रुद्राक्षधारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन
सूतजी कहते हैं – महाप्राज्ञ! महामते! शिवरूप शौनक! अब मैं संक्षेप से रुद्राक्ष का विश्वेश्वर संहिता बता रहा हूँ, सुनो! रुद्राक्ष शिव को बहुत ही प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्ष के दर्शन से, स्पर्श से तथा उस पर जप करने से वह समस्त पापों का अपहरण करने वाला माना गया है। मुने! पूर्वकाल में परमात्मा शिव ने समस्त लोकों का उपकार करने के लिये देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था।
भगवान् शिव बोले – महेश्वरि शिवे! मैं तुम्हारे प्रेमवश भक्तों के हित की कामना से रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करता हूँ, सुनो। महेशानि! पूर्वकाल की बात है, मैं मनको संयम में रखकर हजारों दिव्य वर्षों तक घोर तपस्या में लगा रहा। एक दिन सहसा मेरा मन क्षुब्ध हो उठा। परमेश्वरि! मैं सम्पूर्ण लोकों का उपकार करने वाला स्वतन्त्र परमेश्वर हूँ। अतः उस समय मैंने लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रपुटों से कुछ जल की बूँदें गिरीं। आँसू की उन बूँदों से वहाँ रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गया। भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये वे अश्रुबिन्दु स्थावरभाव को प्राप्त हो गये। वे रुद्राक्ष मैंने विष्णुभक्त को तथा चारों वर्णों के लोगों को बाँट दिये। भूतल पर अपने प्रिय रुद्राक्षों को मैंने गौड़ देश में उत्पन्न किया। मथुरा, अयोध्या, लंका, मलयाचल, सह्यगिरि, काशी तथा अन्य देशों में भी उनके अंकुर उगाये। वे उत्तम रुद्राक्ष असह्य पापसमूहों का भेदन करने वाले तथा श्रुतियों के भी प्रेरक हैं। मेरी आज्ञा से वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र जाति के भेद से इस भूतल पर प्रकट हुए। रुद्राक्षों की ही जाति के शुभाक्ष भी हैं। उन ब्राह्मणादि जातिवाले रुद्राक्षों के वर्ण श्वेत, रक्त, पीत तथा कृष्ण जानने चाहिये। मनुष्यों को चाहिये कि वे क्रमशः वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करें। भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषतः शिवभक्तों को शिव-पार्वती की प्रसन्नता के लिये रुद्राक्ष के फलों को अवश्य धारण करना चाहिये। आँवले के फल के बराबर जो रुद्राक्ष हो, वह श्रेष्ठ बताया गया है। जो बेर के फल के बराबर हो, उसे मध्यम श्रेणीका कहा गया है और जो चने के बराबर हो, उसकी गणना निम्नकोटि में की गयी है। अब इसकी उत्तमता को परखने की यह दूसरी उत्तम प्रक्रिया बतायी जाती है। इसे बताने का उद्देश्य है भक्तों की हितकामना। पार्वती! तुम भली-भांति प्रेमपूर्वक इस विषय को सुनो।
महेश्वरी! जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह उतना छोटा होने पर भी लोक में उत्तम फल देने वाला तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है। जो रुद्राक्ष आँवले के फल के बराबर होता है, वह समस्त अरिष्टों का विनाश करने वाला होता है तथा जो गुंजाफल के समान बहुत छोटा होता है, वह सम्पूर्ण मनोरथों और फलों की सिद्धि करने वाला है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है, वैसे-ही-वैसे अधिक फल देने वाला होता है। एक-एक बड़े रुद्राक्ष से एक-एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानों ने दस गुना अधिक फल देने वाला बताया है। पापों का नाश करने के लिए रुद्राक्ष-धारण आवश्यक बताया गया है। वह निश्चय ही सम्पूर्ण अभीष्ट मनोरथों का साधक है। अतः अवश्य ही उसे धारण करना चाहिये। परमेश्वरि! लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फल देने वाला देखा जाता है, वैसी फलदायिनी दूसरी कोई माला नहीं दिखायी देती। देवि! समान आकार-प्रकार वाले, चिकने, मजबूत, स्थूल, कण्टकयुक्त (उभरे हुए छोटे-छोटे दानोंवाले) और सुन्दर रुद्राक्ष अभिलषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमे उभरे हुए दानें न हों, जो व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पाँच प्रकार के रुद्राक्षों को त्याग देना चाहिये। जिस रुद्राक्ष में अपने-आप ही डोरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही यहाँ उत्तम माना गया है। जिसमें मनुष्य के प्रयत्नसे छेद किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता है। रुद्राक्ष-धारण बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाला है। इस जगत् में ग्यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके मनुष्य जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैंकड़ो वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। भक्तिमान पुरुष साढ़े पाँच सौ रुद्राक्ष के दानों का सुन्दर मुकुट बना ले और उसे सिर पर धारण करे। तीन सौ साठ दानों को लंबे सूत्र में पिरोकर एक हार बना ले। वैसे-वैसे तीन हार बनाकर भक्तिपरायण पुरुष उनका यज्ञोपवीत तैयार करे और उसे यथास्थान धारण किये रहे।
इसके बाद किस अंग में कितने रुद्राक्ष धारण करने चाहिये, यह बताकर सूतजी बोले – महर्षियो! सिर पर ईशान-मन्त्र से, कान में तत्पुरुष-मन्त्र से तथा गले और हृदय में अघोर-मन्त्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिये। विद्वान् पुरुष दोनों हाथों में अघोर-बीजमन्त्र से रुद्राक्ष धारण करे। उदर पर वामदेव-मन्त्र से पन्द्रह रुद्राक्षों द्वारा गुँथी हुई माला धारण करे अथवा अंगोंसहित प्रणव का पाँच बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पाँच या सात मालाएँ धारण करे अथवा मूलमन्त्र (नमः शिवाय) से ही समस्त रुद्राक्षों को धारण करे। रुद्राक्षधारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्याग दे। गिरिराज नन्दिनी उमे! श्वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिये। गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिये हितकर बताया गया है। वैश्यों के लिये प्रतिदिन बारंबार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्यक है और शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिये – यह वेदोक्त मार्ग है। ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और संन्यासी – सब को नियमपूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने का सौभाग्य बड़े पुण्य से प्राप्त होता है। उमे! पहले आँवले के बराबर और फिर उससे भी छोटे रुद्राक्ष धारण करे। जो रोगी हों, जिनमें दाने न हों, जिन्हें कीड़ों ने खा लिया हो, जिनमे पिरोने योग्य छेद न हो, ऐसे रुद्राक्ष मंगलाकांक्षी पुरुषों को नहीं धारण करने चाहिये। रुद्राक्ष मेरा मंगलमय लिंग-विग्रह है। वह अन्ततोगत्वा चने के बराबर लघुतर होता है। सूक्ष्म रुद्राक्ष को ही सदा प्रशस्त माना गया है। सभी आश्रमों, समस्त वर्णों, स्त्रियों और शूद्रों को भी भगवान् शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिये। यतियों के लिये प्रणव के उच्चारणपूर्वक रुद्राक्ष धारण का विधान है। जिसके ललाट में त्रिपुण्ड्र लगा हो और सभी अंग रुद्राक्ष में विभूषित हों तथा जो मृत्यंजय मन्त्र का जप कर रहा हो, उसका दर्शन करने से साक्षात् रुद्र के दर्शन का फल प्राप्त होता है।
पार्वती! रुद्राक्ष अनेक प्रकार के बताये गये हैं। मैं उनके भेदों का वर्णन करता हूँ। वे भेद भोग और मोक्षरूप फल देने वाले हैं। तुम उत्तम भक्ति-भाव से उनका परिचय सुनो। एक मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता है। जहाँ रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहाँ से लक्ष्मी दूर नहीं जातीं। उस स्थान के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं तथा वहाँ रहने वाले, लोगों की सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण होती हैं। दो मुखवाला रुद्राक्ष देवदेवेश्वर कहा गया है। वह सम्पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है। तीन मुखवाला रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधन का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्ठित होती हैं। चार मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। पाँच मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् कालाग्निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पंचमुख रुद्राक्ष समस्त पापों को दूर कर देता है। छः मुखोंवाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। यदि दाहिनी बाँह में उसे धारण किया जाय तो धारण करने वाला मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। महेश्वरि! सात मुखवाला रुद्राक्ष अनंगस्वरूप और अनंग नाम से ही प्रसिद्ध है। देवेशि! उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्वर्यशाली हो जाता है। आठ मुखवाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरवरूप है, उसको धारण करने से मनुष्य पूर्णायु होता है और मृत्यु के पश्चात् शूलधारी शंकर हो जाता है। नौ मुखवाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल-मुनि का प्रतिक माना गया है अथवा नौ रूप धारण करने वाली महेश्वरी दुर्गा उसकी अधिष्ठात्री देवी मानी गयी है। जो मनुष्य भक्तिपरायण हो अपने बायें हाथ में नवमुख रुद्राक्ष को धारण करता है, वह निश्चय ही मेरे समान सर्वेश्वर हो जाता है – इसमें संशय नहीं है। महेश्वरि! दस मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् भगवान् विष्णु का रूप है। देवेशि! उसको धारण करने से मनुष्य की सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। परमेश्वरि! ग्यारह मुखवाला जो रुद्राक्ष है, वह रुद्ररूप है। उसको धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजयी होता है। बारह मुखवाले रुद्राक्ष को केशप्रदेश में धारण करे। उसके धारण करने से मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं। तेरह मुखवाला रुद्राक्ष विश्वेदेवों का स्वरूप है। उसको धारण करके मनुष्य सम्पूर्ण अभिष्टों को पाता तथा सौभाग्य और मंगल लाभ करता है। चौदह मुखवाला जो रुद्राक्ष है, वह परम शिवरूप है। उसे भक्तिपूर्वक मस्तक पर धारण करे। इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है।
गिरिराजकुमारी! इस प्रकार मुखों के भेद से रुद्राक्ष के चौदह भेद बताये गये। अब तुम क्रमशः उन रुद्राक्षों के धारण करने के मन्त्रों को प्रसन्नतापूर्वक सुनो। १] ॐ ह्रीं नमः।, २] ॐ नमः।, ३] ॐ क्लीं नमः। ४] ॐ ह्रीं नमः। ५] ॐ ह्रीं नमः। . ६] ॐ ह्रीं हूं नमः।, ७] ॐ हूं नमः।, ८ ॐ हूं नमः।, ९] ॐ ह्रीं हूं नमः।, १०] ॐ ह्रीं नमः।, ११] ॐ ह्रीं हूं नमः।, १२] ॐ क्रौ क्षौ रौ नमः।, १३] ॐ ह्रीं नमः।, १४] ॐ नमः। इन चौदह मन्त्रों द्वारा क्रमशः एक से लेकर चौदह मुखवाले रुद्राक्ष को धारण करने का विधान है। साधक को चाहिये कि वह निद्रा और आलस्य का त्याग करके श्रद्धा-भक्ति से सम्पन्न हो सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिये उक्त मन्त्रों द्वारा उन-उन रुद्राक्षों को धारण करे। रुद्राक्ष की माला धारण करने वाले पुरुष को देखकर भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा जो अन्य द्रोहकारी राक्षस आदि हैं, वे सब-के-सब दूर भाग जाते हैं। जो कृत्रिम अभिचार आदि प्रयुक्त होते हैं, वे सब रुद्राक्षधारी को देखकर सशंग हो दूर खिसक जाते हैं। पार्वती! रुद्राक्ष-मालाधारी पुरुष को देखकर मैं शिव, भगवान् विष्णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। महेश्वरि! इस प्रकार रुद्राक्ष की महिमा को जानकर धर्म की वृद्धि के लिये भक्तिपूर्वक पूर्वोक्त मन्त्रों द्वारा विधिवत उसे धारण करना चाहिये।
मुनीश्वर! भगवान् शिव ने देवी पार्वती के सामने जो कुछ कहा था, वह सब तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने कह सुनाया। मुनीश्वरो! मैंने तुम्हारे समक्ष इस विद्येश्वर संहिता का वर्णन किया है। यह संहिता सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली तथा भगवान् शिव की आज्ञा से नित्य मोक्ष प्रदान करने वाली है।
(अध्याय २५)
विद्येश्वर संहिता सम्पूर्ण