वाराहकल्प में होनेवाले शिवजी के प्रथम अवतार से लेकर नवम ऋषभ अवतार तक का वर्णन

नन्दीश्वरजी कहते हैं – सर्वज्ञ सनत्कुमारजी! एक बार रूद्र ने हर्षित होकर ब्रह्माजी से शंकर के चरित्र का प्रेमपूर्वक वर्णन किया था। वह चरित्र सदा परम सुखदायक है। (उसे तुम श्रवण करो।)

शिवजी ने कहा था – ब्रह्मन्! वाराहकल्प के सातवें मन्वन्तर में सम्पूर्ण लोकों को प्रकाशित करने वाले भगवान् कल्पेश्वर, जो तुम्हारे प्रपौत्र हैं, वैवस्वत मनु के पुत्र होंगे। तब उस मन्वन्तर की चतुर्युगियों के किसी द्वापरयुग में मैं लोकों पर अनुग्रह करने तथा ब्राह्मणों का हित करने के लिये प्रकट हूँगा। ब्रह्मन्! युग-प्रवृत्ति के अनुसार उस प्रथम चतुर्युगी के प्रथम द्वापर युग में जब प्रभु स्वयं ही व्यास होंगे, तब मैं उस कलियुग के अन्त में ब्राह्मणों के हितार्थ शिवा सहित श्वेत नामक महामुनि होकर प्रकट हूँगा। उस समय हिमालय के रमणीय शिखर छागल नामक पर्वतश्रेष्ठ पर मेरे शिखाधारी चार शिष्य उत्पन्न होंगे। उनके नाम होंगे – श्वेत, श्वेतशिख, श्वेताश्व और श्वेतलोहित। वे चारों ध्यानयोग के आश्रय से मेरे नगर में जायँगे। वहाँ वे मुझ अविनाशी को तत्त्वतः जानकर मेरे भक्त हो जायँगे तथा जन्म, जरा और मृत्य से रहित होकर परब्रह्म की समाधि में लीन रहेंगे। वत्स पितामह! उस समय मनुष्य ध्यान के अतिरिक्त दान, धर्म आदि कर्महेतुक साधनों द्वारा मेरा दर्शन नहीं पा सकेंगे। दूसरे द्वापर में प्रजापति सत्य व्यास होंगे। उस समय मैं कलियुग में सुतार नाम से उत्पन्न होऊँगा। वहाँ भी मेरे दुन्दुभि, शतरूप, हृषिक तथा केतुमान् नामक चार वेदवादी द्विज शिष्य होंगे। वे चारों ध्यानयोग के बल से मेरे नगर को जायँगे और मुझ अविनाशी को तत्त्वतः जानकर मुक्त हो जायँगे। तीसरे द्वापर में जब भार्गव नामक व्यास होंगे, तब मैं भी नगर के निकट ही दमन नाम से प्रकट होऊँगा। उस समय भी मेरे विशोक, विशेष, विपाय और पापनाशन नामक चार पुत्र होंगे। चतुरानन! उस अवतार में मैं शिष्यों को साथ ले व्यास की सहायता करूँगा और उस कलियुग में निवृत्तिमार्ग को सुदृढ़ बनाउँगा। चौथे द्वापर में जब अंगिरा व्यास कहे जायँगे, उस समय मैं सुहोत्र नाम से अवतार लूँगा। उस समय भी मेरे चार योगसाधक महात्मा पुत्र होंगे। ब्रह्मन्! उनके नाम होंगे – सुमुख, दुर्मुख, दुर्दम और दुरतिक्रम। उस अवसर पर भी इन शिष्यों के साथ मैं व्यास की सहायता में लगा रहूँगा। पाँचवे द्वापर में सविता व्यास नाम से कहे जायँगे। तब मैं कंक नामक महातपस्वी योगी होऊँगा। ब्रह्मन्! वहाँ भी मेरे चार योगसाधक महात्मा पुत्र होंगे। उनके नाम बतलाता हूँ, सुनो – सनक, सनातन, प्रभावशाली सनन्दन और सर्वव्यापक निर्मल तथा अहंकार रहित सनत्कुमार। उस समय भी कंक नामधारी मैं सविता नामक व्यास का सहायक बनूँगा और निवृत्तिमार्ग को बढ़ाऊँगा। पुनः छठे द्वापर के प्रवुत्त होने पर जब मृत्यु लोककारक व्यास होंगे और वेदों का विभाजन करेंगे, उस समय भी मैं व्यास की सहायता करने के लिये लोकाक्षि नाम से प्रकट होऊँगा और निवृत्ति-पथ की उन्नति करूँगा। वहाँ भी मेरे चार दृढ़व्रती शिष्य होंगे। उनके नाम होंगे – सुधामा, विरजा, संजय तथा विजय। विधे! सातवें द्वापर के आरम्भ में जब शतक्रतु नामक व्यास होंगे, उस समय भी मैं योगमार्ग में परम निपुण जैगीषव्य नाम से प्रकट होऊँगा और काशीपुरी में गुफा के अंदर दिव्यदेश में कुशासन पर बैठकर योग को सुदृढ़ बनाउँगा तथा शतक्रतु नामक व्यास की सहायता और संसारभय से भक्तों का उद्धार करूँगा। उस युग में भी मेरे सारस्वत, योगीश, मेघवाह और सुवाहन नामक चार पुत्र होंगे। आठवें द्वापर के आने पर मुनिवर वसिष्ठ वेदों का विभाजन करने वाले वेदव्यास होंगे। योगवित्तम! उस युग में भी मैं दधिवाहन नाम से अवतार लूँगा और व्यास की सहायता करूँगा। उस समय कपिल, आसुरि, पंचशिख और शाल्वल नाम वाले मेरे चार योगी पुत्र उत्पन्न होंगे, जो मेरे ही समान होंगे। ब्रह्मन्! नवीं चतुर्युगी के द्वापर युग में मुनिश्रेष्ठ सारस्वत व्यास नाम से प्रसिद्ध होंगे। उन व्यास के निवृत्तिमार्ग की वृद्धि के लिये ध्यान करने पर मैं ऋषभ नाम से अवतार लूँगा। उस समय पराशर, गर्ग, भार्गव तथा गिरीश नाम के चार महायोगी मेरे शिष्य होंगे। प्रजापते! उनके सहयोग से मैं योगमार्ग को सुदृढ़ बनाउँगा। सन्मुने! इस प्रकार मैं व्यास का सहायक बनूँगा। ब्रह्मन्! उसी रूप से मैं बहुत-से दुःखी भक्तों पर दया करके उनका भवसागर से उद्धार करूँगा। मेरा वह ऋषभ नामक अवतार योगमार्ग का प्रवर्तक, सारस्वत व्यास के मन को संतोष देनेवाला और नाना प्रकार से रक्षा करने वाला होगा। उस अवतार में मैं भद्रायु नामक राजकुमार को, जो विषदोष से मर जाने के कारण पिता द्वारा त्याग दिया जायगा, जीवन प्रदान करूँगा। तदनन्तर उस राजपुत्र की आयु के सोलहवे वर्ष में ऋषभ ऋषि, जो मेरे ही अंश हैं, उसके घर पधारेंगे। प्रजापते! उस राजकुमार द्वारा पूजित होने पर वे सद्रूपधारी कृपालु मुनि उसे राजधर्म का उपदेश करेंगे। तत्पश्चात् वे दीनवत्सल मुनि हर्षित चित्त से उसे दिव्य कवच, शंख और सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश करने वाला एक चमकीला खड्ग प्रदान करेंगे। फिर कृपापूर्वक उसके शरीर पर भस्म लगाकर उसे बारह हजार हाथियों का बल भी देंगे। यों माता सहित भद्रायु को भलिभाँति आश्वासन देकर तथा उन दोनों द्वारा पूजित हो प्रभावशाली ऋषभ मुनि स्वेच्छानुसार चले जायँगे। ब्रह्मन्! तब राजर्षि भद्रायु भी रिपुगणों को जीतकर और कीर्तिमालिनी के साथ विवाह करके धर्मपूर्वक राज्य करेगा। मुने! मुझ शंकर का वह ऋषभ नामक नवाँ अवतार ऐसा प्रभाववाला होगा, वह सत्पुरुषों की गति तथा दीनों के लिये बन्धु-सा हितकारी होगा। मैंने उसका वर्णन तुम्हें सुना दिया। यह ऋषभ-चरित्र परम पावन, महान् तथा स्वर्ग, यश और आयु को देनेवाला है; अतः इसे प्रयत्नपूर्वक सुनाना चाहिये।

(अध्याय ४)