शिवजी द्वारा दसवें से लेकर अट्ठाईसवें योगेश्वरावतारों का वर्णन

शिवजी कहते हैं – ब्रह्मन्! दसवें द्वापर में त्रिधामा नाम के मुनि व्यास होंगे। वे हिमालय के रमणीय शिखर पर्वतोत्तम भृगुतुंग पर निवास करेंगे। वहाँ भी मेरे श्रुतिविदित चार पुत्र होंगे। उनके नाम होंगे – भृंग, बलबन्धु, नरामित्र और तपोधन केतुश्रृंग। ग्यारहवें द्वापर में जब त्रिवृत नामक व्यास होंगे, तब मैं कलियुग में गंगाद्वार में तप नाम से प्रकट होऊँगा। वहाँ भी मेरे लम्बोदर, लम्बाक्ष, केशलम्ब और प्रलम्बक नामक चार दृढ़व्रती पुत्र होंगे। बारहवीं चतुर्युगी के द्वापर युग में शततेजा नाम के वेदव्यास होंगे। उस समय मैं द्वापर के समाप्त होने पर कलियुग में हेमकंचुक में जाकर अत्रि नाम से अवतार लूँगा और व्यास की सहायता के लिये निवृत्ति मार्ग को प्रतिष्ठित करूँगा। महामुने! वहाँ भी मेरे सर्वज्ञ, समबुद्धि, साध्य और शर्व नामक चार उत्तम योगी पुत्र होंगे। तेरहवें द्वापर युग में जब धर्मस्वरूप नारायण व्यास होंगे, तब मैं पर्वतश्रेष्ठ गन्धमादन पर वालखिल्या श्रम में महामुनि बलि नाम से उत्पन्न हूँगा। वहाँ भी मेरे सुधामा, काश्यप, वसिष्ठ और विरजा नामक चार सुन्दर पुत्र होंगे। चौदहवीं चतुर्युगी के द्वापर युग में जब रक्ष नामक व्यास होंगे, उस समय मैं अंगिरा के वंश में गौतम नाम से उत्पन्न होऊँगा। उस कलियुग में भी अत्रि, वशद, श्रवण और श्नविष्कट मेरे पुत्र होंगे। पंद्रहवें द्वापर में जब त्रय्यारुणि व्यास होंगे, उस समय मैं हिमालय के पृष्ठभाग में स्थित वेदशीर्ष नामक पर्वत पर सरस्वती के उत्तर तट का आश्रय ले वेदशिरा नाम से अवतार ग्रहण करूँगा। उस समय महापराक्रमी वेदशिर ही मेरा अस्त्र होगा। वहाँ भी मेरे चार दृढ़ पराक्रमी पुत्र होंगे। उनके नाम होंगे – कुणि, कुणिबाहु, कुशरीर और कुनेत्रक।

सोलहवें द्वापर युग में जब व्यास का नाम देव होगा, तब मैं योग प्रदान करने के लिये परम पुण्यमय गोकर्ण वन में गोकर्ण नाम से प्रकट होऊँगा। वहाँ भी मेरे काश्यप, उशना, च्यवन और बृहस्पति नामक चार पुत्र होंगे। वे जल के समान निर्मल और योगी होंगे तथा उसी मार्ग के आश्रय से शिवलोक को प्राप्त हो जायेंगे। सतरहवीं चतुर्युगी के द्वापर युग में देवकृतंजय व्यास होंगे, उस समय मैं हिमालय के अत्यन्त ऊँचे एवं रमणीय शिखर महालय पर्वत पर गुहावासी नाम से अवतार धारण करूँगा; क्योंकि हिमालय शिवक्षेत्र कहलाता है। वहीं उतथ्य, वामदेव, महायोग और महाबल नाम के मेरे पुत्र भी होंगे। अठारहवीं चतुर्युगी के द्वापर युग में जब ऋतंजय व्यास होंगे, तब मैं हिमालय के उस सुन्दर शिखर पर, जिसका नाम शिखण्डी पर्वत है और जहाँ महान् पुण्यमय सिद्धक्षेत्र तथा सिद्धों द्वारा सेवित शिखण्डी वन भी है शिखण्डी नाम से उत्पन्न होऊँगा। वहाँ भी वाच्रःश्रवा, रुचीक, श्यावास्य और यतीशवर नामक मेरे चार तपस्वी पुत्र होंगे। उन्नीसवें द्वापर में महामुनि भरद्वाज व्यास होंगे। उस समय भी मैं हिमालय के शिखर पर माली नाम से उत्पन्न होऊँगा और मेरे सिर पर लंबी-लंबी जटाएँ होंगी। वहाँ भी मेरे सागर के-से गम्भीर स्वभाववाले हिरण्यनामा, कौसल्य, लोकाक्षि और प्रधिमि नामक पुत्र होंगे। बीसवीं चतुर्युगी के द्वापर में होनेवाले व्यास का नाम गोतम होगा। तब मैं भी हिमवान् के पृष्ठभाग में स्थित पर्वतश्रेष्ठ अट्टहास पर, जो सदा देवता, मनुष्य, यक्षेन्द्र, सिद्ध और चारणों द्वारा अधिष्ठित रहता है, अट्टहास नाम से अवतार धारण करूँगा। उस युग के मनुष्य अट्टहास के प्रेमी होंगे। उस समय भी मेरे उत्तम योगसम्पन्न चार पुत्र होंगे। उनके नाम होंगे – सुमन्त, वर्वरि, विद्वान कबन्ध और कुणिकन्धर। इक्कीसवें द्वापर युग में जब वाचःश्रवा नाम के व्यास होंगे, तब मैं दारुक नाम से प्रकट होऊँगा। इसलिये उस शुभ स्थान का नाम 'दारुवन' पड़ जायगा। वहाँ भी मेरे प्लक्ष, दार्भायणि, केतुमान् तथा गौतम नाम के चार परम योगी पत्र उत्पन्न होंगे। बाईसवीं चतुर्युगी के द्वापर में जब शुष्मायण नामक व्यास होंगे, तब में भी वाराणसीपुरी में लांगली भीम नामक महामुनि के रूप में अवतरित होऊँगा। उस कलियुग में इन्द्र सहित समस्त देवता मुझ हलायुधधारी शिव का दर्शन करेंगे। उस अवतार में भी मेरे भललवी, मधु, पिंग और श्वेतकेतु नामक चार परम धार्मिक पुत्र होंगे। तेईसवीं चतुर्युगी में जब तृणबिन्दु मुनि व्यास होंगे, तब मैं सुन्दर कालिंजरगिरि पर श्वेत नाम से प्रकट होऊँगा। वहाँ भी मेरे उशिक, बृहदश्व, देवल और कवि नाम से प्रसिद्ध चार तपस्वी पुत्र होंगे। चौबीसवीं चतुर्युगी में जब ऐश्वर्यशाली यक्ष व्यास होंगे तब उस युग में मैं नेमिषक्षेत्र में शूली नामक महायोगी होकर उत्पन्न हूँगा। उस युग में भी मेरे चार तपस्वी शिष्य होंगे। उनके नाम होंगे – शालिहोत्र, अग्निवेश, युवनाश्व और शरद्वसु। पचीसवें द्वापर में जब व्यास शक्ति नाम से प्रसिद्ध होंगे, तब मैं भी प्रभावशाली एवं दण्डधारी महायोगी के रूप में प्रकट हूँगा। मेरा नाम मुण्डीश्वर होगा। उस अवतार में भी छगल, कुण्डकर्ण, कुम्भाण्ड और प्रवाहक मेरे तपस्वी शिष्य होंगे। छब्बीसवें द्वापर में जब व्यास का नाम पराशर होगा, तब मैं भद्रवट नामक नगर में सहिष्णु नाम से अवतार लूँगा। उस समय भी उलूक, विद्युत्, शम्बूक और आश्वलायन नाम वाले चार तपस्वी शिष्य होंगे। सत्ताईसवें द्वापर में जब जातूकर्ण्य व्यास होंगे, तब मैं भी प्रभासतीर्थ में सोमशर्मा नाम से प्रकट हूँगा। वहाँ भी अक्षपाद, कुमार, उलूक और वत्स नाम से प्रसिद्ध मेरे चार तपस्वी शिष्य होंगे। अट्ठाईसवें द्वापर में जब भगवान् श्रीहरि पराशर के पुत्र रूप में द्वैपायन नामक व्यास होंगे, तब पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण अपने छठे अंश से वासुदेव के श्रेष्ठ पुत्र के रूप में उत्पन्न होकर वासुदेव कहलायेंगे। उसी समय योगात्मा मैं भी लोकों को आश्चर्य में डालने के लिये योगमाया के प्रभाव से ब्रह्मचारी का शरीर धारण करके प्रकट होऊँगा। फिर श्मशानभूमि में मृतक रूप से पड़े हुए अविच्छिन्न शरीर को देखकर मैं ब्राह्मणों के हित-साधन के लिये योगमाया के आश्रय से उस में घुस जाऊँगा और फिर तुम्हारे तथा विष्णु के साथ मेरुगिर की पुण्यमयी दिव्य गुहा में प्रवेश करूँगा। ब्रह्मन्! वहाँ मेरा नाम लकुली होगा। इस प्रकार मेरा यह कायावतार उत्कृष्ट सिद्धक्षेत्र कहलायेगा और यह जब तक पृथ्वी कायम रहेगी, तब तक लोक में परम विख्यात रहेगा। उस अवतार में भी मेरे चार तपस्वी शिष्य होंगे। उनके नाम कुशिक, गर्ग, मित्र और पौरुष्य होंगे। वे वेदों के पारगामी ऊर्ध्वरेता ब्राह्मण योगी होंगे और माहेश्वर योग को प्राप्त करके शिवलोक को चले जायँगे।

उत्तम व्रत का पालन करनेवाले मुनियो! इस प्रकार परमात्मा शिव ने वैवस्वत मन्वन्तर के सभी चतुर्युगियों के योगेश्वरावतारों का सम्यक्-रूप से वर्णन किया था। विभो! अट्ठाईस व्यास क्रमशः एक-एक करके प्रत्येक द्वापर में होंगे और योगेश्वरावतार प्रत्येक कलियुग के प्रारम्भ में। प्रत्येक योगेश्वरावतार के साथ उनके चार अविनाशी शिष्य भी होंगे, जो महान् शिवभक्त और योगमार्ग की वृद्धि करनेवाले होंगे। इन पशुपति के शिष्यों के शरीरों पर भस्म रमी रहेगी, ललाट त्रिपुण्ड्र से सुशोभित रहेगा और रुद्राक्ष की माला ही इनका आभूषण होगा। ये सभी शिष्य धर्मपरायण, वेद-वेदांग के पारगामी विद्वान और सदा बाहर-भीतर से लिंगार्चन में तत्पर रहनेवाले होंगे। ये शिवजी में भक्ति रखकर योगपूर्वक ध्यान में निष्ठा रखने वाले और जितेन्द्रिय होंगे। विद्वानों ने इनकी संख्या एक सौ बारह बतलायी है। इस प्रकार मैंने अट्ठाईस युगों के क्रम से मनु से लेकर कृष्णावतारपर्यन्त सभी अवतारों के लक्षणों का वर्णन कर लिया। जब श्रुतिसमूहों का वेदान्त के रूप में प्रयोग होगा, तब उस कल्प में कृष्णद्वैपायन व्यास होंगे। यों महेश्वर ने ब्रह्माजी पर अनुग्रह करके योगेश्वरावतारों का वर्णन किया और फिर वे देवेश्वर उनकी ओर दृष्टिपात करके वहीं अन्तर्धान हो गये।

(अध्याय ५)