भगवान् शिव का अपने परम सुन्दर दिव्य रूप को प्रकट करना, मेना का प्रसन्नता और क्षमा-प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियों का शिव के रूप का दर्शन करके जन्म और जीवन को सफल मानना

ब्रहमाजी कहते हैं – नारद! इसी समय भगवान् विष्णु से प्रेरित हो तुम शीघ्र ही भगवान् शंकर को अनुकूल बनाने के लिये उनके निकट गये। वहाँ जाकर देवताओं का कार्य सिद्ध करने की इच्छा से नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा तुमने रुद्रदेव को संतुष्ट किया। तुम्हारी बात सुनकर शम्भु ने प्रसन्नतापूर्वक अद्भुत, उत्तम एवं दिव्य रूप धारण कर लिया। ऐसा करके उन्होंने अपने दयालु स्वभाव का परिचय दिया। मुने! भगवान् शम्भु का वह स्वरूप कामदेव से भी अधिक सुन्दर तथा लावण्य का परम आश्रय था; उसका दर्शन करके तुम बड़े प्रसन्न हुए और उस स्थान पर गये, जहाँ सबके साथ मेना विद्यमान थीं।

वहाँ पहँचकर तुमने कहा – विशाल नेत्रोंवाली मेने! भगवान् शिव के उस सर्वोत्तम रूप का दर्शन करो। यह रूप प्रकट करके उन करुणामय शिव ने तुम पर बड़ी ही कृपा की है।

तुम्हारी यह बात सुनकर शैलराज की पत्नी मेना आश्चर्यचकित हो गयीं। उन्होंने शिव के उस परमानन्ददायक रूप का दर्शन किया, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी, सर्वांगसुन्दर, विचित्र वस्त्रधारी तथा नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषित था। वह अत्यन्त प्रसन्न, सुन्दर हास्य से सुशोभित, ललित लावण्य से लसित, मनोहर, गौरवर्ण, द्युतिमान् तथा चन्द्रलेखा से अलंकृत था। विष्णु आदि सम्पूर्ण देवता बड़े प्रेम से भ्रगवान् शिव की सेवा कर रहे थे। सूर्यदेव ने छत्र लगा रखा था। चन्द्रदेव मस्तक का मुकुट बनकर उनकी शोभा बढ़ा रहे थे। इन सब साधनों से भगवान् शंकर सर्वथा रमणीय जान पड़ते थे। उनका वाहन भी अनेक प्रकार के आभूषणों से विभूषित था। उसकी महाशोभा का वर्णन नहीं हो सकता था। गंगा और यमुना भगवान् शिव को सुन्दर चँवर डुला रही थीं और आठों सिद्धियाँ उनके आगे नाच रही थीं। उस समय मैं, भगवान् विष्णु तथा इन्द्र आदि देवता अपने-अपने वेश को भलीभाँति विभूषित करके पर्वतवासी भगवान् शिव के साथ चल रहे थे। नानारूपधारी शिव के गण खूब सज-धजकर अत्यन्त आनन्दित हो शिव के आगे-आगे चल रहे थे। सिद्ध, उपदेवता, समस्त मुनि तथा अन्य सब लोग भी महान् सुख का अनुभव करते हुए अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक शिव के साथ यात्रा कर रहे थे। इस प्रकार देवता आदि सब लोग विवाह देखने के लिये उत्कण्ठित हो खूब सज-धजकर अपनी पत्नियों के साथ परब्रह्म शिव का यशोगान करते हुए जा रहे थे। विश्वावसु आदि गन्धर्व अप्सराओं के साथ हो शंकरजी के उत्तम यश का गान करते हुए उनके आगे-आगे चल रहे थे। मुनिश्रेष्ठ! महेश्वर के शैलराज के द्वार पर पधारते समय इस प्रकार वहाँ नाना प्रकार का महान् उत्सव हो रहा था। मुनीश्वर! उस समय वहाँ परमात्मा शिव की जैसी शोभा हो रही थी, उसका विशेष रूप से वर्णन करने में कौन समर्थ हो सकता है? उन्हें वैसे विलक्षण रूप में देखकर मेना क्षण भर के लिये चित्रलिखी-सी रह गयीं। फिर बड़ी प्रसन्नता के साथ बोलीं – 'महेश्वर! मेरी पुत्री धन्य है, जिसने बड़ा भारी तप किया और उस तप के प्रभाव से आप मेरे इस घर में पधारे। पहले जो मैंने आप शिव की अक्षम्य निन्दा की है, उसे मेरी शिवा के स्वामी शिव! आप क्षमा करें और इस समय पूर्णतः प्रसन्न हो जाये।'

ब्रहमाजी कहते हैं – नारद! इस प्रकार बात करके चन्द्रमौलि शिव की स्तुति करती हुई शैलप्रिया मेना ने उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम किया, फिर वे लज्जित हो गयीं। इतने में ही बहुत-सी पुरवासिनी स्त्रियाँ भगवान् शिव के दर्शन की लालसा से अनेक प्रकार के काम छोड़कर वहाँ आ पहुँचीं। जो जैसे थीं, बैसे ही अस्त-व्यस्त रूप में दौड़ आयीं। भगवान् शंकर का वह मनोहर रूप देखकर वे सब मोहित हो गयीं। शिव के दर्शन से हर्ष को प्राप्त हो प्रेमपर्ण हृदयवाली वे नारियाँ महेश्वर की उस मूर्ति को अपने मनोमन्दिर में बिठाकर इस प्रकार बोलीं।

पुरवासिनियों ने कहा – अहो! हिमवान् के नगर में निवास करनेवाले लोगों के नेत्र आज सफल हो गये। जिस-जिस व्यक्ति ने इस दिव्य रूप का दर्शन किया है, निश्चय ही उसका जन्म सार्थक हो गया है। उसी का जन्म सफल है और उसी की सारी क्रियाएँ सफल हैं, जिसने सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाले साक्षात् शिव का दर्शन किया है। पार्वती ने शिव के लिये जो तप किया है, उसके द्वारा उन्होंने अपना सारा मनोरथ सिद्ध कर लिया। शिव को पति के रूप में पाकर ये शिवा धन्य और कृतकृत्य हो गयीं। यदि विधाता शिवा और शिव की इस युगल जोड़ी को सानन्द एक-दूसरे से मिला न देते तो उनका सारा परिश्रम निष्फल हो जाता। इस उत्तम जोड़ी को मिलाकर ब्रह्माजी ने बहुत अच्छा कार्य किया है। इससे सबके सभी कार्य सार्थक हो गये। तपस्या के बिना मनुष्यों के लिये शम्भु का दर्शन दुर्लभ है। भगवान् शंकर के दर्शन मात्र से ही सब लोग कृतार्थ हो गये। जो-जो सर्वेश्वर गिरिजापति शंकर का दर्शन करते हैं, वे सारे पुरुष श्रेष्ठ हैं और हम सारी स्त्रियाँ भी धन्य हैं।

ब्रहमाजी कहते हैं – नारद! ऐसी बात कहकर उन स्त्रियों ने चन्दन और अक्षत से शिव का पूजन किया और बड़े आदर से उनके ऊपर खीलों की वर्षा की। वे सब स्त्रियाँ मेना के साथ उत्सुक होकर खड़ी रहीं और मेना तथा गिरिराज के भूरिभाग्य की सराहना करती रहीं। मुने! स्त्रियों के मुख से वैसी शुभ बातें सुनकर विष्णु आदि सब देवताओं के साथ भगवान् शिव को बड़ा हर्ष हुआ।

(अध्याय ४५)