भगवान् विष्णु द्रारा पठित शिवसहस्त्रनाम स्तोत्र

इस प्रकार श्रीहरि प्रतिदिन सहस्त्र नामों द्वारा भगवान् शिव की स्तुति, सहस्त्र कमलों द्वारा उनका पूजन एवं प्रार्थना किया करते थे। एक दिन भगवान् शिव की लीला से एक कमल कम हो जाने पर भगवान् विष्णु ने अपना कमलोपम नेत्र ही चढ़ा दिया। इस तरह उनसे पूजित एवं प्रसन्न हो शिव ने उन्हें चक्र दिया और इस प्रकार कहा – 'हरे! सब प्रकार के अनर्थों की शान्ति के लिये तुम्हें मेरे स्वरूप का ध्यान करना चाहिये। अनेकानेक दुःखों का नाश करने के लिये इस सहस्त्र नाम का पाठ करते रहना चाहिये तथा समस्त मनोरथों की सिद्धि के लिये सदा मेरे इस चक्र को प्रयत्नपूर्वक धारण करना चाहिये, यह सभी चक्रों में उत्तम है। दूसरे भी जो लोग प्रतिदिन इस सहस्त्रोनाम का पाठ करेंगे या करायेंगे, उन्हें स्वप्म में भी कोई दुःख नहीं प्राप्त होगा। राजाओं की ओर से संकट प्राप्त होने पर यदि मनुष्य सांगोपांग विधिपूर्वक इस सहस्त्रनामस्तोत्र का सौ बार पाठ करे तो निश्चय ही कल्याण का भागी होता है। यह उत्तम स्तोत्र रोग का नाशक, विद्या और धन देनेवाला, सम्पूर्ण अभीष्ट की प्राप्ति करानेवाला, पुण्यजनक तथा सदा ही शिवभक्ति देनेबवाला है। जिस फल के उद्देश्य से मनुष्य यहाँ इस श्रेष्ठ स्तोत्र का पाठ करेंगे, उसे निस्संदेह प्राप्त कर लेंगे। जो प्रतिदिन सबेरे उठकर मेरी पूजा के पश्चात् मेरे सामने इसका पाठ करता है, सिद्धि उससे दूर नहीं रहती। उसे इस लोक में सम्पूर्ण अभीष्ट को देने वाली सिद्धि पूर्णतया प्राप्त होती है और अन्त में वह सायुज्य मोक्ष का भागी होता है, इसमें संशय नहीं है।'

सूतजी कहते हैं – मुनीश्वरो! ऐसा कहकर सर्वदेवेश्वर भगवान् रुद्र श्रीहरि के अंग का स्पर्श किये और उनके देखते-देखते वहीं अन्तर्धान हो गये। भगवान् विष्णु भी शंकरजी के वचन से तथा उस शुभ चक्र को पा जाने से मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। फिर वे प्रतिदिन शम्भु के ध्यानपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करने लगे। उन्होंने अपने भक्तों को भी इसका उपदेश दिया। तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने यह प्रसंग सुनाया है, जो श्रोताओं के पाप को हर लेनेवाला है।

(अध्याय ३५ - ३६)