मृत्युकाल निकट आने के कौन-कौन से लक्षण हैं, इसका वर्णन
इसके पश्चात् द्वीपों, लोकों और मनुओं का परिचय देकर संग्राम के फल, शरीर एवं स्त्री-स्वभाव आदि का वर्णन किया गया। तदनन्तर काल के विषय में व्यासजी के पूछने पर सनत्कुमारजी ने कहा – मुनिश्रेष्ठ! पूर्वकाल में पार्वतीजी ने नाना प्रकार की दिव्य कथाएँ सुनकर परमेश्वर शिव को प्रणाम करके उनसे यही बात पूछी थी।
पार्वती बोलीं – भगवन्! मैंने आपकी कृपा से सम्पूर्ण मत जान लिया। देव! जिन मन्त्रों द्वारा जिस विधि से जिस प्रकार आपकी पूजा होती है, वह भी मुझे ज्ञात हो गया। किंतु प्रभो! अब भी एक संशय रह गया है। वह संशय है कालचक्र के सम्बन्ध में। देव! मृत्यु का क्या चिह्न है? आयु का क्या प्रमाण है? नाथ! यदि मैं आपकी प्रिया हूँ तो मुझे ये सब बातें बताइये।
महादेवजी ने कहा – प्रिये! यदि अकस्मात् शरीर सब ओर से सफेद या पीला पड़ जाय और ऊपर से कुछ लाल दीखे तो यह जानना चाहिये कि उस मनुष्य का मृत्यु छः महीने के भीतर हो जायगी। शिवे! जब मूँह, कान, नेत्र और जिह्वा का स्तम्भन हो जाय, तब भी छः महीने के भीतर ही मृत्यु जाननी चाहिये। भद्रे! जो रुरु मृग के पीछे होने वाली शिकारियों की भयानक आवाज को भी जल्दी नहीं सुनता, उसकी मृत्यु भी छः महीने के भीतर ही जाननी चाहिये। जब सूर्य, चन्द्रमा या अग्नि के सांनिध्य से प्रकट होनेवाले प्रकाश को मनुष्य नहीं देखता, उसे सब कुछ काला-काला – अन्धकाराच्छन्न ही दिखायी देता है, तब उसका जीवन छः मास से अधिक नहीं होता। देवि! प्रिये! जब मनुष्य का बायाँ हाथ लगातार एक सप्ताह तक फड़कता ही रहे, तब उसका जीवन एक मास ही शेष है – ऐसा जानना चाहिये। इसमें संशय नहीं है। जब सारे अंगों में अँगड़ाई आने लगे और तालु सूख जाय, तब वह मनुष्य एक मास तक ही जीवित रहता है – इसमें संशय नहीं है। त्रिदोष में जिसकी नाक बहने लगे, उसका जीवन पंद्रह दिन से अधिक नहीं चलता। मुँह और कण्ठ सूखने लगे तो यह जानना चाहिये कि छः महीने बीतते-बीतते इसकी आयु समाप्त हो जायगी। भामिनि! जिसकी जीभ फूल जाय और दाँतों से मवाद निकलने लगे, उसकी भी छः महीने के भीतर ही मृत्यु हो जाती है। इन चिह्नों से मृत्युकाल को समझना चाहिये। सुन्दरि! जल, तेल, घी तथा दर्पण में भी जब अपनी परछाईं न दिखायी दे या विकृत दिखायी दे, तब कालचक्र के ज्ञाता पुरुष को यह जान लेना चाहिये कि उसकी भी आयु छः मास से अधिक शेष नहीं है। देवेश्वारि! अब दूसरी बात सुनो, जिससे मृत्यु का ज्ञान होता है। जब अपनी छाया को सिर से रहित देखे अथवा अपने को छाया से रहित पाये, तब वह मनुष्य एक मास भी जीवित नहीं रहता।
पार्वती! ये मैंने अंगो में प्रकट होनेवाले मृत्यु के लक्षण बताये हैं। भद्रे! अब बाहर प्रकट होनेवाले लक्षणों का वर्णन करता हूँ, सनो! देवि! जब चन्द्रमण्डल या सूर्यमण्डल प्रभाहीन एवं लाल दिखायी दे, तब आधे मास में ही मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। अरुन्धती, महायान, चन्द्रमा – इनहें जो न देख सके अथवा जिसे ताराओं का दर्शन न हो, ऐसा पुरुष एक मास तक जीवित रहता है। यदि ग्रहों का दर्शन होने पर भी दिशाओं का ज्ञान न हो – मन पर मूढ़ता छायी रहे तो छः महीने में निश्चय ही मृत्यु हो जाती है। यदि उतथ्य नामक ताराका, ध्रुवका अथवा सूर्यमण्डल का भी दर्शन न हो सके, रात में इन्द्रधनुष और मध्याहन में उल्कापात होता दिखायी दे तथा गीध और कौवे घेरे रहें तो उस मनुष्य की आयु छः महीने से अधिक की नहीं है। यदि आकाश में सप्तर्षि तथा स्वर्गमार्ग (छायापथ) न दिखायी दे तो कालज्ञ पुरुषों को उस पुरुष की आयु छः मास ही शेष समझनी चाहिये। जो अकस्मात् सूर्य और चन्द्रमा को राहु से ग्रस्त देखता है और सम्पूर्ण दिशाएँ जिसे घूमती दिखायी देती हैं, वह अवश्य ही छः महीने में मर जाता है। यदि अकस्मात् नीली मक्खियाँ आकर पुरुष को घेर लें तो वास्तव में उसकी आयु एक मास ही शेष जाननी चाहिये। यदि गीध, कौवा अथवा कबूतर सिर पर चढ़ जाय तो वह पुरुष शीघ्र ही एक मास के भीतर ही मर जाता है, इसमें संशय नहीं है।
(अध्याय १७ - २५)