ही। कुत्ते और चाण्डाल के लिये भी किया हुआ अन्नदान कभी नष्ट नहीं होता। जो मनुष्य थके-माँदे और अपरिचित पथिक को अन्न देता है और देते समय कष्ट का अनुभव नहीं करता, वह समृद्धि का भागी होता है। महामुने! जो देवताओं, पितरों, ब्राह्मणों और अतिथियों को अन्न से तृप्त करता है, उसे महान् पुण्य-फल की प्राप्ति होती है। अन्न और जल का दान शूद्र और ब्राह्मण के लिये भी समान रूप से महत्त्व रखता है। अन्न की इच्छावाले पुरुष से उसका गोत्र, शाखा, स्वाध्याय और देश नहीं पूछना चाहिये।

अन्न साक्षात् ब्रह्मा है, अन्न साक्षात् विष्णु और शिव है। इसलिये अन्न के समान दान न हुआ है और न होगा! जो पहले बड़ा भारी पाप करके भी पीछे अन्न का दान करनेवाला हो जाता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक में जाता है। अन्न, जल, घोड़ा, गौ, वस्त्र, शय्या, छत्र और आसन – इन आठ वस्तुओं के दान यमलोक के लिये उत्तम माने गये हैं। इस प्रकार दानविशेष से मनुष्य विमान पर बैठकर धर्मराज के नगर में जाता है; इसलिये सबको दान करना चाहिये। महामुने! जो इस प्रसंग को सुनता अथवा श्राद्ध में ब्राह्मणगों को सनाता है, उसके पितरों को अक्षय अन्नदान प्राप्त होता है।

(अध्याय ११)