महादेवजी के शरीर से देवी का प्राकट्य और देवी के भ्रूमध्य-भाग से शक्ति का प्रादुर्भाव

वायुदेवता कहते हैं – तदनन्तर महादेवजी महामेघ की गर्जना के समान मधुर-गम्भीर, मंगलदायिनी एवं मनोहर वाणी में बोले – 'ब्रहान्! तुमने इस समय प्रजाजनों की वृद्धि के लिये ही तपस्या की है। तुम्हारी इस तपस्या से मैं संतुष्ट हूँ और तुम्हें अभीष्ट वर देता हूँ।' इस प्रकार परम उदार तथा स्वभावतः मधुर वचन कहकर देवेश्वर हर ने अपने शरीर के वामभाग से देवी रुद्राणी को प्रकट किया। जिन दिव्य गुणसम्पन्ना देवी को ब्रह्मवेत्ता पुरुष परमात्मा शिव की पराशक्ति कहते हैं तथा जिनमें जन्म, मृत्यु और जरा आदि विकारों का प्रवेश नहीं है, वे भवानी उस समय शिव के अंग से प्रकट हुईं। जिनका परमभाव देवताओं को भी ज्ञात नहीं है, वे समस्त देवताओं की भी अधीश्वरी देवी अपने स्वामी के अंग से प्रकट हुईं। उन सर्वलोकमहेश्वरी परमेश्वरी को देखकर विराट् पुरुष ब्रह्मा ने प्रणाम किया और उन सर्वज्ञा, सर्वव्यापिनी, सूक्ष्मा, सदसद्भाव से रहित और अपनी प्रभा से इस सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करने वाली पराशक्ति महादेवी से इस प्रकार प्रार्थना की।

ब्रह्माजी बोले – सर्वजगन्मयी देवि! महादेवजी ने सबसे पहले मुझे उत्पन्न किया और प्रजा की सृष्टि के कार्य में लगाया। इनकी आज्ञा से मैं समस्त जगत् की सृष्टि करता हूँ। किंतु देवि! मेरे मानसिक संकल्प से रचे गये देवता आदि समस्त प्राणी बारंबार सृष्टि करने पर भी बढ़ नहीं रहे हैं। अतः अब मैं मैथुनी सृष्टि करके ही अपनी सारी प्रजा को बढ़ाना चाहता हूँ। आपके पहले नारीकुल का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था। इसलिये नारीकुल की सृष्टि करने की मुझमें शक्ति नहीं है। सम्पूर्ण शक्तियों का आविर्भाव आपसे ही होता है। अतः सर्वत्र सबको सब प्रकार की शक्ति देने वाली आप वरदायिनी माया देवेश्वरी से ही प्रार्थना करता हूँ, संसारभय को दूर करने वाली सर्वव्यापिनी देवि! इस चराचर जगत् की वृद्धि के लिए आप अपने एक अंश से मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री हो जाइये।

ब्रह्मययोनि ब्रह्म के इस प्रकार याचना करने पर देवी रुद्राणी ने अपनी भौंहों के मध्य-भाग से अपने ही समान कान्तिमती एक शक्ति प्रकट की। उसे देखकर देवदेवेशवर हर ने हँसते हुए कहा – 'तुम तपस्या द्वारा ब्रह्माजी की आराधना करके उनका मनोरथ पूर्ण करो।' परमेश्वर शिव की इस आज्ञा को शिरोधार्य करके वह देवी ब्रह्माजी की प्रार्थना के अनुसार दक्ष की पुत्री हो गयी। इस प्रकार ब्रह्माजी को ब्रह्मरूपिणी अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा महादेवजी के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं। फिर महादेवजी भी अन्तर्धान हो गये। तभी से इस जगत् के भीतर स्त्रीजाति में भोग प्रतिष्ठित हुआ और मैथुन द्वारा प्रजा की सृष्टि का कार्य चलने लगा। मुनिवरो! इससे ब्रह्माजी को भी आनन्द और संतोष प्राप्त हुआ। देवी से शक्ति के प्रादर्भाव का यह सारा प्रसंग मैंने तुम्हें कह सुनाया। प्राणियों की सृष्टि के प्रसंग में इस विषय का वर्णन किया गया है। यह पुण्य की वृद्धि करनेवाला है, अतः अवश्य सुनने योग्य है। जो प्रतिदिन देवी से शक्ति के प्रादुर्भावध की इस कथा का कीर्तन करता है, उसे सब प्रकार का पुण्य प्राप्त होता है तथा वह शुभलक्षण पुत्र पाता है।

(अध्याय १६)