भगवान् शिव की ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियों का परिचय और उनकी सर्वव्यापकता का वर्णन
उपमन्यु कहते हैं – श्रीकृष्ण! महेश्वर परमात्मा शिव को मूर्तियों से यह सम्पूर्ण चराचर जगत् किस प्रकार व्याप्त है, यह सुनो। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, महेशान तथा सदाशिव – ये उन परमेश्वर की पाँच मूर्तियाँ जाननी चाहिये, जिनसे यह सम्पूर्ण विश्व विस्तार को प्राप्त हुआ है। इनके सिवा और भी उनके पाँच शरीर हैं, जिन्हें पंच-ब्रह्म (मन्त्र) कहते हैं। इस जगत् में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जो उन मूर्तियों से व्याप्त न हो। ईशान, पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात – ये महादेवजी की विख्यात पाँच ब्रह्ममूर्तियाँ हैं। इनमें जो ईशान नामक उनकी आदि श्रेष्ठतम मूर्ति है, वह प्रकृति के साक्षात् भोक्ता क्षेत्रज्ञ को व्याप्त करके स्थित है। मूर्तिमान् प्रभु शिव की जो तत्पुरुष नामक मूर्ति है, वह गुणों के आश्रयरूप भोग्य अव्यक्त (प्रकृति) में अधिष्ठित है। पिनाकपाणि महेश्वर की जो अत्यन्त पूजित अघोर नामक मूर्ति है, वह धर्म आदि आठ अंगों से युक्त बुद्धितत्त्व को अपना अधिष्ठान बनाती है। विधाता महादेव की वामदेव नामक मूर्ति को आगमवेत्ता विद्वान् अहंकार की अधिष्ठात्री बताते हैं। बुद्धिमान पुरुष अमित तेजस्वी शिव की सद्योजात नमक मूर्ति को मन की अधिष्ठात्री कहते हैं। विद्वान् पुरुष भगवान् शिव की ईशान नामक मूर्ति को श्रवणेन्द्रिय, वाणी, शब्द और व्यापक आकाश तत्त्व की स्वामिनी मानते हैं। पुराणों के अर्थज्ञान में निपुण समस्त दिद्वानों ने महेश्वर के तत्पुरुष नामक विग्रह को त्वचा, हाथ, स्पर्श और वायु-तत्त्व का स्वामी समझा है। मनीषी मुनि शिव की अघोर नामक मूर्ति को नेत्र, पैर, रूप और अग्नि-तत्त्व की अधिष्ठात्री बताते हैं। भगवान् शिव के चरणों में अनुराग रखने वाले महात्मा पुरुष उनकी वामदेव नामक मूर्ति को रसना, पायु, रस और जलतत्त्व की स्वामिनी समझते हैं तथा सद्योजात नामक मूर्ति को वे घ्राणेन्द्रिय, उपस्थ, गन्ध और पृथ्वी-तत्त्व की अधिष्ठात्री कहते हैं। महादेवजी की ये पाँचों मूर्तियाँ कल्याण की एकमात्र हेतु हैं। कल्याणकामी पुरुषों को इनकी सदा ही यत्नपूर्वक वन्दना करनी चाहिये। उन देवाधिदेव महादेवजी की जो आठ मूर्तियाँ हैं, तत्स्वरूप ही यह जगत् है। उन आठ मूर्तियों में यह विश्व उसी प्रकार ओतप्रोत भाव से स्थित है, जैसे सूत में मनके पिरोये होते हैं।
शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान तथा महादेव – ये शिव की विख्यात आठ मूर्तियाँ हैं। महेश्वर की इन शर्व आदि आठ मूर्तियों से क्रमशः भूमि, जल, अग्नि, वायु, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्रमा अधिष्ठित होते हैं। उनकी पृथ्वीमयी मूर्ति सम्पूर्ण चराचर जगत् को धारण करती है। उसके अधिष्ठाता का नाम शर्व है। इसलिये वह शिव की 'शार्वी' मूर्ति कहलाती है। यही शास्त्र का निर्णय है। उनकी जलमयी मूर्ति समस्त जगत् के लिये जीवनदायिनी है। जल परमात्मा भव की मूर्ति है, इसलिये उसे 'भावी' कहते हैं। शिव की तेजोमयी शुभमूर्ति विश्व के बाहर-भीतर व्याप्त होकर स्थित है। उस घोररूपिणी मूर्ति का नाम रुद्र है, इसलिये वह 'रौद्री' कहलाती है। भगवान् शिव वायुरूप से स्वयं गतिशील होते और इस जगत् को गतिशील बनाते हैं। साथ ही वे इसका भरण-पोषण भी करते हैं। वायु भगवान् उग्र की मूर्ति है; इसलिये साधु पुरुष इसे 'औग्री' कहते है। भगवान् भीम की आकाशरूपिणी मूर्ति सबको अवकाश देने वाली, सर्वव्यापिनी तथा भूतसमुदाय की भेदिका है। वह भीम नाम से प्रसिद्ध है (अतः इसे 'भैमी' मूर्ति भी कहते हैं)। सम्पूर्ण नेत्रों में निवास करने वाली तथा सम्पूर्ण आत्माओं की अधिष्ठात्री शिव-मूर्ति को 'पशुपति' मूर्ति समझना चाहिये। वह पशुओं के पाशों का उच्छेद करने वाली है। महेश्वर की जो 'ईशान' नामक मूर्ति है, वही दिवाकर (सूर्य) नाम धारण करके सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करती हुई आकाश में विचरती है। जिनकी किरणों में अमृत भरा है और जो सम्पूर्ण विश्व को उस अमृत से आप्यायित करते हैं, वे चन्द्रदेव भगवान् शिव के महादेव नामक विग्रह हैं; अतः उन्हें 'महादेव' मूर्ति कहते हैं। यह जो आठवीं मूर्ति है, वह परमात्मा शिव का साक्षात् स्वरूप है तथा अन्य सब मूर्तियों में व्यापक है। इसलिये यह सम्पूर्ण विश्व शिवरूप ही है। जैसे वृक्ष की जड़ सींचने से उसकी शाखाएँ पुष्ट होती हैं, उसी प्रकार भगवान् शिव की पूजा से उनके स्वरूप-भूत जगत् का पोषण होता है। इसलिये सबको अभय दान देना, सब पर अनुग्रह करना और सबका उपकार करना – यह शिव का आराधन माना गया है। जैसे इस जगत् में अपने पुत्र-पौत्र आदि के प्रसन्न रहने से पिता-पितामह आदि को प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार सम्पूर्ण जगत् की प्रसन्नता से भगवान् शंकर प्रसन्न होते हैं। यदि किसी भी देहधारी को दण्ड दिया जाता है तो उसके द्वारा अष्टमूर्तिधारा शिव का ही अनिष्ट किया जाता है, इसमें संशय नहीं है। आठ मूर्तियों के रूप में सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हुए भगवान् शिव का तुम सब प्रकार से भजन करो; क्योंकि रुद्रदेव सबके परम कारण हैं।
(अध्याय ३)