विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादि की धाराओं से शिवजी की पूजा का माहात्म्य

ब्रह्माजी बोले – नारद! जो लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा करता हो, वह कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प से भगवान् शिव की पूजा करे। ब्रह्मन्! यदि एक लाख की संख्या में इन पुष्पों द्वारा भगवान् शिव की पूजा सम्पन्न हो जाय तो सारे पापों का नाश होता है और लक्ष्मी की भी प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है। प्राचीन पुरुषों ने बीस कमलों का एक प्रस्थ बताया है। एक सहस्त्र बिल्वपत्रों को भी एक प्रस्थ कहा गया है। एक सहस्त्र शतपत्र से आधे प्रस्थ की परिभाषा की गयी है। सोलह पलों का एक प्रस्थ होता है और दस टंकों का एक पल। इस मान से पत्र, पुष्प आदि को तौलना चाहिये। जब पूर्वोक्त संख्या वाले पुष्पों से शिव की पूजा हो जाती है, तब सकाम पुरुष अपने सम्पूर्ण अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है। यदि उपासक के मन में कोई कामना न हो तो वह पूर्वोक्त पूजन से शिवस्वरुप हो जाता है।

मृत्युंजय-मन्त्र का जब पाँच लाख जप पूरा हो जाता हैं, तब भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। एक लाख की जप से शरीर की शुद्धि होती है, दूसरे लाख के जप से पूर्वजन्म की बातों का स्मरण होता है, तीसरे लाख पूर्ण होने पर सम्पूर्ण काम्य वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। चौथे लाख का जप होने पर स्वप्न में भगवान् शिव का दर्शन होता है और पाँचवे लाख का जप ज्यों ही पूरा होता है, भगवान् शिव उपासक के सम्मुख तत्काल प्रकट हो जाते हैं। इसी मन्त्र का दस लाख जप हो जाय तो सम्पूर्ण फल की सिद्धि होती है। जो मोक्ष की अभिलाषा रखता है, वह (एक लाख) दर्भो द्वारा शिव का पूजन करे। मुनिश्रेष्ठ! सर्वत्र लाख की संख्या समझनी चाहिये। आयु की इच्छा वाला पुरुष एक लाख दूर्वाओं द्वारा पूजन करे। जिसे पुत्र की अभिलाषा हो, वह धतूरे के एक लाख फूलों से पूजा करे। लाल डंठल वाला धतूरा पूजन में शुभदायक माना गया है। अगस्त्य के एक लाख फूलों से पूजा करने वाले पुरुष को महान् यश की प्राप्ति होती है। यदि तुलसीदल से शिव की पूजा करे तो उपासक को भोग और मोक्ष दोनों सुलभ होते हैं। लाल और सफेद आक, अपामार्ग और श्वेत कमल के एक लाख फूलों द्वारा पूजा करने से भी उसी फल (भोग और मोक्ष) की प्राप्ति होती है। जपा (अड़हुल) के एक लाख फूलों से की हुई पूजा शत्रुओं को मृत्यु देने वाली होती है। करवीर के एक लाख फूल यदि शिव पूजन के उपयोग में लाये जायँ तो वे यहाँ रोगों का उच्चाटन करने वाले होते हैं। बन्धूक (दुपहरिया) के फूलों द्वारा पूजन करने से आभूषण की प्राप्ति होती है। चमेली से शिव की पूजा करके मनुष्य वाहनों को उपलब्ध करता है, इसमें संशय नहीं है। अलसी के फूलों से महादेवजी का पूजन करने वाला पुरुष भगवान् विष्णु को प्रिय होता है। शमीपत्रों से पूजा करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। बेला के फूल चढ़ाने पर भगवान् शिव अत्यन्त शुभलक्षणा पत्नी प्रदान करते हैं। जूही के फूलों से पूजा की जाय तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। कनेर के फूलों से पूजा करने पर मनुष्यों को वस्त्र की प्राप्ति होती है। सेदुआरि या शेफालिका के फूलों से शिव का पूजन किया जाय तो मन निर्मल होता है। एक लाख बिल्वपत्र चढ़ाने पर मनुष्य अपनी सारी काम्य वस्तुएँ प्राप्त कर लेता है। श्रृंगारहार (हरसिंगार) के फूलों से पूजा करने पर सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होती है। वर्तमान ऋतू में पैदा होने वाले फूल यदि शिव की सेवा में समर्पित किये जायँ तो वे मोक्ष देने वाले होते हैं, इसमें संशय नहीं हैं। राई के फूल शत्रुओं को मृत्यु प्रदान करने वाले होते हैं। इन फूलों को एक-एक लाख की संख्या में शिव के ऊपर चढ़ाया जाय तो भगवान् शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं। चम्पा और केवड़े को छोड़कर शेष सभी फूल भगवान् शिव को चढ़ाये जा सकते हैं।

विप्रवर! महादेवजी के ऊपर चावल चढ़ाने से मनुष्यों की लक्ष्मी बढ़ती है। ये चावल अखण्डित होने चाहिये और इन्हें उत्तम भक्तिभाव से शिव के ऊपर चढ़ाना चाहिये। रुद्रप्रधान मन्त्र से पूजा करके भगवान् शिव के ऊपर बहुत सुन्दर वस्त्र चढ़ाये और उसी पर चावल रखकर समर्पित करे तो उत्तम है। भगवान् शिव के ऊपर गंध, पुष्प आदि के साथ एक श्रीफल चढ़ाकर धुप आदि निवेदन करे तो पूजा का पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है। वहाँ शिव के समीप बारह ब्राह्मणों को भोजन कराये। इससे मन्त्रपुर्वक सांगोपांग लक्ष पूजा सम्पन्न होती है। जहाँ सौ मन्त्र जपने की विधि हो, वहाँ एक सौ आठ मन्त्र जपने का विधान किया गया है। तिलों द्वारा शिवजी को एक लाख आहुतियाँ दी जायँ अथवा एक लाख तिलों से शिव की पूजा की जाय तो वह बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली होती है। जौ द्वारा की हुई शिव की पूजा स्वर्गीय सुख की वृद्धि करने वाली हैं, ऐसा ऋषियों का कथन है। गेहूँ के बने हुए पकवान से की हुई शंकरजी की पूजा निश्चय ही बहुत उत्तम मानी गयी है। यदि उससे लाख बार पूजा हो तो उससे संतान की वृद्धि होती है। यदि मूँग से पूजा की जाय तो भगवान् शिव सुख प्रदान करते हैं। प्रियंगु (कँगनी) द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा शिव का पूजन करने मात्र से उपासक के धर्म, अर्थ और काम-भोग की वृद्धि होती है तथा वह पूजा समस्त सुखों को देने वाली होती है। अरहर के पत्तों से श्रृंगार करके भगवान् शिव की पूजा करे। यह पूजा नाना प्रकार के सुखों और सम्पूर्ण फलों को देने वाली है। मुनिश्रेष्ठ! अब फूलों की लक्ष संख्या का तौल बताया जा रहा है। प्रसन्नतापूर्वक सुनो। सूक्ष्म मान का प्रदर्शन करने वाले व्यासजी ने एक प्रस्थ शंखपुष्प को एक लाख बताया है। ग्यारह प्रस्थ चमेली के फूल हों तो वही एक लाख फूलों का मान कहा गया है। जूही के एक लाख फूलों का भी वही मान है। राई के एक लाख फूलों का मान साढ़े पाँच प्रस्थ है। उपासक को चाहिये कि वह निष्काम होकर मोक्ष के लिये भगवान् शिव की पूजा करे।

भक्तिभाव से विधिपूर्वक शिव की पूजा करके भक्तों को पीछे जलधारा समर्पित करनी चाहिये। ज्वर में जो मनुष्य प्रलाप करने लगता है, उसकी शान्ति के लिये जलधारा शुभकारक बतायी गयी है। शतरुद्रिय मन्त्र से, रुद्री के ग्यारह पाठों से, रुद्र्मन्त्रों के जप से, पुरुषसुक्त से, छः ऋचावाले रुद्रसूक्त से, महामृत्युंजयमन्त्र से, गायत्रीमन्त्र से अथवा शिव के शास्त्रोक्त नामों के आदि में प्रणय और अन्त में 'नमः' पद जोड़कर बने हुए मन्त्रों द्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिये। सुख और संतान की वृद्धि के लिये जलधारा द्वारा पूजन उत्तम बताया गया है। उत्तम भस्म धारण करके उपासक को प्रेमपूर्वक नाना प्रकार के शुभ एवं दिव्य द्रव्यों द्वारा शिव की पूजा करनी चाहिये और शिव पर उनके सहस्त्र नाम मन्त्रों से घी की धारा चढ़ानी चाहिये। ऐसा करने पर वंश का विस्तार होता है, इसमें संशय नहीं है। इसी प्रकार यदि दस हजार मन्त्रों द्वारा शिवजी की पूजा की जाय तो प्रमेह रोग की शान्ति होती है और उपासक को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाती है। यदि कोई नपुंसकता को प्राप्त हो तो वह घी से शिवजी की भलीभाँति पूजा करे तथा ब्राह्मणों को भोजन कराये। साथ ही उसके लिये मुनीश्वरों ने प्राजापत्य व्रत का भी विधान किया है। यदि बुद्धि जड हो जाय तो उस अवस्था में पूजक को केवल शर्करा मिश्रित दुग्ध की धारा चढ़ानी चाहिये। ऐसा करने पर उसे बृहस्पति के समान उत्तम बुद्धि प्राप्त हो जाती है। जब तक दस हजार मन्त्रों का जप पूरा न हो जाय, तब तक पूर्वोक्त दुग्ध धरा द्वारा भगवान् शिव का उत्कृष्ट पूजन चालू रखना चाहिये। जब तन-मन में अकारण ही उच्चाटन होने लगे – जी उचट जाय, कहीं भी प्रेम न रहे, दुःख बढ़ जाय और अपने घर में सदा कलह रहने लगे, तब पूर्वोक्त रूप से दूध की धारा चढ़ाने से सारा दुःख नष्ट हो जाता है। सुवासित तेल से पूजा करने पर भोगों की वृद्धि होती है। यदि मधु से शिव को पूजा की जाय तो राजयक्ष्मा का रोग दूर हो जाता है। यदि शिव पर ईख के रस की धारा चढ़ायी जाय तो वह भी सम्पूर्ण आनन्द की प्राप्ति कराने वाली होती है। गंगाजल की धारा तो भोग और मोक्ष दोनों फलों को देने वाली है। ये सब जो-जो धाराएँ बतायी गयी हैं, इन सबको मृत्युंजय मन्त्र से चढ़ाना चाहिये, उसमें भी उक्त मन्त्र का विधानतः दस हजार जप करना चाहिये, और ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये।

(अध्याय १४)