द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगों का वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजन की महिमा
यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो
यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ।
प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं योगिन-
स्तस्मै शैलसुताञ्चितार्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे ॥१॥
जो निर्विकार होते हुए भी अपनी माया से ही विराट् विश्व का आकार धारण कर लेते हैं, स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) जिनके कृपा-कटाक्ष के ही वैभव बताये जाते हैं तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदय के भीतर अद्वितीय आत्मज्ञानानन्द-स्वरूप में ही देखते हैं, उन तेजोमय भगवान् शंकर को, जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वती से सुशोभित है, निरन्तर मेरा नमस्कार है ॥१॥
कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं
शशाङ्ककलयोज्ज्चलं शमितघोरतापत्रयम्।
करोतु किमपि स्फुरत् परमसौख्यसच्चिद्वपु-
र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम् ॥२॥
जिसकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है, जिसका मुखारविन्द मन्द मुसकान की छटा से अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है, जो चन्द्रमा की कला से परम उज्ज्वल है, जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापों को शान्त कर देने में समर्थ है, जिसका स्वरूप सच्चिन्मय एवं परमानन्दरूप से प्रकाशित होता है तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वती के भुजपाश से आवेष्टित है, वह शिव नामक कोई अनिर्वचनीय तेजःपुंज सबका मंगल करे॥ २॥
ऋषि बोले – सूतजी! आपने सम्पूर्ण लोकों के हित की कामना से नाना प्रकार के आख्यानों से युक्त जो शिवावतार का माहात्म्य बताया है, वह बहुत ही उत्तम है। तात! आप पुनः शिव के परम उत्तम माहात्म्य का तथा शिवलिंग की महिमा का प्रसन्नतापूर्वक वर्णन कीजिये। आप शिवभक्तों में श्रेष्ठ हैं, अतः धन्य हैं। प्रभो! आपके मुखारविन्द से निकले हुए भगवान् शिव के सुरम्य यशरूपी अमृत का अपने कर्णपुटों द्वारा पान करके हम तृप्त नहीं हो रहे हैं, अतः फिर उसी का वर्णन कीजिये। व्यासशिष्य! भूमण्डल में, तीर्थ-तीर्थ में जो-जो शुभ लिंग हैं अथवा अन्य स्थलों में भी जो-जो प्रसिद्ध शिवलिंग विराजमान हैं, परमेश्वर शिव के उन सभी दिव्य लिंगों का समस्त लोकों के हित की इच्छा से आप वर्णन कीजिये।
सूतजी ने कहा – महर्षियो! सम्पूर्ण तीर्थ लिंगमय हैं। सब कुछ लिंग में ही प्रतिष्ठित है। उन शिवलिंगों की कोई गणना नहीं है, तथापि मैं उनका किंचित् वर्णन करता हूँ। जो कोई भी दृश्य देखा जाता है तथा जिसका वर्णन एवं स्मरण किया जाता है, वह सब भगवान् शिव का ही रूप है; कोई भी वस्तु शिव के स्वरूप से भिन्न नहीं है। साधुशिरोमणियो! भगवान् शम्भु ने सब लोगों पर अनुग्रह करने के लिये ही देवता, असुर और मनुष्यों सहित तीनों लोकों को लिंग रूप से व्याप्त कर रखा है। समस्त लोकों पर कृपा करने के उद्देश्य से ही भगवान् महेश्वर तीर्थ-तीर्थ में और अन्य स्थलों में भी नाना प्रकार के लिंग धारण करते हैं। जहाँ-जहाँ जब-जब भक्तों ने भक्तिपूर्वक भगवान् शम्भु का स्मरण किया, तहाँ-तहाँ तब-तब अवतार ले कार्य करके वे स्थित हो गये; लोकों का उपकार करने के लिये उन्होंने स्वयं अपने स्वरूपभूत लिंग की कल्पना की। उस लिंग की पूजा करके शिवभक्त पुरुष अवश्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है। ब्राह्णो! भूमण्डल में जो लिंग हैं, उनकी गणना नहीं हो सकती; तथापि मैं प्रधान-प्रधान शिवलिंगों का परिचय देता हूँ। मुनिश्रेष्ठ शौनक! इस भूतल पर जो मुख्य-मुख्य ज्योतिर्लिंग हैं, उनका आज मैं वर्णन करता हूँ। उनका नाम सुनने मात्र से पाप दूर हो जाता है। सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, उज्जैनी में महाकाल, ओंकारतीर्थ में परमेश्वर, हिमालय के शिखर पर केदार, डाकिनी में भीमशंकर, वाराणसी में विश्वनाथ, गोदावरी के तट पर त्र्यम्बक, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दारुकावन में नागेश, सेतुबन्ध में रामेश्वर तथा शिवालय में घुश्मेश्वर का स्मरण करे। जो प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इन बारह नामों का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त हो सम्पूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्त कर लेता है।
[१. श्रीसोमनाथ का दर्शन करने के लिये काठियावाड़ प्रदेश के अन्तर्गत प्रभास क्षेत्र में जाना चाहिये। २. श्रीमल्लिकार्जुन नामक ज्योतिर्लिंग जिस पर्वत पर विराजमान है, उसका नाम श्रीशैल या श्रीपर्वत है। यह स्थान मद्रास प्रान्त के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर है। इसे दक्षिण का कैलास कहते हैं। ३. महाकाल या महाकालेश्वर मालवा प्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन नामक नगरी में विराजमान है। उज्जैन को अवन्तिकापुरी भी कहते हैं। ४. इस शिवलिंग को ओंकारेश्वर भी कहते हैं। ओंकारेश्वर का स्थान मालवा प्रान्त में नर्मदा नदी के तट पर है। उज्जैन से खंडवा जाने वाली रेलवे की छोटी लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन है। वहाँ से यह स्थान ७ मील दूर है। यहाँ ओंकारेश्वर और अमलेश्वर नामक दो पृथक्-पृथक् लिंग हैं। परंतु दोनों एक ही ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप माने गये हैं। ५. श्रीकेदारनाथ या केदारेश्वर हिमालय के केदार नामक शिखर पर स्थित हैं। शिखर से पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्रीबदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्रीकेदारनाथ विराजमान हैं। यह स्थान हरिद्वार से १५० मील और ऋषिकेश से १३२ मील दूर है। ६. श्रीभीमशंकर का स्थान बम्बई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे उसके उद्गमस्थान सह्य पर्वत पर है। यह स्थान लारी के रास्ते से जाने पर नासिक से लगभग १२० मील दूर है। सह्य पर्वत के उस शिखर का नाम, जहाँ इस ज्योतिर्लिंग का प्राचीन मन्दिर है, डाकिनी है। इससे अनुमान होता है कि कभी यहाँ डाकिनी और भूतों का निवास था। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीम शंकर ज्योतिर्लिंग आसाम के कामरूप जिले में गोहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बताया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि नैनीताल जिले के उज्जनक नामक स्थान में एक विशाल शिवमन्दिर है, वही भीमशंकर का स्थान है। ७. काशी के श्रीविश्वनाथजी तो प्रसिद्ध ही हैं। ८. यह ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बक या त्र्यम्बकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। बम्बई प्रान्त के नासिक जिले में नासिक पंचवटी से १८ मील दूर गोदावरी के उद्गम स्थान ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी के तट पर ही इसकी स्थिति है। ९. यह स्थान संथाल परगने में ई० आई० रेलवे के जसीडीह स्टेशन के पास वैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार यही चिताभूमि है। कहीं-कहीं 'परल्यां वैद्यनाथं च' ऐसा पाठ मिलता है। इसके अनुसार परली में वैद्यनाथ की स्थिति है। दक्षिण हैदराबाद नगर से इधर परभनी नामक एक जंकशन है। वहाँ से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है। इस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली गाँव के निकट श्रीवैद्यनाथ नामक ज्योतिर्लिंग है। १०. नागेश नामक ज्योतिर्लिंग का स्थान बड़ौदा राज्य के अन्तर्गत गोमतीद्वारका से ईशान कोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। दारुकावन इसी का नाम है। कोई-कोई दारुकावन के स्थान में 'द्वारकावन' पाठ मानते हैं। इस पाठ के अनुसार भी यही स्थान सिद्ध होता है; क्योंकि वह द्वारका के निकट और उस क्षेत्र के अन्तर्गत है। कोई-कोई दक्षिण हैदराबाद के अन्तर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से १७ मील उत्तर-पूर्व में स्थित यागेश (जागेश्वर) शिवलिंग ही नागेश ज्योतिर्लिंग है। ११. श्रीरामेश्वर तीर्थ को ही सेतुबन्ध तीर्थ भी कहते हैं। यह स्थान मद्रास प्रान्त के रामनाथम् या रामनद जिले में है। यहाँ समुद्र के तट पर रामेश्वर का विशाल मन्दिर शोभा पाता है।. १२. श्रीघुश्मेश्वर को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहते हैं। इनका स्थान हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत दौलताबाद स्टेशन से १२ मील दूर बेरुल गाँव के पास है। इस स्थान को ही शिवालय कहते हैं।]
मुनीश्वरो! जिस-जिस मनोरथ को पाने की इच्छा रखकर श्रेष्ठ मनुष्य इन बारह नामों का पाठ करेंगे, वे इस लोक और परलोक में उस मनोरथ को अवश्य प्राप्त करेंगे। जो शुद्ध अन्तःकरणवाले पुरुष निष्काम भाव से इन नामों का पाठ करेंगे, उन्हें कभी माता के गर्भ में निवास नहीं करना पड़ेगा। इन सबके पूजन मात्र से ही इहलोक में समस्त वर्णों के लोगों के दुःखों का नाश हो जाता है और परलोक में उन्हें अवश्य मोक्ष प्राप्त होता है। इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नैवेद्य यत्नपूर्वक ग्रहण करना (खाना) चाहिये। ऐसा करनेवाले पुरुष के सारे पाप उसी क्षण जलकर भस्म हो जाते हैं।
यह मैंने ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजन का फल बताया। अब ज्योतिर्लिंगों के उपलिंग बताये जाते हैं। मुनीश्वरो! ध्यान देकर सुनो। सोमनाथ का जो उपलिंग है, उसका नाम अन् तकेश्वर है। वह उपलिंग मही नदी और समुद्र के संगम पर स्थित है। मल्लिकार्जुन से प्रकट उपलिंग रुद्रेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। वह भृगुकक्ष में स्थित है और उपासकों को सुख देनेवाला है। महाकाल सम्बन्धी उपलिंग दुग्धेश्वर या दूधनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। वह नर्मदा के तट पर है तथा समस्त पापों का निवारण करनेवाला कहा गया है। ओंकारेश्वर सम्बन्धी उपलिंग कर्दमेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। वह बिन्दु सरोवर के तट पर है और उपासक को सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करता है। केदारेश्वर सम्बन्धी उपलिंग भूतेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है और यमुनातट पर स्थित है। जो लोग उसका दर्शन और पूजन करते हैं, उनके बड़े-से-बड़े पापों का वह निवारण करनेवाला बताया गया है। भीमशंकर सम्बन्धी उपलिंग भीमेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। वह भी सह्य पर्वत पर ही स्थित है और महान् बल की वृद्धि करनेवाला है। नागेश्वर सम्बन्धी उपलिंग का नाम भी भूतेश्वर ही है, वह मल्लिका सरस्वती के तट पर स्थित है और दर्शन करने मात्र से सब पापों को हर लेता है। रामेश्वर से प्रकट हुए उपलिंग को गुप्तेश्वर और घुश्मेश्वर से प्रकट हुए उपलिंग को व्याघ्रेश्वर कहा गया है। ब्राह्णो! इस प्रकार यहाँ मैंने ज्योतिर्लिंगों के उपलिंगों का परिचय दिया। ये दर्शन मात्र से पापहारी तथा सम्पूर्ण अभीष्ट के दाता होते हैं। मुनिवरो! ये मुख्यता को प्राप्त हुए प्रधान-प्रधान शिवलिंग बताये गये। अब अन्य प्रमुख शिवलिंगों का वर्णन सुनो।
(अध्याय १)